अमेरिका के मिनीपोलिस में अश्वेत अमेरिकी जार्ज फ्लाॅयड की पुलिस हिरासत में मौत के बाद भड़के दंगे इस देश की प्रगतिशीलता को मुंह चिढ़ा रहे हैं। लोगों का गुस्सा उस समय और बढ़ गया जब एक वीडियो में देखा गया कि सड़क पर गिरे जार्ज के गले को गोरे पुलिस वाले ने घुटने से दबा रखा है। इस दौरान जार्ज कहता रहा कि उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही है लेकिन पुलिस वाला उसे नहीं छोड़ता। अंततः जार्ज की मौत हो जाती है। अब लोग जार्ज को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर उतर आये हैं और हालात इस कदर बिगड़ गए कि मिनिसोटा में प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस स्टेशन को आग के हवाले करने के बाद इमरजैंसी लगानी पड़ी। पुलिस ने जार्ज पर आरोप लगाया था कि उसने 20 डॉलर के नकली नोट के जरिए एक दुकान से खरीददारी की कोशिश की, फिर उसने गिरफ्तारी का शारीरिक रूप से विरोध किया, इसके बाद बल प्रयोग करना पड़ा। किसी अपराधी को सजा दिलाने के लिए अमेरिका में न्याय प्रणाली है तो फिर निर्मम हत्या क्यों?
जार्ज की मौत के बाद अमेरिका में एक बार फिर काले और गोरे की बहस छिड़ गई है। इस देश के अश्वेत प्रताड़ना और पूर्वाग्रह के शिकार होते रहे हैं। अमेरिका में कोरोना वायरस तेजी से फैला है लेकिन आंकड़ों को देखा जाए तो वहां सबसे अधिक मौतें अफ्रीकियों की हो रही हैं। अभी तक तो यही कहा जा रहा था कि कोरोना वायरस किसी से भेदभाव नहीं करता लेकिन कोरोना से अश्वेतों की मौत होने पर यह कहा जा रहा है कि क्या कोरोना वायरस काले और गोरों से भेदभाव करने लगा है। अमेरिका में अश्वेत बहुत गरीब हैं, जिसकी वजह से उन्हें हर क्षेत्र में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा घर चलाने के लिए उन्हें काम पर जाना पड़ता है जिससे वे कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या अमेरिका में अश्वेतों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है, उनका कोई उपचार ही नहीं हो रहा है।
अमेरिका में नस्ली दंगों का इतिहास बहुत पुराना है। इस भेद का सबसे तीखा विरोध एक दिसम्बर 1955 से देखने को मिला था। घटना मांटगोमरी में एक बस में हुई थी। रोजा लुईस मैकाले नामक महिला ने कालों के लिए आरक्षित सीट जब एक गोरी महिला को देने से इन्कार कर दिया तो रोजा को हिरासत में ले लिया गया। इस फासीवादी हरकत से लोग इतने आक्रोशित हो गए कि रोजा की गिरफ्तारी नागरिक एवं मानव अधिकारों की लड़ाई में बदल गई। अमेरिका में कालों के साथ इस हद तक दुर्व्यवहार किया जाता रहा है कि उन्हें अपने नागरिक अधिकारों के प्रति लम्बा संघर्ष करना पड़ा है, तब कहीं जाकर 1965 में कालों को गोरे नागरिकों के बराबर मताधिकार दिया गया। अमेरिकी समाज को नस्लभेद के नजरिए से विभाजित करने की कोशिशों की पृष्ठभूमि में गैर अमेरिकियों का अमेरिका की जमीन पर ही बौद्धिक क्षेत्रों में लगातार कब्जा करते जाना भी है। ऐसे लोगों में अफ्रीकी और एशियाई देशों से पलायन कर अमेरिका में जा बसे लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या हो गई है। ये जिस किसी भी बौद्धिकता से ताल्लुक रखने वाले क्षेत्र में हों, अपने विषय में इतने कुशल और अपने कर्त्तव्य के प्रति इतने जागरूक हैं कि अपनी सफलताओं और उपलब्धियों से खुद तो लाभान्वित हुए ही, अमेरिका को भी लाभ पहुंचाने में पीछे नहीं रहे परन्तु विडंबना यह रही कि इन लोगों ने अपनी कर्मठता व योग्यता से जो प्रतिष्ठा व सम्मान अमेरिका की धरती पर अर्जित किया, वही अब इनके लिए गोरे-काले के भेद के रूप में अभिशाप साबित हो रहा है। इससे अमेरिकी समाज में नस्लीयता बढ़ती गई। 9/11 के आतंकवादी हमले के बाद साम्प्रदायिक हमलों का रंग और भी गहराता चला गया।
दुनियाभर में लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों की सीख देने वाला अमेरिका अपने भीतर झांक कर नहीं देखता। बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद यह धारणा बनी थी कि गोरों और कालों के बीच नस्लभेद खत्म हो जाएगा। ओबामा दो बार राष्ट्रपति बने लेकिन नस्लीय दंगे होते रहे। अश्वेतों की हत्याएं होती रही और दोषी पुलिस वालों को बरी किया जाता रहा। अमेरिकी अदालतें भी नस्लीय भेदभाव की मानसिकता से ग्रस्त होकर फैसले सुनाती रही। अमेरिका में भारतीयों के साथ भी लगातार नस्ली भेदभाव होता रहा है। विस्कोन्सिन गुरुद्वारे पर हुए हमलों से यह स्पष्ट हो गया था कि वहां अश्वेतों के लिए नहीं रहने लायक पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। भारतीयों पर गलत पहचान के चलते भी हमले हुए। जब भारतीय मूल की तमिल लड़की नीना दावुलूरी को मिस अमेरिका 2014 घोषित किया गया था। तब किसी ने उसे अरब देश की लड़की बताया, किसी ने आतंकवादी तो किसी ने कहा कि इसका ताज छीन लिया जाना चाहिए। प्रियंका चोपड़ा, अन्य भारतीय अभिनेताओं, अभिनेत्रियों और भारतीय राजनयिकों को भी वहां नस्ली भेदभाव का शिकार होना पड़ा।
अमेरिका में मार्टिन लूथर ने अफ्रीकी नागरिकों को समानता का अधिकार दिलाने के लिए लम्बा संघर्ष किया। उनका आंदोलन महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित था इसलिए उन्होंने अहिंसा का सहारा लिया। मार्टिन लूथर की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पता नहीं उनका सपना कब साकार होगा। फिलहाल तो अमेरिका काले और गोरों के बीच बंट चुका है। ट्रम्प प्रशासन को इस बात पर विचार करना होगा कि आखिर अमेरिका उबल क्यों रहा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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