अटल बिहारी वाजपेयी के मशहूर भाषणों के अंश  - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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अटल बिहारी वाजपेयी के मशहूर भाषणों के अंश 

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नयी दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रखर वक्ता थे और अपनी वाकपटुता के लिए जाने जाते थे। यहां परमाणु परीक्षण से लेकर कश्मीर और शिक्षा से लेकर प्रेस की आजादी तक कई तरह के विषयों पर उनके भाषण के अंश दिए जा रहे हैं:-

* 28 दिसंबर 2002 – विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन अवसर पर – ‘‘शिक्षा अपने सही अर्थों में स्वयं की खोज की प्रक्रिया है। यह अपनी प्रतिमा गढ़ने की कला है। यह व्यक्ति को विशिष्ट कौशलों या ज्ञान की किसी विशिष्ट शाखा में ज्यादा प्रशिक्षित नहीं करती, बल्कि उनके छुपे हुए बौद्धिक, कलात्मक और मानवीय क्षमताओं को निखारने में मदद करती है। शिक्षा की परीक्षा इससे है कि यह सीखने या सीखने की योग्यता विकसित करती है कि नहीं, इसका किसी विशेष सूचना को ग्रहण करने से लेना-देना नहीं है।’’

* 1998 में परमाणु परीक्षण पर संसद में संबोधन – ‘‘पोखरण-2 कोई आत्मश्लाघा के लिए नहीं था, कोई पुरुषार्थ के प्रकटीकरण के लिए नहीं था। लेकिन हमारी नीति है, और मैं समझता हूं कि देश की नीति है यह कि न्यूनतम अवरोध (डेटरेंट) होना चाहिए। वो विश्वसनीय भी होना चाहिए। इसलिए परीक्षण का फैसला किया गया।’’

* मई 2003 – संसद में – ‘‘आप मित्र तो बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं।’’
* 23 जून 2003 – पेकिंग यूनिवर्सिटी में – ‘‘कोई इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकता कि अच्छे पड़ोसियों के बीच सही मायने में भाईचारा कायम करने से पहले उन्हें अपनी बाड़ ठीक करने चाहिए।’’

* 1996 में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए – यदि मैं पार्टी तोड़ू और सत्ता में आने के लिए नए गठबंधन बनाऊं तो मैं उस सत्ता को छूना भी पसंद नहीं करूंगा।’’

* जनवरी 2004 – इस्लामाबाद स्थित दक्षेस शिखर सम्मेलन में दक्षिण एशिया पर बातचीत करते हुए – ‘‘परस्पर संदेह और तुच्छ प्रतिद्वंद्विताएं हमें भयभीत करती रही हैं। नतीजतन, हमारे क्षेत्र को शांति का लाभ नहीं मिल सका है। इतिहास हमें याद दिला सकता है, हमारा मार्गदर्शन कर सकता है, हमें शिक्षित कर सकता है या चेतावनी दे सकता है….इसे हमें बेड़ियों में नहीं जकड़ना चाहिए। हमें अब समग्र दृष्टि से आगे देखना होगा।’’

* 31 जनवरी 2004 – शांति एवं अहिंसा पर वैश्विक सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री का संबोधन – ‘‘हमें भारत में विरासत के तौर पर एक महान सभ्यता मिली है, जिसका जीवन मंत्र ‘शांति‘ और ‘भाईचारा’ रहा है। भारत अपने लंबे इतिहास में कभी आक्रांता राष्ट्र, औपनिवेशिक या वर्चस्ववादी नहीं रहा है। आधुनिक समय में हम अपने क्षेत्र एवं दुनिया भर में शांति, मित्रता एवं सहयोग में योगदान के अपने दायित्व के प्रति सजग हैं।’’

* 13 सितंबर 2003 – ‘दि हिंदू’ अखबार की 125वीं वर्षगांठ पर – ‘‘प्रेस की आजादी भारतीय लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है। इसे संविधान द्वारा संरक्षण मिला है। यह हमारी लोकतांत्रिक संस्कृति से ज्यादा मौलिक तरीके से सुरक्षित है। यह राष्ट्रीय संस्कृति न केवल विचारों एवं अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान करती है, बल्कि नजरियों की विविधता का भी पोषण किया है जो दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता।’’

* 13 सितंबर 2003 – ‘दि हिंदू’ अखबार की 125वीं वर्षगांठ पर – ‘‘किसी के विश्वास को लेकर उसे उत्पीड़ित करना या इस बात पर जोर देना कि सभी को एक खास नजरिया स्वीकार करना ही चाहिए, यह हमारे मूल्यों के लिए अज्ञात है।’’

* 23 अप्रैल 2003 – जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर संसद में – ‘‘बंदूक किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकती, पर भाईचारा कर सकता है। यदि हम इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के तीन सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होकर आगे बढ़ें तो मुद्दे सुलझाए जा सकते हैं।’’

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