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55 साल के हुए हॉकी के जादूगर Dhanraj Pillay, जानिए उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें…

धनराज पिल्लै को भारत के महान हॉकी खिलाड़ियों में गिना जाता है और इस खिलाड़ी की पहचान एक ऐसे खिलाड़ी के तौर पर होती थी जिसकी रफ्तार के सामने अच्छे से अच्छा डिफेंस हैरान रह जाता था। मगर भारतीय हॉकी को संवारने वाला ये खिलाड़ी एक समय देश में हॉकी के हुक्मरानों के खिलाफ भी खड़ा हुआ था।

हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है लेकिन उसके बावजूद बहुत कम लोग हॉकी के प्लेयर्स के बारे में जानते हैं। मगर आज हम आपको एक ऐसे हॉकी प्लेयर के बारे में बताने वाले है जिसने न सिर्फ भारतीय हॉकी को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया बल्कि विदेशों में भी देश का नाम रौशन किया। हॉकी के सुपरस्टार धनराज पिल्लै इकलौते ऐसे खिलाड़ी हैं जो चार ओलंपिक, चार वर्ल्ड कप, चार चैंपियंस ट्रॉफी और चार एशियन गेम्स खेल चुके हैं।
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आज हॉकी के महान खिलाड़ी रहे धनराज पिल्लै का जन्मदिन है और इस मौके पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक कहानियों के बारे में आपको बताते हैं। धनराज का जन्म 16 जुलाई 1968 को पुणे जिले के खड़की में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनको बचपन से ही हॉकी के प्रति अलाव था और छोटे में वो टूटी हुई लाठियों से खराब मैदानों पर हॉकी सीखा करते थे। 
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धनराज ने अपनी जिंदगी में काफी संघर्ष किया और एक दिन उनकी मेहनत रंग भी लाई। हॉकी के सुपरस्टार धनराज ने साल 1989 में पहली बार भारचीय हॉकी टीम में अपनी जगह बनाई थी। धनराज आज 55 साल के हो गए हैं। भारत के पूर्व कप्तान और महान खिलाड़ियों में शुमार धनराज जब टर्फ पर होते थे तो उनका खेल देखते ही बनता था। उनके खेल के बारे में कहा जाता था कि वो काफी तेज हैं, उनकी स्पीड की दुनिया तारीफ करती थी और इसी के दम पर धनराज अच्छे से अच्छे डिफेंस को भेदने में सफल रहे।
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जब वो मैदान पर होते थे तो लोगों की नजरें उन पर से हटने का नाम नहीं लेती थी। उनकी स्पीड ने हर किसी को अपना दीवाना बना दिया था। इस खिलाड़ी ने अपने करियर में देश को कई यादगार जीतें दिलाई। धनराज पिल्लै बैंकॉक एशियन गेम्स में सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे। साल 1994 में सिडनी में हुए वर्ल्ड कप में वो एकमात्र ऐसे भारतीय थे जिसे वर्ल्ड इलेवन में शामिल किया गया था। मगर भारतीय हॉकी को नया रूप देने वाला धनराज एक वक्त पर देश में हॉकी के हुक्मरानों के खिलाफ भी खड़े हो गए थे। 
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दरअसल, साल 1998 में खेले गए एशियाड में धनराज ने जबरदस्त खेल दिखाया था। मगर शानदार फॉर्म में होने के बावजूद उनको एफ्रो-एशियन गेम्स की टीम में नहीं चुना गया था। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि धनराज ने मैनेजमेंट के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। धनराज को लगता था कि हॉकी खिलाड़ियों को उतना पैसा नहीं मिलता जितने के वो हकदार हैं। उन्होंने साल 1998 में पाकिस्तान दौरे से पहले इसे लेकर प्रदर्शन भी किया था।
 धनराज पिल्लै ना सिर्फ एक अच्छे खिलाड़ी थे बल्कि वो उतने ही बेहतरीन कप्तान भी थे। धनराज हमेशा ही अपनी टीम को साथ लेकर चलते थे। इसी वजह से ही शायद उनका नाम आज भी भारतीय हॉकी के सफल कप्तान के तौर पर लिया जाता है। भारतीय हॉकी को नई ऊंचाई देने के बावजूद साल 2004 में एथेंस ओलंपिक में भारत के लिए अपने लास्ट मैच में धनराज को तत्कालीन कोच गेरहार्ड रैच द्वारा केवल 2 मिनट 55 सेकंड का खेल का समय दिया गया था।
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रैच और पिल्लै की कभी भी आपस में नहीं बनी थी। इसी वजह से धनराज जैसे दिग्गज प्लेयर को उनके आखिरी मैच में दिया खेल का समय को अबतक की सबसे खराब विदाई मानी जाती है। हालांकि जनवरी 2005 में रैंच को बर्खास्त कर दिया गया था। खेल रत्न और पद्मश्री रह चुके धनराज पिल्लै फिलहाल भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर हैं और ना सिर्फ भारत बल्कि मलेशिया में भी उनके चाहने वाले बड़ी संख्या में मौजूद हैं।

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