जींद: जरा बचकर! आप जो पानी पी रहे है, कहीं वह आपके स्वास्थ्य पर डाका ना डाल रहा हो। क्योंकि इन दिनों जन स्वास्थ्य विभाग शहर में जो पानी सप्लाई कर रहा है, उसमें क्लोरिन ही नहीं है। इसके चलते बारिश के मौसम में सप्लाई हो रहा बिन क्लोरिन पानी किसी जहर से कम नहीं है। पानी के रूप में लोगों के अंदर खतरनाक बैक्टीरिया घुसपैठ कर रहे हैं। खुद स्वास्थ्य विभाग शहर में सप्लाई हो रहे पाानी को सेहत के लिए बेहद खतरनाक मानकर चल रहा है। इस खतरे को कुछ हद तक कम किया जा सकें, इसके लिए स्वास्थ्य विभाग लगभग एक लाख 40 हजार क्लोरिन की गोलियां शहर के घरों में वितरित कर चुका है। पिछले दिनों डीसी अमित खत्री के निर्देशों पर स्वास्थ्य विभाग ने 48 स्थानों से पानी के सैम्पल भी लिये थे। इन सैंपलों में से आर्थोडोनीजिस्ट (क्लोरिन की मात्रा) को खुद जांचा था और बैक्टीरिया जांचने के लिए (बैक्टरोजिस्ट) जनस्वास्थ्य विभाग की लैब में भेजा है।
जनस्वास्थ्य विभाग की लैब से चार सैंपल तो फेल भी आ चुके है और अन्यों का रिजल्ट आना अभी बाकी है। स्वास्थ्य विभाग की इस छापेमारी से यह बात सामने आई थी कि लगभग 80 प्रतिशत पानी में क्लोरिन की मात्रा ही नहीं है। यहां तक जिले को खैने वाले जिस डीसी कॉलोनी में रहते है, उस एरिये के पानी में भी क्लोरिन की मात्रा जीरो है। सूत्रों की बातों पर भरोसा करें तो जनस्वास्थ्य विभाग के पास क्लोरिन की दवाई ही पिछले एक माह से खत्म हो चुकी है। ऐसे में वह पिछले एक माह से जो पानी सप्लाई कर रहा है, वह बिन क्लोरिन के है। जनस्वास्थ्य विभाग की इस बड़ी लापरवाही के चलते शहर के हजारों लोग बीमारी की जकड़ में आकर सरकारी और निजी अस्पतालों में ईलाज ले रहे हैं। शहर में इस समय जनस्वास्थ्य विभाग की ओर से लगभग 50 ट्यूबवैल लगाएं गए है और पानी के 15 हजार से ज्यादा कनैक्शन दिये गए है। लगभग दो लाख की आबादी वाले शहर में 70 प्रतिशत तक लोग जनस्वास्थ्य विभाग का पानी पी रहे हैं। खतरे की घंटी सबसे ज्यादा उन लोगों के लिए है, जिनके घरों में आरओ तक नहीं है।
हालांकि जो कार्य क्लोरिन की दवा कर सकती है, वह आरओ से मुमकिन नहीं है। ऐसे में जनस्वास्थ्य विभाग की लापरवाही शहर के लोगों के लिए बड़ा खतरा बनी हुई हैं। सूत्रों की बातों पर भरोसा करें तो पानी की सप्लाई के साथ क्लोरिन की दवाई का मिश्रण न होने का मसला जब पिछले दिनों जनस्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के समक्ष पहुंचा तो उन्होंने पानी, स्वास्थ्य, स्वास्थ्य विभाग, बारिश, मौसम, कर्मचारियों, को लताड़ पिलाई। किंतु कर्मचारियों ने दो टूक शब्दों में कहा कि इसमें उनका कसूर नहीं। अगर क्लोरिन की दवाई होती तो वे निश्चित तौर पर पानी की सप्लाई में उसे शामिल करते। एक माह से ज्यादा समय से क्लोरिन की दवाई का न होना इस बात को पुख्ता करता है कि जनस्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अपनी ड्यूटी के प्रति कतई भी संजीदा नहीं है।
– संजय शर्मा