चंडीगढ़ : हरियाणा लोक सेवा आयोग प्रदेश की भाजपा-जजपा सरकार के हाथों में कठपुतली बन गया है। एचसीएस भर्ती में होने वाले साक्षात्कार में तथाकथित विशेषज्ञों को अंक देने का अधिकार देने से स्पष्ट है कि पारदर्शिता की आड़ में प्रदेश सरकार हरियाणा लोक सेवा आयोग की गरिमा को तार-तार कर रही है और आयोग सरकार के आगे पंगू होकर रह गया है। एचसीएस के साक्षात्कार की कमेटी में आयोग का केवल एक सदस्य व तीन विशेषज्ञ शामिल करने के समाचारों से साफ है कि बीजेपी व जजपा सरकार मिलकर अपने चहेतों को एचसीएस अधिकारी बनाना चाहती है तथा लोक सेवा आयोग ने भी पूरी तरह पंगुता स्वीकार करते हुए सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है।
प्रदेश सरकार के गजटेड अधिकारियों के चयन के लिए साक्षात्कारों में अंक देना केवल लोक सेवा आयोग का दायित्व और अधिकार रहा है। इससे पहले एचसीएस के साक्षात्कार में अंक देने का कार्य आयोग ही करता था। सरकार को सदस्यों पर भरोसा नहीं है तो सरकार को स्पष्ट करना चाहिए और आयोग को भंग कर देना चाहिए। क्या चेयरमैन पर भी सरकार को भरोसा नहीं? अगर भरोसा है तो चेयरमैन खुद अपनी अगुवाई में पूरे आयोग के साथ साक्षात्कार क्यों नहीं ले रहे हैं?
एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या आयोग अपने संवैधानिक अधिकारों और दायित्वों को किसी और को सौंप सकता है? अगर साक्षात्कार कमेटी में 3 विशेषज्ञ व आयोग का एक सदस्य बैठेगा तो इसका मतलब होगा कि सरकार तथा आयोग द्वारा बुलाए गए इन तथाकथित विशेषज्ञों के पास नौकरी के चयन के लिए आयोग से तीन गुना अधिक ताकत होगी। ऐसे में उस चयन प्रक्रिया को क्या हरियाणा लोक सेवा आयोग द्वारा किया गया चयन माना जा सकता है? यदि उस भर्ती में कोई घोटाला या गलती पाई जाती है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा?
एचसीएस की भर्ती पहले ही सवालों के घेरे में है, वहीं दूसरी ओर हरियाणा लोक सेवा आयोग अपने संवैधानिक अधिकारों से पीछे हट रहा है। यह एक सवैंधानिक आयोग है और अपनी मनमर्जी के नियम व कानून नहीं बना सकता। सवाल यह भी उठता है कि आखिरकार साक्षात्कार के लिए इन विशेषज्ञों का चयन किस आधार पर किया गया है? क्या इसके लिए आयोग को सरकार ने मजबूर किया या फिर आयोग ने अपनी तरफ से यह निर्णय लिया? अगर आयोग ने स्वयं यह फैसला लिया तब भी यह गलत और असंवैधानिक है।
आयोग अपने संवैधानिक दायित्वों को दरकिनार करके विशेषज्ञों को अपने अधिकार और दायित्व कैसे सौंप सकता है? आयोग एक संवैधानिक पीठ है और वह अपने अधिकार से पीछे नहीं हट सकता है। यदि सरकार ने यह दबाव बना कर करवाया है, तब यह भी गलत और गैर कानूनी होगा।