अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना, हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है। इन पंक्तियों को लिखा है बशीर बद्र ने जो अपने आप में कई सारे बातों को समेटे हुए है। हाल ही के दिनों में देश की राजधानी दिल्ली में यमुना के पानी ने बाढ़ का रूप ले लिया है, लेकिन क्या इसको बाढ़ कहना सही है?
हम इस बात को ऐसे क्यों नहीं कह सकते कि यमुना नदी की घर वापसी हुई है। जिसके रास्ते मोड़ हमने अपने रास्ते बना दिए, वो अपने रास्ते फिर चली। हां हम बात कर रहे है, यमुना नदी की जिसने आज कल दिल्ली में अपना असली रूप दिखाना शुरू किया है।
राजधानी कई ऐसे ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है, जो अपने आप में अनेक बातों को समेटे हुए है। वो साल था सन् 1648 का जब शानो-शौक़त शाहजहाँ ने आगरा से दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई थी। राजधानी बनाए जाने से पहले मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने एक ऐसे जगह की तलाश की।
जहां एक ऐसे महल का निर्माण कराया जाएं,जो यमुना नदी से जुड़ा हुआ हो और आगरा तक भी उसी नदी से जाया जा सकें। काफी जांच के बाद राजधानी शाहजहांनाबाद में लाल किला का निर्माण करवाया था।
लाल किला की दीवारे अपनी विशालतम होने की वजह से जानी जाती है। आज हर जगह पर वीडियो में लाल किला के पीछे वाले रोड़ को पानी में डूबे हुए देख रहे होंगे। वो आज से 200 साल से पहले तक यमुना का असली रास्ता हुआ करता था।
आज यमुना के सीने पर कई रास्ते, पुल आदि का निर्माण कर दिया, पर यमुना की आवाज किसी ने नहीं सुनी। दिल्ली में आपको यमुना किनारे कई इसे ऊंचे-ऊंचे इमारत दिख जाएंगे, जो यमुना के मार्ग में है। सालों से सब ने सिर्फ यमुना के रास्ते में कटौती की है।
नदी पर बड़े-बड़े बैराज का निर्माण हुआ, पर नदी शांत रही। आज देश में हर जगह दिल्ली की बाढ़ की खबरे छाई हुई। पर कभी नदी से किसी ने नहीं पूछा कि उसकी क्या दिशा और दशा है। हमने भी कुछ तस्वीरों से समझाने की कोशिश की है।