Old Yamuna Bridge: 'लोहे के पुल' का क्या है इतिहास? हर बार बाढ़ का शिकार और नए पुल का इंतजार - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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Old Yamuna Bridge: ‘लोहे के पुल’ का क्या है इतिहास? हर बार बाढ़ का शिकार और नए पुल का इंतजार

पुल ने कई बाढ़ों का सामना किया है जिनमें से सबसे विनाशकारी बाढ़ 1978 में आई थी जब शहर के बड़े हिस्से जलमग्न हो गए थे। ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी ने कुल 16,16,335 रुपये में इस पुल का निर्माण किया था।

आज कल देश की राजधानी दिल्ली में बाढ़ अपना कहर बरपा रहा है। लाल किला, राजघाट, आईटीओ और कई इलाके पानी में डूबे हुए है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स दावा कर रही है कि इस बार दिल्ली में यमुना नदी ने 48 सालों का रिकॉर्ड को तोड़ा है। एक समय था जब दिल्ली में बाढ़ का अनुमान पुराने ‘लोहे के पुल के पुल से लगाया करते थे और आज भी दिल्ली में यमुना नदी के पानी बढ़ने के अनुमान इसी पुल से लगाया जाता है। 
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इस बार फिर से दिल्ली बाढ़ के गिरफ्त में है और लोग इस पुल की तरफ अपनी आँखे गड़ा रखे है कि कब पानी पुल से निचे आए और दिल्ली के लोगों को बाढ़ से निजात मिले। आज के खबर में हम आपको इसी पुराने दिल्ली के लोहे के पुल के बारे में बताने वाले है। इतिहास कहता है कि इस पुल का निर्माण 1863 में शुरू हुआ और साल 1866 में समाप्त हुआ।
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कहा जाता है ये पुल अपने आप में नयाब था आम लोगों के लिए इस पुल को 1867 में खोल दिया गया। 200 इंच से अधिक के 12 स्पैन वाला यह पुल, अपने समय का एक इंजीनियरिंग चमत्कार था। कुल 2,640 फीट की लंबाई में बनाया गया यह पुल आज भी दिल्ली वालों को लिए जीवन रेखा बनी हुई है, पर इस पर भारी वाहनो आवाजाही नहीं होती है। 
डबल डेक स्टील ट्रस ब्रिज की लागत 
यह एक डबल डेक वाला स्टील ट्रस ब्रिज है जो दिल्ली के पूर्वी हिस्से में यमुना नदी पर लोगों को अपनी सेवा देता है। पुल पूर्व-पश्चिम में यमुना नदी के पार करते हुए दिल्ली शहर के मुख्य जगह को उसके पड़ोसी शाहदरा से जोड़ता है। रिपोर्ट्स कहती है ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी ने कुल 16,16,335 रुपये में इस पुल का निर्माण किया था। 
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पुल पर रेलवे लाइन 
डबल डेकर इस पुल पर पहले रेलवे की एक लाइन ही चलती थी, लेकिन 1913 में इसे डबल लाइन में बदल दिया गया। 1934 में पुल को सही से और भारी निर्माण किया गया जब उत्तरी रेलवे ने इसे उस समय के भारी यातायात को सहन करने में असमर्थ पाया था। पुल के निर्माण से पहले लाहौर और कलकत्ता से राजधानी की ओर जाने वाले यात्रियों को नावों में नदी पार कराया जाता था। पुल के निर्माण ने इसे बदल दिया, जिससे रेल यातायात में बड़ी वृद्धि हुई। 
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पुल ने देखें कितने बाढ़ 
पुल ने कई बाढ़ों का सामना किया है जिनमें से सबसे विनाशकारी बाढ़ 1978 में आई थी जब शहर के बड़े हिस्से जलमग्न हो गए थे। आज तक पुल पर यमुना का जल स्तर मापा जाता है और जब भी पुल पर नदी का स्तर खतरे के स्तर को पार करता है तो नीचे के क्षेत्रों को खाली करा लिया जाता है। एक बार फिर इस पुल पर सभी की निगाहें बनी हुई है, क्योकि इस बार भी पानी पुल को छू रहा है। 
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नए ब्रिज का काम 
पुराने लोहे के पुल के बराबर में एक नए पुल के निर्माण की योजना को 1997-98 में मंजूरी गई थी और काम 2003 में ही शुरू किया गया था। पहले इसका काम 2007 तक पूरा होने की उम्मीद थी, लेकिन आज तक यह पूरा नहीं हो पाया है। बताया गया कि सभी15 फाउंडेशनों का काम पूरा हो चुका है। “14 स्पैन में से, छह पर ओपन वेब गर्डर्स लॉन्च किए गए हैं। अन्य फिनिशिंग काम भी सितंबर तक पूरे हो जाएंगे। पर हालात ऐसे नहीं लग रहे है। 

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