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कौन थे परमाणु बम के जनक रॉबर्ट Oppenheimer, संस्कृत सीख गीता से लेते थे बड़े ज्ञान

इसका खुलासा उन्होंने 1960 के दशक में किया था। उन्होंने कहा कि जब दुनिया का पहला परमाणु विस्फोट सफल हुआ, तो भगवद गीता से भगवान कृष्ण के शब्द उनके दिमाग में गूंज उठे ‘अब मैं मृत्यु बन गया हूं, दुनिया का विनाशक’।

Main Highlights
  • कौन थे परमाणु बम के जनक रॉबर्ट Oppenheimer
  • संस्कृत सीख गीता से लेते थे बड़े ज्ञान 
  • परमाणु परीक्षण और भगवद गीता का एक श्लोक
  • परमाणु परीक्षण और उसका सफल होना
इस दुनिया में जब भी सबसे घातक बमों के नाम आते है, तो परमाणु बम एक ऐसा बम है जिससे सभी दिल दहल उठता है। पर क्या आपको इस बम को बनाने  वाले का नाम पता हैं। क्या आपने रॉबर्ट ओपेनहाइमर के बारे में सुना है? ये वही शख्स है जिन्होंने इस बम को खोज की थी। ये वही शख्स थे जिन्हें ‘परमाणु बम का जनक’ कहा जाता है। आज के खबर में हम आपको बताने वाले है कि कैसे इन्होंने गीता पढ़ने के लिए गीता सीखा और किताब के कुछ बातों को इन्होंने ऐसे साबित किया, जो आज तक कोई भी नहीं कर पाया है। 
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अमेरिकी भौतिक विज्ञानी रॉबर्ट ओपेनहाइमर परमाणु बम बनाने के लिए बनाई गई ‘लॉस एलामोस प्रयोगशाला’ के निदेशक थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उक्त लैब को ‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ के तहत विकसित किया गया था। पहले परमाणु परीक्षण को ‘ट्रिनिटी’ नाम दिया गया था। वह 16 जुलाई 1945 का दिन था जब यह किया गया था। जब यह परीक्षण हुआ तब रॉबर्ट ओपेनहाइमर एक बंकर में बैठे हुए थे, जबकि यह परीक्षण वहां से 10 किमी दूर न्यू मैक्सिको के जोर्नाडा डेल मुएर्टो के रेगिस्तान में हुआ था। कहा जाता है कि इस प्रोजेक्ट, जिसका नाम ‘प्रोजेक्ट Y’ भी था, पर काम करते समय उनका वजन काफी कम हो गया था और वे पतले हो गए थे। 
परमाणु परीक्षण और भगवद गीता का एक श्लोक
बताया जाता है कि इस प्रोजेक्ट के लिए उनकी लगातार 3 साल तक की गई मेहनत थी। टेस्ट के दिन वह ठीक से सो भी नहीं सके. कहा जाता है कि जब पहला परमाणु विस्फोट हुआ तो उसने सूर्य की रोशनी भी बुझा दी। 21 किलोटन टीएनटी से किया गया यह विस्फोट उस समय तक कहीं भी देखा या सुना नहीं गया था। रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने तब राहत की सांस ली जब विस्फोट के बाद मशरूम के आकार का घना धुएं का गुबार आसमान में उठा। धमाके का कंपन 160 किलोमीटर दूर तक सुना गया। 
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उनके दोस्त इसिडोर रबी ने बताया कि उसके बाद उन्होंने रॉबर्ट ओपेनहाइमर को एक सेकंड के लिए देखा था, उनके शब्दों में, जब वह कार से बाहर निकले तो उनकी चाल हवादार थी, ऐसा महसूस हो रहा था कि उन्होंने ऐसा किया है। उन्होंने इसकी तुलना दोपहर के सूरज से की. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस पहले परमाणु बम विस्फोट के बाद रॉबर्ट ओपेनहाइमर के दिमाग में क्या गूंज रहा था। दरअसल वह भगवत गीता से प्रेरित थे. उन्हें यह हिंदू धर्मग्रंथ बहुत पसंद था। 
पहला परमाणु विस्फोट सफल
इसका खुलासा उन्होंने 1960 के दशक में किया था। उन्होंने कहा कि जब दुनिया का पहला परमाणु विस्फोट सफल हुआ, तो भगवद गीता से भगवान कृष्ण के शब्द उनके दिमाग में गूंज उठे – “अब मैं मृत्यु बन गया हूं, दुनिया का विनाशक।” भगवद गीता में, भगवान कृष्ण अपने प्रिय मित्र अर्जुन की शंकाओं का उत्तर देते हुए उन्हें युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं। इस दौरान वह अपना विकराल रूप दिखाते हैं और बताते हैं कि वह विष्णु के रूप में कौन हैं। उपरोक्त श्लोक इस प्रकार है। 
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकांसमहर्तुमिह प्रवृत्त:।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यानेकेषु योधाः॥॥ 
इसका हिंदी अर्थ कुछ इस प्रकार होगा, “मैं ही प्रलय का मूल कारण और संसार का विनाश करने वाले महाकाल हूं।” आपके युद्ध में भाग न लेने पर भी युद्ध व्यूह में खड़े विरोधी पक्ष के योद्धा मारे जायेंगे। इसमें श्रीकृष्ण ने स्वयं को काल बताया है। ब्रह्माण्ड की सभी घटनाएँ अंततः समय के गर्भ में ही समाहित हो जाती हैं। यहां उन्होंने भगवान का भक्षक रूप दिखाया है। वह हर जीवित प्राणी और वस्तु को नष्ट करने में सक्षम है।
भगवद गीता का यह श्लोक रॉबर्ट ओपेनहाइमर को तब याद आया जब उनका परमाणु परीक्षण सफल हुआ था। बड़ी बात यह है कि इस टेस्ट के बाद वह काफी समय तक डिप्रेशन में रहे। उन्हें पता था कि इस परमाणु बम का आगे क्या उपयोग होने वाला है। एक दिन तो उन्हें जापानी लोगों की भी चिंता होने लगी। उन्होंने कहा था, ”ये बेचारे लोग…” लेकिन, 15 दिन बाद वह फिर से सब कुछ भूलकर अपने काम पर लग गए। उन्होंने बताया कि परमाणु बम को अधिक ऊंचाई पर नहीं फोड़ना चाहिए, अन्यथा लक्ष्य को ठीक से क्षति नहीं पहुंचेगी। 

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