देहरादून : प्रदेश में 108 एंबुलेंस की खरीद को लेकर स्वास्थ्य विभाग कठघरे में है। करीब पांच माह बाद भी 61 नए वाहन स्वास्थ्य महानिदेशालय में खड़े धूल फांक रहे हैं। अब इसे लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। एंबुलेंस खरीद में केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मानक दरकिनार कर दिए गए। वाहनों का फैब्रिकेशन अभी हुआ नहीं पर पंजीकरण एंबुलेंस के तौर पर हो चुका है। उधर, नर्सेज एसोसिएशन के दो गुटों के बीच उपजा विवाद कम होता नहीं दिख रहा है। इस विवाद का साया अब पदोन्नति और तैनाती पर भी दिख रहा है। दरअसल, सरकार को एक साल पूरा होने पर परेड मैदान में आयोजित कार्यक्रम में सीएम ने नई एंबुलेंस को फ्लैग आफ किया था। लेकिन यह वाहन अभी एंबुलेंस के नाम पर दिखावा भर हैं। क्योंकि इनमें तमाम उपकरण नहीं लगे हैं।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने एक अप्रैल से एम्बुलेंस कोड लागू करने के साथ ही आटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड (एआइएस)-125 के मानक लागू किए हैं। जिसके तहत एम्बुलेंस निर्माण और उसके सुरक्षा उपायों के लिए अनिवार्य दिशा-निर्देश हैं। जिनका न केवल निर्माता द्वारा पालन किया जाना है, बल्कि एम्बुलेंस के पंजीकरण में भी एआइएस-125 का पालन होना है। लेकिन इनकी भी अनदेखी की गई। बताया गया कि एंबुलेंस खरीद में चार निविदाएं आई थीं। जिनमें दो कंपनी ने निविदा में एआइएस-125 के अनुसार स्ट्रेचर कम ट्रॉली व अन्य उपकरण का उल्लेख ही नहीं किया। निविदा निरस्त हो जानी चाहिए थी, पर ऐसा हुआ नहीं।
बिना फिटनेस चल रहीं कैट्स की 48 एंबुलेंस
इतना ही नहीं वाहनों के पंजीकरण में भी खेल किया गया। किसी भी वाहन में फैब्रिकेशन कार्य नहीं हुआ है, लेकिन इनका पंजीकरण एंबुलेंस के तौर पर कराया गया है। यानी मामला सरकारी खरीद से जुड़ा होने के कारण परिवहन विभाग ने भी इस तरफ आंखें मूंद लीं। बिना उपकरण लगी गाड़ी को एंबुलेंस में पंजीकृत कर लिया। जबकि यह काम फैब्रिकेशन के बाद किया जाना चाहिए था। इधर, स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. टीसी पंत का कहना है कि नियमों की अनदेखी नहीं हुई है। जहां तक फैब्रिकेशन का प्रश्न है, इसके टेंडर हो चुके हैं। यह काम भी कुछ समय में हो जाएगा।
– सुनील तलवाड़