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कसरत और काम की बात

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देखिये किस सलीके से मुल्क की फिजा बदल रही है कि एक तरफ पेट्रोल और डीजल के दाम रोजाना बढ़ रहे हैं और दूसरी तरफ तकरीबन हर सूबे में रोजगार की तलाश में नौजवान पीढ़ी बढ़ती गर्मी के साथ ही पसीना-पसीना हो रही है। तमिलनाडु जैसे अमन-चैन वाले राज्य में सरकार के जुल्मो-सितम से परेशान लोग अपनी जान की दुआ मांग रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में सरहदों के पास बसे गांवों के लोग नामुराद पाकिस्तानी फौज की गोलाबारी से खाली होकर अपनी जान बचाते घूम रहे हैं। मध्य प्रदेश के गांवों की जनता पानी के लिए मीलों दूर जाकर अपनी प्यास बुझाने की जुगत लगा रही है।

गोवा का एक मन्त्री गर्मी की छुट्टियां बिताने सरकारी खर्चे पर अध्ययन के बहाने अपने साथ पूरे खानदान को लेकर विदेश जा रहा है मगर सबसे बड़ी बेशर्मी महाराष्ट्र में हो रही है जहां खाली पड़े दो लाख सरकारी पदों को भरने के लिए राज्य सरकार ने इन्हें काट-छांट कर 36 हजार बना दिया है और उसमें भी उसकी नाक के नीचे फर्जी प्रत्याशी (डमी केंडिडेट) कांड हो रहा है जिसमें पहले से ही नौकरी पर लगे लोग तमाम इलैक्ट्रानिक या डिजिटल तरीकों का फायदा उठाकर खुद प्रत्याशी बनकर नई पीढ़ी के होनहार उम्मीदवारों का रास्ता रोक रहे हैं। सरेआम फर्जी उम्मीदवार दस लाख से 15 लाख रुपए के बीच में मिल रहा है। इतना ही नहीं सरकार ठेके पर कर्मचारियों को नियुक्त करके उन गरीब लोगों का मजाक उड़ा रही है जिनके मां-बाप रात-दिन एक करके अपनी छोटी सी कमाई में अपने बच्चों को तालीम देकर सपना पालते हैं कि उनका बेटा एक दिन बुढ़ापे में उनका सहारा बनेगा। दूसरी तरफ 77 सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को बेचने की पूरी तैयारी कर ली गई है।

भारत के आम लोगों के खून-पसीने की कमाई से खड़े किये गये इन उद्योगों को निजी कम्पनियों को बेच कर सरकार आर्थिक विकास के सपने को पूरा करेगी? लेकिन सितम यह हो रहा है कि इन मुद्दों पर बात करने के बजाय हम उन मसलों पर बात कर रहे हैं जिनका वास्ता न तो लोगों की जिन्दगी के मामलों से है और न ही सरकारों के कामकाज से। हम जिस्मानी ‘कसरत’ के अन्दाज टी.वी. पर दिखा-दिखा कर भारत को ‘फिट’ रहने की सलाह दे रहे हैं। क्या गजब का माहौल बनाया जा रहा है कि मन्त्री से लेकर खिलाड़ी तक अपनी कसरतों का मुजाहिरा कर रहे हैं और लोगों को समझा रहे हैं कि कसरत करने से यह मुल्क ‘फिट’ हो जायेगा। मुझे समाजवादी चिन्तक व नेता डा. राम मनोहर लोहिया के वे शब्द याद आ रहे हैं जो उन्होंने भारत के लोकतन्त्र की जन मूलक ताकत के बारे में इलाहाबाद की एक जनसभा में कहे थे। उन्होंने कहा था कि “अगर इस देश के राजनीतिज्ञ कभी भी सर्कस में दिखाये जाने वाले खेलों की तर्ज पर अपनी पहचान बनाने की कोशिश करेंगे तो पूरी राजनीति दो घंटे के खेल के तमाशे में तब्दील हो जायेगी जबकि राजनीति अगली पीढि़यों के लिए एेसी जमीन तैयार करने की जिम्मेदारी होती है जिसमें खुशहाली का पक्का वादा हो।”

अगर गौर से देखें तो पाएंगे कि टीवी पर कसरत का प्रदर्शन करने वाले लोग भारत के उन करोड़ों गरीब लोगों का खुलेआम मजाक बना रहे हैं जो दिन-रात मेहनत-मशक्कत करके किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं और अपने बच्चों की पढ़ाई का बन्दोबस्त करते हैं। वह आदमी तो रात-दिन ही कसरत में रहता है जो इसी हिन्दोस्तान की सड़कों पर रिक्शा चलाता है या मजदूरी करता है या खेतों में हल जोतता है अथवा किसी कारखाने में काम करता है। इन कसरती मंत्रियों से सबसे पहले यह पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने उस गरीब आदमी के बच्चों को अमीरों के बच्चों की तरह एक स्तर की और एक समान शिक्षा देने के लिए क्या किया?

जिस दिन यह हो गया उस दिन भारत ‘फिट’ ही नहीं बल्कि ‘​परफेक्ट’ हो जायेगा। इनसे यह पूछा जाना चाहिए कि देश की नौजवान पीढ़ी को परीक्षाओं में उनकी योग्यता के अनुसार परिणाम प्राप्त करने के लिए संस्थाओं में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए क्या कदम उठाये गये? यह पूछा जाना चाहिए कि क्यों सरकार हर विभाग में खाली पड़े पदों को भरने से भाग रही है? यह पूछा जाना चाहिए कि बैंकों में जमा लाखों करोड़ की धनराशियों का मनमाने ढंग से इस्तेमाल करने वाले धन्ना सेठों की सम्पत्ति में इतना इजाफा कैसे हो गया कि वे इसके 73 प्रतिशत के मालिक बन गये जबकि बैंकों में जमा धन आम आदमी का ही होता है? यह पूछा जाना चाहिए कि जिस विदेशी निवेश की दरकार हम सोते-जागते बताते हैं उसके चलते भारत का निर्यात कारोबार कितना बढ़ा है? यह पूछा जाना भी जरूरी है कि इस मुल्क में उपलब्ध स्रोतों से अभी तक विदेशी कम्पनियों ने कितनी कमाई की है और इससे इस देश के आम आदमी की आमदनी में कितना इजाफा हुआ है?

हम अपने मुल्क के सरमाये को बेच-बेच कर अपनी खुशहाली की जो उम्मीद पाले बैठे हैं उसकी असलियत यह है कि आज भारत में पेट्रोल के दाम श्रीलंका (49.78 रु.) से पौने दो गुने से भी ज्यादा है। हम अंधी राह पर दौड़ रहे हैं मगर इस मुल्क के नौजवान ‘​काम’ मांग रहे हैं ‘​कसरत’ करने के गुर नहीं ! जरा अक्ल लड़ाइये और सोचिये कि यदि कोई क्रिकेट खिलाड़ी खुद को फिट नहीं रखेगा तो वह खेल के मैदान में क्या खाक खेलेगा? आज के कितने राजनीतिज्ञों को मालूम है कि ओडिशा के मुख्यमन्त्री रहे स्व. हरेकृष्ण मेहताब एकल नाटक (मोनो एक्टिंग) में गजब का महारथ हासिल रखते थे और डा. मेहताब वह हस्ती थे जिनका नाम पं. नेहरू के जीवन काल में ही उनके विकल्प के रूप मे लिया जाता था मगर उन्होंने अपने इस फन की कभी भी अपने राजनैतिक दायित्वों पर छाया तक नहीं पड़ने दी। एेसा भी कई बार हुआ कि वह सीधे विधानसभा से कटक के सभागार में नाटक करने पहुंच गये। कहने का मतलब केवल इतना है कि हम अपने कर्तव्य की बात करें, कसरत की नहीं। कसरत तो आदमी तभी कर पायेगा जब वह अपनी दैनिक जरूरतों के गम से बाहर आयेगा ?

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