पड़ोसी देश चीन छल-कपट और अपनी कुटिल चालों से भारत के लिए हमेशा परेशानी खड़ी करता आया है। वह अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है। उसके लिए मानवीय मूल्यों, नीति और नैतिकता का कोई मोल नहीं है। वह यह भी जानता है कि उसके सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली देश बनने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा भारत ही है। चीन की हर चाल को विफल करने के लिए भारत ने भी अपनी कमर कसी हुई है। पूर्व में जब भी भारतीय राजनीतिज्ञ अरुणाचल के दौरे पर जाते थे तो चीन उस पर यह कहकर आपत्ति जताता था कि अरुणाचल प्रदेश उसका है। इस बार गृहमंत्री अमित शाह ने अरुणाचल की जमीन पर खड़े होकर चीन को करारा जवाब दिया है और कहा है कि अब भारत की एक इंच जमीन पर कोई भी कब्जा नहीं कर सकता। कोई भी भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल नहीं उठा सकता। चीन ने गृहमंत्री अमित शाह के दौरे का विरोध करते हुए कहा था कि भारत के गृहमंत्री की गतिविधियों को अपनी क्षेत्रीय संप्रभुत्ता का उल्लंघन मानता है। भारत के लिए चीन की अनर्गल बयानबाजी कोई नई नहीं है।
भारत सरकार ने हर बार चीन के दावों को खारिज किया है। कुछ दिन पहले अपनी विस्तारवादी मंशा का इजहार करते हुए चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 11 स्थानों के नामों में बदलाव किया। चीन भी यह जानता है कि कुछ स्थानों के नाम बदलने से अरुणाचल की स्थिति में वास्तव में कोई बदलाव नहीं आने वाला। अरुणाचल के नाम बदलने की चीन की यह तीसरी सूची है। 2017 में उसने पहली बार अरुणाचल के 6 स्थानों के नाम बदलने की सूची जारी की थी। अब तक वह 32 स्थानों के नाम बदल चुका है। कुछ वर्ष पहले चीन ने अरुणाचल के कुछ युवाओं को एक पेपर पर चीन आने की अनुमति दी थी और कहा था कि अरुणाचल चीन का अंग है, इसलिए उन्हें चीन आने के लिए वीजा लेने की जरूरत नहीं है।
हाल ही में अरुणाचल में हुई जी-20 की एक बैठक में चीन ने हिस्सा लेने से मना कर दिया था। हाल ही के वर्षों में डोकलाम और लद्दाख में दोनों देशों की सेना आमने-सामने आ चुकी है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उसने बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया हुआ है और सीमा के निकट कई तरह के निर्माण कार्य कर रहा है। डोकलाम और गलवान में उसे पहली बार भारत के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। इन हरकतों के जवाब में भारत ने भी सैनिकों को मोर्चे पर खड़ा कर दिया है तथा सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के लिए कई परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। हालांकि नियंत्रण रेखा पर अभी शांति है, पर दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों की कई चरण की बातचीत के बाद भी चीन ने अपने सैनिकों को पीछे नहीं हटाया है। भारत की मांग है कि सीमा विवाद पर किसी भी तरह की ठोस बातचीत शुरू करने से पहले नियंत्रण रेखा पर अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति बहाल होनी चाहिए। हालांकि चीन ने कई बार आश्वसन दिया है कि वह अपनी टुकड़ियों को पीछे कर लेगा, पर ऐसा हुआ नहीं। विभिन्न बहुपक्षीय मंचों और परस्पर वार्ताओं में चीन शांति और सहयोग की आकांक्षा तो व्यक्त करता है लेकिन वास्तव में वह अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहता है। भारतीय क्षेत्रों पर चीन के आक्रामक दावों को तो छोड़ दें, नियंत्रण रेखा की यथास्थिति में एकतरफा बदलाव लाने की किसी कोशिश को भी भारत स्वीकार नहीं कर सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत अब चीन से आंखें झुका कर नहीं बल्कि आंखाें में आंखें डालकर बात करता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पूर्व की सरकारों ने चीन को लेकर काफी गलतियां कीं। पूर्व की सरकारों की नीतियां चीन से आंखें बचाकर चुप्पी धारण करने की रही। अधिकांश राजनीतिज्ञ पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहर लाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी की यह कहकर आलोचना करते हैं कि इनकी भूलों के कारण ही तिब्बत और ताइवान चीन के हवाले कर दिए गए और चीन एक-एक इंच करके भारत की भूमि को हड़पता रहा। यह भी वास्तविकता है कि अटल जी ने चीन को इस बात के लिए राजी किया था कि वह सिक्कम काे भारत का हिस्सा माने। सच तो यह है कि चीन ने कभी एलएसी का सम्मान ही नहीं किया। चीन अपनी कुटिल चालों से अरुणाचल पर अपना दावा गर्म बनाए रखना चाहता है ताकि वह भारत से सीमा विवाद पर होने वाली वार्ता में सौदेबाजी कर सके। चीन को इस बात का अहसास है कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है। अगर उसे इस बात का एहसास न होता तो भारत से युद्ध छेड़ चुका होता। चीन से सटी सीमाओं पर भारत ने भी अब अपनी पूरी तैयारी शुरू कर दी है। आईटीबीपी अब पहले से ज्यादा आक्रामक है। भारतीय सेना वहां पूरी तरह से एक्शन मोड में है। पूर्वी लद्दाख सीमा पर आधुनिक हथियार तैनात है। सीमा पर बुनियादी ढांचे का विकास तेजी से किया जा रहा है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह लगातार सीमाओं का जायजा लेते रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने चीन की सीमा पर किविथू गांव में वाइब्रैंट विलेज याेजना की शुरूआत की है। वाइब्रैंट विलेज का मकसद एलएसी से सटे गांव को विकसित करना और वहां बुनियादी ढांचे को विकसित करना है। यह चीन की उस योजना का करारा जवाब है जिसके तहत वह अपनी सीमा के आसपास गांव बसा रहा है। वाइब्रैंट विलेज योजना के तहत सड़कों का जाल बिछाया जाएगा ताकि चीन से किसी भी तरह के खतरे के चलते बेहद कम समय में सैनिक और हथियार सीमाओं पर पहुंचाए जा सकें। इन सम्पर्क मार्गों का काफी महत्व होगा। 1962 के युद्ध में भी किविथू के जवानों ने चीन से जंग लड़ते समय बहादुरी दिखाते हुए अपनी शहादतें दी थीं। भारत में सूर्य की पहली किरण इसी भूमि पर पड़ती है। यह भारत माता के मुकुट का एक उज्जवल गहना है। भारत अब ड्रैगन का फन दबाने में सक्षम है।