एकनाथ शिंदे : ऑटो वाले से महाराष्ट्र के CM की कुर्सी तक का सफर, सब्र का नहीं बगावत का फल निकला मीठा - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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एकनाथ शिंदे : ऑटो वाले से महाराष्ट्र के CM की कुर्सी तक का सफर, सब्र का नहीं बगावत का फल निकला मीठा

कहावत है कि मेहनत और सब्र का फल मीठा होता है, लेकिन महाराष्ट्र के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिए बगावत का फल मीठा साबित हुआ और वह असंतोष की आवाज उठाकर मात्र दस दिन के भीतर राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गये।

 कहावत है कि मेहनत और सब्र का फल मीठा होता है, लेकिन महाराष्ट्र के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिए बगावत का फल मीठा साबित हुआ और वह असंतोष की आवाज उठाकर मात्र दस दिन के भीतर राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गये।
बगावत का बिगुल फूंक हिला दी सीएम कुर्सी 
जून महीने के पहले पखवाड़े में महाराष्ट्र में सब कुछ ठीक ठाक था। मौसम खुशगवार था और राजनीतिक आबोहवा में भी कुछ खास गर्मी नहीं थी, लेकिन फिर हैरान करने वाले घटनाक्रम सामने आने लगे, जिनसे राज्य में राजनीतिक तूफान आ गया। इस संकट के केन्द्र में थे शिवसेना के नेता और कभी पार्टी कार्यकर्ता के रूप में अपने राजनीतिक सफर का आगाज करने वाले एकनाथ संभाजी शिंदे, जिन्होंने अचानक बगावत का बिगुल फूंक दिया। उसके बाद गुजरे दस दिनों में उनका हर कदम उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी के नजदीक ले जाता रहा।
आजीविका के लिए चलाते थे ऑटो रिक्शा
एक समय मुंबई से सटे ठाणे शहर में आजीविका के लिए ऑटो रिक्शा चलाने वाले शिंदे ने राजनीति में कदम रखने के बाद बेहद कम समय में ठाणे-पालघर क्षेत्र में शिवसेना के प्रमुख नेता के तौर पर अपनी पहचान बनायी। उन्हें जनता से जुड़े मुद्दों को आक्रामक तरीके से उठाने के लिए पहचाना जाता है।
नौ फरवरी 1964 को जन्मे शिंदे ने स्नातक की शिक्षा पूरी होने से पहले ही पढ़ाई छोड़ दी और राज्य में उभर रही शिवसेना में शामिल हो गए। पार्टी की हिंदुत्ववादी विचारधारा और बाल ठाकरे के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही शिंदे ने शिवसेना का दामन थामा। मूलरूप से पश्चिमी महाराष्ट्र के सतारा जिले से ताल्लुक रखने वाले शिंदे ने ठाणे जिले को अपना कार्यक्षेत्र बनाया।
2004 के विधानसभा चुनाव में पहली बार बने विधायक 
शिंदे 1997 में ठाणे नगर निगम में पार्षद बने और 2004 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने। 2005 में उन्हें शिवसेना का ठाणे जिला प्रमुख बनाया गया। शिंदे के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें पार्टी में दूसरे सबसे बड़े नेता के रूप में देखा जाने लगा। उन्हें 2014 में संक्षिप्त अवधि के लिए महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी नियुक्त किया गया था।
ठाणे शहर की कोपरी-पचपखाड़ी सीट से विधायक शिंदे सड़कों पर उतरकर राजनीति करने वाले एक बिंदास और बेखौफ नेता के तौर पर पहचाने जाते हैं और उन पर हथियारों के साथ जानबूझकर चोट पहुंचाने और दंगा करने समेत विभिन्न आरोपों में दर्जनों मामले दर्ज हैं।
बाला साहेब ठाकरे का हमेशा जताते है आभार
शिंदे के पुत्र डॉ श्रीकांत शिंदे कल्याण सीट से लोकसभा सदस्य हैं।चार बार के विधायक शिंदे इससे पहले उद्धव ठाकरे नीत महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार में शहरी विकास और लोक निर्माण विभाग के मंत्री के रूप में प्रभार संभाल रहे थे। वह राज्य की राजनीति में अपनी सफलता के पीछे पार्टी संस्थापक बाला साहेब ठाकरे का आभार कई बार जताते रहे हैं।
शिंदे के पैतृक गांव दारे के रहने वाले शिवसेना नेता गणेश उतेकर ने शिंदे के मुख्यमंत्री बनने पर कहा कि यह हम सबके लिए एक सुखद आश्चर्य था, जब मुख्यमंत्री पद के लिए एकनाथ शिंदे के नाम का ऐलान किया गया। उन्होंने बताया कि गांव में सब लोग शिंदे के मुख्यमंत्री बनने की खुशियां मना रहे हैं। 
गाँव से हमेशा जुड़े रहे एकनाथ शिंदे 
गणेश उतेकर ने बताया कि गांव के ही स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने वाले शिंदे का राजनीतिक कद भले कितना भी बढ़ गया हो, लेकिन वह अपने गांव में अकसर आते रहे और गांव में लगने वाले वार्षिक मेले में हमेशा शिरकत करते रहे।
यही वजह है कि उन्हें आम आदमी से जुड़े नेता के रूप में पहचान मिली और अपने कौशल तथा सबकी बात सुनकर सबकी मदद करने की कोशिश करने का जज्बा आज उन्हें उस मुकाम तक लाया है, जिसका वह कभी ख्वाब देखा करते थे।

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