भारत ने जब भी चीन से दोस्ती का हाथ बढ़ाया उसने हमारी पीठ में खंजर घोप दिया। भारत में जी-20 की सफलता और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बढ़ती अन्तर्राष्ट्रीय छवि से परेशान चीन ने एक बार फिर घिनौनी हरकत की। खेलों के आयोजन और कला संस्कृति के आदान-प्रदान से देशों के रिश्ते मजबूत होते हैं लेकिन धूर्त चीन ने खेल प्रतिस्पर्धाओं के बीच अपनी पुरानी चाल को फिर दोहराया। चीन के हांग झाउ शहर में आयोजित एशियाई खेलों में भाग लेने जाने वाले अरुणाचल प्रदेश के रहने वाले तीन भारतीय वुशू खिलाड़ियों को एंट्री देने से मना कर दिया। चीन पहले भी अरुणाचल के निवासियों को नत्थी यानि स्टेपल वीजा जारी करता रहा है। स्टेपल वीजा का मतलब चीन उन्हें भारत का नागरिक नहीं मानता। उसका कहना है कि अरुणाचल चीन का हिस्सा है, इसलिए अरुणाचल के लोगों को चीन आने के लिए वीजा की जरूरत ही नहीं है। भारत ने इस पर कड़ा प्रोटेस्ट जताते हुए अपने तीन खिलाड़ियों को हवाई अड्डे से ही लौटा लिया। केन्द्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने अपना चीन दौरा भी रद्द कर दिया। चीन के अधिकारियों ने टारगेट और पूर्व निर्धारित तरीके से भारतीय खिलाडि़यों को मान्यता और प्रवेश से वंचित करके उनके साथ भेदभाव किया है। चीन का कृत्य एशियाई खेलों की भावना, उनके आचरण को नियंत्रित करने वाले नियमों का उल्लंघन करता है। भारत निवास स्थान के आधार पर भारतीय नागरिकों से भेदभावपूर्ण बर्ताव को अस्वीकार करता है। इसलिए भारत ने उचित कदम उठाते हुए उसको मुंहतोड़ जवाब दिया।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद बरसों से चल रहा है। कभी लद्दाख में चीन के सैनिक भारतीय सीमा में घुस आते हैं तो कभी डोकलाम और तवांग में घुसने की हिमाकत करते हैं। भारत ने हर बार सख्ती से जवाब दिया और भारतीय सैनिकों ने चीन के जवानों की गर्दन मरोड़ कर उन्हें वापिस जाने को मजबूर किया। लद्दाख सीमा पर गतिरोध अभी भी बना हुआ है और 18 दौर की बातचीत के बाद भी चीन अपने सैनिकों को पूर्व बिन्दुओं पर ले जाने को तैयार नहीं हो रहा। चीन सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा। चीन हर बार 109 साल पुराने उस सच से भागने की कोशिश करता है जो भारतीय इलाकों में जताए जा रहे चीन के हर दावे की पोल खोल देता है। 1950 से लगातार चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता आ रहा है। चीन अरुणाचल के दक्षिणी तिब्बत होने का दावा करता है, इसलिए वह इस भारतीय राज्य पर अपना दावा जताता है।
भारत और चीन के बीच विवाद की प्रमुख वजह 3500 किमी लम्बी सीमा रेखा है। इसे मैकमोहन लाइन कहते हैं। चीन लगातार इसे मानने से इन्कार करता है। मैकमोहन लाइन 109 साल पहले 1914 में हुए उस शिमला समझौते के बाद खींची गई थी जिसमें ब्रिटिश भारत, चीन और तिब्बत अलग-अलग शामिल हुए थे। इस समझौते के मुख्य वार्ताकार सर हेनरी मैकमोहन थे, इसीलिए इसे मैकमोहन लाइन कहते हैं। उस समय भारत व तिब्बत के बीच भी 890 किमी. की सीमा रेखा का बंटवारा हुआ था। खास बात ये है कि इस समझौते में तवांग को भारत का हिस्सा माना गया था।
109 साल पहले हुए इस समझौते को चीन नहीं मानता। इससे पहले 2021 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 15 जगहों के नाम बदले थे और 2017 में भी उसने कई इलाकों के नाम बदले। पिछले महीने ही चीन ने अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश, अक्साईचिन, ताइवान, दक्षिणी चीन सागर और कई विवादित क्षेत्रों को शामिल कर लिया था। आक्साईचिन पर तो चीन ने 1962 में कब्जा कर लिया था। बाद में वह इससे पीछे हट गया था। यह सब जानते हैं कि चीन अरुणाचल के साथ लगती अपनी सीमा में जबरदस्त बुनियादी ढांचे को कायम कर रहा है और उसने सड़क, पुल, छावनी बना लिए हैं। उसकी नजरें अरुणाचल पर लगी हुई हैं। भारत-कनाडा विवाद से चीन का नाम भी जुड़ रहा है।
चीन की चालों को पुरानी चाल कहकर नजरंदाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि वह अपनी विस्तारवादी नीतियों पर लगातार काम करता रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय सेना अब चीन को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। मगर चीन की हरकतों पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कूटनीतिक कदमों की जरूरत है। इसके लिए केन्द्र सरकार को ठोस और निर्णायक कदम उठाने होंगे।

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