उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ हुए गठबंधन में अब महात्वाकांक्षाओं का दौर शुरू हो गया है। चुनाव में कामयाबी न मिलने पर हार का दोष एक दूसरे पर मढ़ने लगे। बयानबाजियों का दौर अगर न रूका तो सपा के लिए गठबंधन की एकता बनाए रखने में बड़ी चुनौती होगी।
हार का कारण अपने सहयोगियों को ही मान रहे है
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, रालोद अध्यक्ष जयंत चैधरी, सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर व महान दल अध्यक्ष केशव देव मौर्य समेत गठबंधन के साथ भले ही 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने के दावे कर रहे हों, लेकिन समीक्षा में हार का कारण अपने सहयोगियों को ही मान रहे है। इसे भितरघात का आरोप भी दबी जुबान से लगा रहे हैं।राष्ट्रीय लोक दल के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले डा. मसूद अहमद ने कहा है कि गठबंधन चुनाव इसलिए हारा क्योंकि अखिलेश यादव अति उत्साह में यह मान चुके थे कि वह मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। नतीजा उल्टा आया।
गठबंधन में एका नहीं था और उसके घटक दलों में दूरी बनी रही
उन्होंने कहा कि गठबंधन अति आत्मविश्वास, सीटों के बंटवारे को लेकर ऊहापोह और टिकटों के वितरण में घालमेल के कारण हारा। गठबंधन में एका नहीं था और उसके घटक दलों में दूरी बनी रही। जयंत चैधरी जो सीटें मांग रहे थे, उन्हें नहीं मिली। डा. मसूद अहमद ने कहा कि विधानसभा चुनाव के पहले चरण के बाद रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कहीं मंच साझा करते नहीं दिखे। आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर के साथ जो दुर्व्यवहार हुआ, उससे दलित भाजपा की ओर चले गए। रालोद के कई स्थानीय नेता भी दबी जुबान से पार्टी के जनाधार वाली सीटें सपा के लिए छोड़े जाने पर नाराजगी जता रहे हैं।
ऐसे जुड़ते गए अन्य दल
सपा गठबंधन में महान दल , जनवादी पार्टी व रालोद पहले ही थे। इसके बाद इसमें ओमप्रकाश राजभर का दल भी शामिल हो गया। फिर भाजपा छोड़कर आए स्वामी प्रसाद मौर्या भी शामिल हो गये। इसके बाद महान दल के मुखिया को इनको सपा से मिल रही अहमियत रास नहीं आयी उन्होंने निशाना साधना शुरू कर दिया। सपा गठबंधन में शामिल महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने हार के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य पर ठीकरा फोड़ दिया है।
गठबंधन के विधायकों के भाजपा के संपर्क में रहने का भी खतरा बना हुआ है
चुनाव से ठीक पहले योगी कैबिनेट छोड़कर सपा में आए स्वामी प्रसाद मौर्य को लेकर केशव देव ने कहा है कि उनका आना भाजपा की साजिश का भी हिस्सा हो सकता है। स्वामी प्रसाद मौर्य खुद तो ओवरकॉन्फिडेंस में थे ही, सपा के दूसरे नेताओं को भी उन्होंने ओवरकॉन्फिडेंस में ला दिया। उन्होंने कहा कि सपा के प्रत्याशियों की ओर से महान दल के कैडर का कम इस्तेमाल किया गया। उस वोट पर सपा का फोकस कम था। ऐसी बयानबाजी से गठबंधन की गांठे ढिली पड़ सकती है।
गठबंधन के विधायकों के भाजपा के संपर्क में रहने का भी खतरा बना हुआ है। इसके अलावा सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की भाजपा के वरिष्ठ नेता गृहमंत्री अमित शाह से मिलने की चर्चा जोर पकड़ने लगी। हालांकि इस बात का उन्होंने खण्डन किया है और अगला लोकसभा चुनाव सपा के साथ लड़ने का एलान किया है। इस स्पष्टीकरण के बावजूद राजनीतिक गलियारों में उनको लेकर तरह-तरह की चचार्एं थम नहीं रही हैं।