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सामर्थ्य का ‘नया’ प्रतीक

विनायक दामोदर वीर सावरकर की 140वीं जयंती पर भारत को नई संसद मिल गई।

विनायक दामोदर वीर सावरकर की 140वीं जयंती पर भारत को नई संसद मिल गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विधि विधान के साथ नए संसद भवन का उद्घाटन कर दिया। इसके साथ ही नई संसद को लेकर चल रही बहस भी बेमानी हो गई। भारत को नई संसद का मिलना भारतीयों के लिए गौरव का विषय है। भारत अब उन देशों में शामिल हो गया है जिसके पास आजादी के बाद स्वयं का बनाया हुआ संसद भवन होगा। पुरानी संसद 1927 में बनकर तैयार हुई थी। उसे बने 96 वर्ष हो चुके हैं। हर नवसृजन नई ऊर्जा और नई शक्ति का संचार करता है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के इस मंदिर से भारतीयों को गुलामी की प्रतीक पुरानी संसद से आत्मनिर्भर भारत की नई संसद में पहुंचने का अवसर मिला है। पुरानी संसद बनाने में भी पैसा और श्रम भारत का ही लगा था। नई संसद अब राष्ट्र की अस्मिता का प्रतीक बन गई है। नई संसद इस बात की प्रतीक बन गई है कि देश का लोकतंत्र कितना ताकतवर है। नई इमारत को भारत की पहचान के तौर पर देखा जाएगा। नई इमारत से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आधुनिक भारत की छवि और चमकेगी। 
पूर्व में इस बात पर बड़ी बहस होती रही है कि देश को नई संसद की जरूरत है या नहीं। नई संसद बनाने के पक्ष में और विपक्ष में तर्क दिए जाते रहे हैं और सैंट्रल विस्टा प्रोजैक्ट को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा लेकिन तमाम बाधाओं के खत्म होने के बाद आज नई इमारत हमारे सामने है। नया संसद भवन बनाने की जरूरत इसलिए पड़ रही थी कि संसद भवन अत्य​धिक बोझ के नीचे काम कर रहा था। जरा सोचिये जिस इमारत को बने लगभग 100 साल होने को हों उसकी हालत जर्जर तो होगी ही। बैठने की व्यवस्था काफी तंग हो चुकी थी। न ही यह ​बिल्डिंग भूकम्प विरोधी थी और न ही इसे अग्नि मानदंडों के अनुरूप माना जा सकता था। केंद्र सरकार के अनुसार इसका रिनोवेशन कराना, नए और आधुनिक संचार उपकरणों को इंस्टाल करना इस बिल्डिंग में मुश्किल हो गया था। इसके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि देश की आबादी को देखते हुए संभवतः सांसदों की संख्या भी बढ़ेगी। ऐसे में पुराने संसद भवन में सभी सांसदों को अकोमोडेट करना मुश्किल हो गया था। इसलिए केंद्र की मोदी सरकार ने फैसला किया कि पुराने संसद भवन के पास ही नए संसद भवन का निर्माण किया जाए। फिर सेंट्रल विस्टा रि-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट तैयार किया गया, जिसके तहत नए संसद भवन का निर्माण हुआ है। नया संसद भवन कुल 64,500 वर्गमीटर में फैला हुआ है और इसके निर्माण पर करीब 1200 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। नए संसद भवन में लोकसभा में 888 सांसदों के बैठने की जगह है जबकि राज्यसभा में 384 सांसदों के बैठने की जगह तैयार की गई है। वहीं दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन के दौरान 1280 सांसद एक साथ बैठ सकते हैं। मौजूदा समय की जरूरतों के हिसाब से नए संसद भवन में सारी तैयारियां की गई हैं।
नए संसद भवन में कामकाज के लिए अलग ऑफिस बनाए गए हैं जो हाइटैक सुविधाओं से लैस हैं। कैफे, डाइनिंग एरिया, कमेटी मीटिंग के सभी कमरों में भी हाइटैक उपकरण लगाए गए हैं। नई संसद की सबसे बड़ी विशेषता संविधान हाल है जो भवन के बीचोंबीच बना हुआ है। इसी के ऊपर अशोक स्तम्भ लगा हुआ है। इस हाल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और देश के सभी प्रधानमंत्रियों की तस्वीरें लगाई गई हैं। अब संसद का आगामी सत्र इसी नई इमारत में होगा। यहीं से कानून बनेंगे और यहीं से देश चलेगा। नई संसद तैयार करने के पीछे यह तर्क भी था कि वक्त अब काफी बदल चुका है और गुलामी के प्रतीकों को बदलने का दौर भी आ चुका है। देश की अपनी स्वतंत्र छाप आैर लोकतंत्र की नई कहानी कहने के लिए नया संसद भवन अगली शताब्दियों के लिए एक नया रूप गढ़ने को तैयार है। जनता के लिए नए फैसले अब इसी भवन से निकलकर आएंगे।  लोकतंत्र का प्रतीक नया संसद भवन केवल सत्ताधारी दल या विपक्षी दलों का नहीं है। यह देश की धरोहर है और यह हर भारतीय का है। बेहतर होता यदि इसके उद्घाटन को लेकर सियासत नहीं होती। तब पूरे विश्व में एकजुटता का संदेश जाता। भारत के लोगों के लिए देश को नई संसद का मिलना एक भावनात्मक मुद्दा है। उनका स्वाभिमान बढ़ा है और  भारतीय अपने स्वाभिमान के लिए  जाने जाते हैं। उनके लिए  राष्ट्र सर्वोपरि है। अन्य सभी मुद्दे उनके ​लिए इस अवसर पर गौण हैं।

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