राजधानी दिल्ली आजादी के बाद अनियोजित विकास का शिकार हो गई। जिससे महानगर का स्वरूप ही काफी बिगड़ चुका है। केवल लुटियन की दिल्ली को छोड़ कर पूरा शहर आबादी के बोझ तले दबता ही गया। एक तरफ राजनीतिज्ञों, अफसरों और भूमाफिया की सांठगांठ से अनधिकृत कालोनियां बसाई जाती रहीं तो साथ-साथ झुग्गी बस्तियां भी बसाई जाती रहीं। एक तरफ दिल्ली में गगनचुम्बी इमारतें हैं तो उनके सामने ही झुग्गी बस्ती भी हैं। महानगर में अमीर और गरीब की खाई बहुत चौड़ी दिखाई देती है और कहीं जगह नहीं मिली तो रेलवे लाइनों के किनारे की जमीन अतिक्रमण का शिकार हो गई। बस गई झुग्गी बस्तियां, आप ट्रेन में कहीं भी जाइये, सुबह-सुबह आपको लोगों का नारकीय जीवन देखने को मिल जाएगा। गंदगी के बीच नंग-धड़ंग बच्चे आपको खेलते हुए मिल जाएंगे। सड़ांध मारते इलाके से तो आप गुजर ही नहीं सकते। झुग्गी झोपड़ी बस्ती निवासियों के लिए उनके घर को ढहाए जाने और उन्हें दूसरी जगह बसाये जाने के अनुभव नए नहीं हैं। झुग्गी झोपड़ी बस्तियां सार्वजनिक भूमि पर बसे हुए अनियोजित रिहायशी इलाके हैं, जिनमें दिल्ली की लगभग 20 फीसदी आबादी रहती है। जिस तरह अनधिकृत कालोनियों पर सियासत हुई, हर बार चुनावों में अनधिकृत कालोनियों को पास करने के वायदे किए गए और यहां के निवासी वोट बैंक बन जाए। इसी तरह यमुना पुश्ते समेत दिल्ली के विभिन्न इलाकों में बसी झुग्गी बस्तियां भी वोट बैंक बन गईं। छुटभैय्ये नेताओं ने इनके राशन कार्ड बनवा कर अपने घर भर लिए। 1960 के दशक से लेकर अब तक ऐसी बस्तियों को जबरन खाली कराने और पुनर्वासित करने के कई दौर चले।
2010 के राष्ट्रमंडल खेलों से ठीक पहले वह दौर भी आया जब 217 झुग्गी बस्तियों को तोड़ा गया। इसकी वजह से 50 हजार परिवार विस्थापित हो गए। सामाजिक संगठनों ने इन बस्तियों को जबरन हटाए जाने का कड़ा विरोध किया था। झुग्गी बस्तियां गिराने के मामलों का अदालत ने संज्ञान भी लिया और कई विरोधाभासी आदेश भी जारी किए। सरकारों की नीति भी बदली। समस्या तो यह भी रही कि नियोजित बस्तियों के बीच झुग्गी झोपड़ी कैम्प बने हुए हैं, उनकी जमीन को लेकर भी अस्पष्टता रही। एक तरफ डीयूएसआईबी इन जमीनों को केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के तहत आने वाली एजैंसी लैंड एंड डेवलमेंट आफिस के तहत अनुसूचित करता है वहीं लोक निर्माण के अधिकारी दावा करते हैं कि जमीन का मालिकाना हक लोक निर्माण विभाग का है। अब दिल्ली में 140 किलोमीटर तक रेल पटरियों के किनारे करीब 48 हजार झुग्गियां हटाने का मसला सामने आया है। एक अनुमान के अनुसार नारायणा विहार, आजादपुर, शकूर बस्ती, मायापुरी, श्रीनिवासपुरी, आनंद पर्वत और ओखला में झुग्गियों में लगभग 2,40,000 लोग रहते हैं। उत्तर रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट को इस संबंध में एक रिपोर्ट सौंपी है। दिलचस्प बात यह है कि हर झुग्गी में बिजली का कनैक्शन है। उसमें रहने वाले लोगों के पास आधार कार्ड आैर राशन कार्ड हैं। दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने पिछले वर्ष झुग्गीवासियों के लिए सामुदायिक शौचालय बनवाए थे ताकि कोई भी खुले में या पटरी के किनारे शौच नहीं करे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजनीति भी गर्मा गई है। भाजपा केजरीवाल सरकार को निशाना बना रही है, कांग्रेस नेता अजय माकन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनका कहना है कि कोरोना काल में अगर झुग्गी वालों को बेघर किया गया तो बड़ी त्रासदी हो सकती है। कोरोना काल में पहले ही मजदूरी करने वालों की कमर तोड़ कर रख दी है। घर की गुजर-बसर करना भी मुश्किल हो रहा है। मानवीय दृष्टिकोण से देखें तो इतनी बड़ी आबादी को बेघर करना अमानवीय ही होगा। केन्द्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि फिलहाल रेलवे लाइन किनारे बसी झुग्गियां नहीं हटाई जाएंगी। शहरी विकास मंत्रालय रेलवे मंत्रालय और दिल्ली सरकार के साथ बैठकर चार सप्ताह में इस मसले का हल निकालेगा।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का कहना है कि पूर्व की सरकारों द्वारा अच्छी योजनाएं नहीं बनाई गईं, जिसके चलते दिल्ली में झुग्गियां बढ़ती गईं। उन्होंने वादा किया कि बिना पक्का घर दिए किसी को उजाड़ा नहीं जाएगा लेकिन यह काम भी बहुत चुनौतीपूर्ण है। केन्द्र सरकार भी देश को झुग्गी मुक्त कराने की दिशा में काम कर रही है। यद्यपि सरकारी आदेशों और कानून में पुनर्वास के लिए योग्यता के मापदंडों और इससे जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख है, जैसे कि पुनर्वास के योग्य निवासी किन सेवाओं के हकदार होंगे और पुनर्वास के लिए पात्र समझे जाने वाले परिवारों का सर्वेक्षण कैसे किया जाता है परन्तु ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जो झुग्गियों को हटाने की नीति को स्पष्ट रूप से स्थापित करे। अगर शहरी विकास मंत्रालय, दिल्ली सरकार और सम्बद्ध विभाग मिलकर काम करें और झुग्गी बस्तियां हटाने की कोई स्पष्ट नीति तैयार करें तो लोगों की समस्या को दूर किया जा सकता है। समस्या केवल दिल्ली की नहीं है बल्कि देशभर में यही समस्या है। पहले भ्रष्टाचार के चलते लोगों को सरकारी जमीन पर मकान बनाने दिए जाते हैं फिर उन पर बुलडोजर चलाया जाता है।
जब भी गिरते हैं, गरीबोें के घर गिरते हैं। आबादी को रहने लायक छत तो नसीब होनी चाहिए, इसके लिए ठोस नीतियों की जरूरत है। दिल्ली को झुग्गी मुक्त बनाने के एक्शन प्लान पर काम किया जाना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com