भारत रत्न के कामराज की आज 121वीं जयंती है। भारतीय राजनीति के इतिहास में कांग्रेस के कद्दावर नेता और तमिलनाडू के पूर्व मुख्यमंत्री रहे कुमारस्वामी कामराज किसी पहचान के मोहताज नहीं है। आज भी उन्हें आजाद भारत के पहले किंगमेकर के तौर पर याद किया जाता है क्योंकि लाल बहादूर शास्त्री और इंदिरा गांधी को पीएम बनवाने में इन्होंने ही खास रोल निभाया था।
के कामराज का जन्म
तमिलनाडु के विरदुनगर में एक व्यवसायी परिवार में 15 जुलाई 1903 को के. कामराज का जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम कामाक्षी कुमारस्वामी नाडेर था। हालांकि बाद में वो के. कामराज के नाम से जाने गए। कामराज अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे। वो महज 15 साल की उम्र में जलियावाला बाग हत्याकांड के चलते कामराज स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए थे। वहीं 16 साल की उम्र में वो कांग्रेस से जुड़ गए।
शिक्षा में योगदान
दक्षिण भारत की राजनीति में के. कामराज को शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा। 13 अप्रैल 1954 को कामराज पहली बार तमिलनाडु के सीएम बने थे। तमिलनाडु को एक ऐसा नेता मिल गया था, जिसने राज्य की साक्षरता दर को 7 फीसदी से बढ़ाकर 37 फीसदी तक पहुंचाने का काम किया था। इसके बाद कामराज लगातार 3 बार प्रदेश के सीएम बने।
तीन बार बने सीएम
कामराज ने अपने सीएम कार्यकाल के दौरान हर गांव में प्राइमरी स्कूल और हर पंचायत में हाईस्कूल खोलने की मुहिम चलाई थी। इस मुहिम के तहत ही उन्होंने प्रदेश में 11वीं तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की योजना चलाई थी। मुफ्त पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने मद्रास के स्कूलों में मुफ्त यूनिफॉर्म योजना की शुरुआत भी की थी। उन्होंने देश की आजादी के बाद राज्य में जन्मी नई पीढ़ी के लिए बुनियादी संरचना को मजबूत करने का काम किया था।
मिडडे मील की शुरूआत
ये बात बहुत कम ही लोग जानते है कि आजाद भारत में पहली बार मिडडे मील योजना चलाने का श्रेय भी के कामराज को ही जाता है। मिडडे मील को लेकर उनका कहना था कि राज्य के लाखों गरीब बच्चे कम से कम एक वक्त तो भरपेट खाना खा सकें। साल 1956-57 में के कामराज ने तमिलनाडु के सभी पंचायत और सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में मुफ्त भोजन की शुरुआत की थी।
मरणोपरांत मिला भारत रत्न
दिलचस्प बात ये है कि गांधीवादी कामराज की मृत्यु 2 अक्टूबर, 1975 को गांधी जयंती के दिन ही हार्टअटैक से हुई थी। कहा जाता है कि जब किंगमेकर कामराज का निधन हुआ तो उनके पास केवल 130 रुपये, 2 जोड़ी चप्पल, चार शर्ट और कुछ किताबे ही थीं। मरणोपरांत उन्हें साल 1976 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। आजादी के बाद गैर नेहरू और गांधी नेताओं में कामराज को कांग्रेस के सबसे दमदार अध्यक्ष के तौर भी जाना जाता है।