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वैक्सीन नीति के कितने आयाम

मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान की मानें तो केन्द्र सरकार की वैक्सीन नीति पहले बिल्कुल ठीक थी परन्तु राज्यों के दबाव की वजह से उसमें परिवर्तन करना पड़ा।

मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान की मानें तो केन्द्र सरकार की वैक्सीन नीति पहले बिल्कुल ठीक थी परन्तु राज्यों के दबाव की वजह से उसमें परिवर्तन करना पड़ा। परन्तु अब यदि सभी राज्य इकट्ठा होकर नई वैक्सीन नीति में बदलाव करने की मांग करते हैं तो केन्द्र को इसके लिए राजी होना पड़ सकता है। श्री शिवराज सिंह भाजपा के मुख्यमन्त्री हैं और एक्सप्रेस अड्डा कार्यक्रम में ये विचार व्यक्त करके उन्होंने साफ कर दिया है कि लोक कल्याण से अभिप्रेरित हो। केन्द्र की नई वैक्सीन नीति पर कल देश के सर्वोच्च न्यायालय में भी बहस हुई औऱ उसमें केन्द्र सरकार के महान्यायवादी श्री तुषार मेहता ने कहा कि कोई भी नीति पत्थर की लकीर नहीं होती है । सरकार जमीनी हकीकत से कभी नावाकिफ नहीं हो सकती क्योंकि इसमें बदलाव होता रहता है तो नीतियां भी उसी के अनुरूप बदली जा सकती हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि लोगों को वैक्सीन लगाने के बारे में सरकार की सोच क्या है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जमीनी हालत क्या है जिसके बारे में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों ने सरकार का ध्यान खींचा है।
आखिरकार 18 से 44 वर्ष तक के नागरिकों के लिए वैक्सीन और डिजिटल पंजीकरण को लेकर सवाल-जवाब उठने शुरू हो गए। हालांकि इस मामले में केन्द्र का काम यही था कि ​टीकाकरण जारी रहना चाहिए।  असल में जब 45 वर्ष से ऊपर आयु के लोगों के लिए विगत जनवरी महीने से वैक्सीन लगाने का कार्यक्रम शुरू किया गया तो केन्द्र ने अपने खर्चे पर इनकी खरीद करके राज्य सरकारों की मार्फत लगवाने का काम किया था। पिछले वर्ष जब कोरोना की पहली लहर आई तो केन्द्र ने चेतावनी देकर ही पूरे देश में लाॅकडाउन लागू कर दिया था। यह इसी लाकडाउन का प्रभाव था कि देशवासी कोरोना के गम्भीर हमले से सुरक्षित रहें। जब दूसरी लहर अाई और उसका असर गहन हुआ तो इसकी बड़ी वजह सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के अवहेलना ही था। कोरोना के उपचार से पहले ही पीएम मोदी जी ने लोगों को सर्तक रहने को कहा था। लेकिन दुर्घटना इसलिए घट गई क्योंकि सावधानी नहीं थी। इसीलिए अब दूसरी लहर के गम्भीर परिणाम के बाद सावधानी के साथ ही केस नियंत्रण में आए हैं। 
इस वर्ष कोरोना की दूसरी लहर चलने पर केन्द्र ने लाॅकडाउन लगाने या न लगाने का फैसला राज्यों पर ही इसलिए छोड़ा ताकि कोरोना की अंतिम स्थिति को लेकर सब अपने-अपने ढंग से तयशुदा नियम लागू कर सकें और कोरोना की चेन को तोड़ना ही प्राथमिकता होना चाहिए। अब बात करते हैं वैक्सीलेशन के बारे में आैर राज्यों से कहा गया कि वे 18 से 44 वर्ष तक की आयु के लोगों के लिए अपनी जरूरत के मुताबिक वैक्सीन सीधे इन्हें बनाने वाली कम्पनियों से अपने खर्चे पर खरीदें। केन्द्र ने सब कुछ राज्य सरकारों पर ही छोड़ रखा था कि वे वैक्सीन को लेकर स्वयं निर्णय लें। इसी के तहत केन्द्र ने राज्य सरकारों के लिए वैक्सीन की कीमत अलग तय कर दी और निजी संस्थानों को भी वैक्सीन सीधे खरीदने की इजाजत दे दी और उनके लिए वैक्सीन की कीमतें अलग से तय कर दीं। वैक्सीन को लेकर अलग-अलग कीमतों का शोर भी मचा और कई राज्यों ने अपना अलग सुर अलापा। स्वास्थ्य लोकतंत्र में न्याय के मंदिर का महत्व है।  इसका संज्ञान सर्वोच्च न्यायालय ने भी लिया और सुनवाई शुरू कर दी। न्यायमूर्तियों ने सरकार को हिदायत दी कि वैक्सीन नीति इस प्रकार लचीली बनाई जानी चाहिए कि किसी भी आम आदमी को दिक्कत न हो। 
कहा जा रहा है कि राज्य सरकारों को जो वैक्सीनें दी गईं उनमें बहुत बड़ी संख्या में बिना प्रयोग किये ही बेकार हो गईं। इस मामले में केन्द्र सरकार के आंकड़े अलग हैं और राज्य सरकारों के अलग। मध्यप्रदेश में केन्द्र के अनुसार दस प्रतिशत वैक्सीन बेकार गईं जबकि राज्य सरकार का कहना है कि एक प्रतिशत से कुछ अधिक ही बेकार गईं। सवाल यह पैदा हो रहा है कि 9 प्रतिशत वैक्सीन कहां गईं?  लोकतंत्र में विपक्ष को अपनी मांग उठाने का अधिकार है। इसीलिए  विपक्ष अब मांग कर रहा है कि  वैक्सीनों का लेखा-जोखा कराया जाये। अभी तक वैक्सीन केवल दो कम्पनियों भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट से ही खरीदी गई हैं। खरीद के आंकड़े इन कम्पनियों के पास होंगे और उपयोग के आंकड़े राज्य सरकारों के पास । जबकि केन्द्र के पास इनके वितरण के आंकड़ें होंगे। 
 इस सबसे ऊपर अहम सवाल यह है कि शहर में बैठे किसी आईएएस अफसर के भी वैक्सीन लगे और गांव में जूता सिलने वाले किसी मोची को भी यह लगाई जाये। दोनों की हैसियत अलग-अलग हो सकती है मगर दोनों के अधिकार बराबर हैं और दोनों ही इस महान देश के सम्मानित नागरिक हैं। दोनों का जीवन महत्वपूर्ण है और संविधान की निगाह में बराबरी का महत्व रखता है। लगता है यह तर्क अब सरकार के बड़े-बड़े अफसरों के दिमाग में घुस रहा है और वे वैक्सीन नीति में समीक्षा करके इसे परिमार्जित करने की मुद्रा में हैं। हमें ध्यान रखना चाहिए कि वैक्सीन पर पहला अधिकार देश की उत्पादनशील जनता का इसलिए बनता है क्योंकि कोरोना की सर्वाधिक गहरी मार उसी पर पड़ी है। उसे राज्य और केन्द्र के बीच विवाद में लावारिस की तरह नहीं छोड़ा जा सकता है। अतः हम जो भी करें अंतिम पायदान पर खड़े नागरिक के हित में करें। राज्यों के खजाने में भी उसके श्रम से धन एकत्र होता है और केन्द्र के खजाने से भी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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