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उत्तर प्रदेश का ‘बाबा माडल’

उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ का अन्दाज कई मायनों में निराला है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं खोते और प्रशासन करने की अपनी साफ नीयत को कभी भी किसी भी स्तर नहीं छिपाते।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ का अन्दाज कई मायनों में निराला है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं खोते और प्रशासन करने की अपनी साफ नीयत को कभी भी किसी भी स्तर नहीं छिपाते। प्रशासनिक मामलों में उनकी साफगोई कई बार उनके विरोधियों को बहुत उत्तेजित कर देती है जिसकी वजह से बाबा पर आक्रमणों की बौछार होने लगती है मगर वह अपनी स्पष्टवादिता से कभी पीछे नहीं हटते जिसकी वजह से बाद में उनके विरोधियों को ही पीछे हटना पड़ता है। जोगी वेषधारी उनका  ‘बाना’ भारतीय संस्कृति के समर्पण’ भाव का आभूषण तब हो जाता है जब उनके राज्य के प्रत्येक नागरिक को बिना किसी जाति व धर्म के भेदभाव के विकास के कार्यक्रमों से लाभान्वित किया जाता है। मगर हाल ही में पिछले दिनों उनके मन्त्रिमंडल के एक सहयोगी राज्यमन्त्री दिनेश खटीक ने इस वजह से इस्तीफा दिया था कि उनके अनुसूचित जाति या दलित होने की वजह से उनके जलशक्ति मन्त्रालय के अधिकारी उनकी बात ही नहीं मानते हैं और उनकी अनदेखी करते हैं। उनके इस्तीफे की बहुत चर्चा मीडिया में रही क्योंकि श्री खटीक ने इस बाबत केन्द्रीय गृहमन्त्री श्री अमित शाह को भी खत लिख दिया था जिसमें 14 बार स्वयं के दलित होने का ब्यौरा दिया गया था। 
‘बुलडोजर बाबा’ के नाम से प्रसिद्ध श्री योगी ने इस मामले का समाधान अपनी राजनैतिक दूरदर्शिता के चलते बहुत सरलता के साथ कर दिया और श्री खटीक ने उनसे भेंट करने के बाद अपना इस्तीफा वापस भी ले लिया। बुलडोजर बाबा की राजनैतिक समझ का अन्दाजा इस घटना से लगाया जा सकता है क्योंकि श्री खटीक के यह आऱोप लगाने पर कि विभागों के स्थानान्तरण में भ्रष्टाचार हुआ है उन्होंने विभाग के विशेष अधिकारी की मुअत्तिली के आदेश जारी कर दिये। लेकिन अगर हम उत्तर प्रदेश के बाबा के पिछले लगभग साढे पाच साल के प्रशासन का जायजा लें तो कानून-व्यवस्था के नाम पर 2017 से पहले समाजवादी पार्टी के मुख्यमन्त्री श्री अखिलेश यादव की सरकार में जिस तरह ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ व्यवस्था थी उसे श्री योगी ने इस तरह बदला कि 2017 के बाद उत्तर प्रदेश की चर्चा कानून का राज चलने वाले प्रदेश के रूप में होने लगी। पुलिस थानों में केवल दरोगा का राज ही चलने लगा और राजनैतिक पार्टी के स्थानीय नेताओं के बेहिसाब दखल से इन्हें मुक्त किया गया। बाबा ने गद्दी पर बैठते ही सबसे पहले पुलिस की पहचान कानून का शासन स्थापित करने वाली संस्था की बनाई और फिर अपराधियों को ठिकाने लगाने की योजनाओं को अंजाम दिया । भूमाफिया और अफराधी प्रवृत्ति के लोगों का दबदबा खत्म हो गया और जनता के बीच पुलिस की प्रतिष्ठा में इजाफा हुआ। यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बाबा ने इसी वर्ष के दौरान हुआ उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव अपनी इसी छवि की बदौलत जीतने में सफलता पाई  जिससे सभी विपक्षी दलों को बंगले झाकने के लिए मजबूर होना पड़ा। इतना ही नहीं डेढ़ महीने पहले हुए लोकसभा के रामपुर व आजमगढ़ उप चुनाव जीत कर बाबा ने सिद्ध कर दिया कि जब साफ-सुथरे प्रशासन के बूते पर जनता के बीच जाया जाता है तो सारे साम्प्रदायिक और जातिगत समीकरण टूट जाते हैं।  इसकी असली वजह यह है कि बाबा लोकतन्त्र में ऐसे  ‘औघड़दानी’ मुख्यमन्त्री हैं जिन्हें अपने मूल परिवार से भी कुछ लेना-देना है। इसके साथ ही उन्होंने भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों का आदर करने का भाव प्रत्येक सम्प्रदाय के दिल में जगाने का कार्य किया। सावन में कांवड़ियों का सम्मान उनकी इसी दृष्टि का परिचायक है। परन्तु ऐसी  भी नहीं है कि उनका ध्यान केवल सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दों तक ही हो। राज्य के आर्थिक विकास के लिए उनका समर्पण अनुकरणीय कहा जायेगा। उनके शासन के दौरान ही उत्तर प्रदेश राजमार्गों के प्रदेश के रूप मे उभरा। 
नोएडा के समीप ‘फिल्म सिटी’ बनाने की उनकी योजना बताती है कि वह किस कदर आधुनिक चुनौतियों को समझते हैं, साथ ही जेवर में अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की परियोजना को जमीन पर लाकर उन्होंने सिद्ध किया कि संन्यासी शासक होने का मतलब सामाजिक सरोकारों की उपेक्षा नहीं हो सकती बल्कि इनके प्रति जिम्मेदारी और निरपेक्ष भाव से गहरा हो जाता है। वस्तुतः योगी भारतीय राजनीतिशास्त्र के महान दार्शनिक आचार्य चाणक्य के उस सिद्धान्त के अनुयायी लगते हैं जिसमे लिखा गया है कि शासक के ‘एक हाथ में आग और दूसरे में पानी’ होना चाहिए। अन्याय के खिलाफ वह ‘वज्राघात’ करे और न्याय के हित में ‘कोमलमना’ हो। यही वजह है कि कानून को अपनी जेब में रखने का भ्रम पालने वाले अपराधियों को उन्होंने  ‘बुलडोजर बाबा’ बन कर दंड देने का आदेश दिया। परन्तु हाल ही में बाबा ने राज्य के सभी सरकारी कर्मचारियों व पेंशनधारियों के महंगाई  भत्ते में विगत 1 जनवरी से तीन प्रतिशत की वृद्धि करने का आदेश दिया । इससे राज्य सरकार पर 222 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार आयेगा। महत्वपूर्ण यह है कि श्री योगी ने बढ़ती महंगाई का संज्ञान लेते हुए इसके अनुरूप फैसला किया। साथ ही तदर्थ शिक्षकों को संविदा आधार पर 50 हजार रुपए मासिक वेतन देने का भी निर्णय किया और राज्य के 100 विकास खंडों में शोधा​र्थियों की नियुक्तियां करने का आदेश भी दिया जिनकी तनख्वाह 30 हजार रुपए मासिक होगी। बेशक उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में ये कदम पर्याप्त नहीं हैं मगर योगी अब इस क्षेत्र में ऐसे  फैसले कर रहे हैं जिनसे राज्य की युवापीढ़ी के साथ समुचित न्याय हो सके। इसी वजह से उनके शासन माडल को ‘बाबा माडल’ कह कर अन्य राज्यों के मुख्यमन्त्री भी उस पर चलने की बात कह रहे हैं। इस माडल की सबसे बड़ी शर्त परिवार मोह का परित्याग है। बाबा के परिवार के लोग आज भी उत्तराखंड के  पहाड़ों पर वैसी ही सामन्य जिन्दगी बिताते हैं जैसी वर्षों पहले बिताते थे।  

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