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चीनी जासूस जहाज का पंगा

पिछले लगभग तीन वर्षों में चीन ने सारी हदें पार कर दी हैं। सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए नए-पुराने सभी समझौतों की धज्जियां उड़ाई हैं। डोकलाम और गलवान जैसे गम्भीर विवाद खड़े किए।भारत ने भी पहली बार इतना जबरदस्त प्रतिरोध दिखाया जिसकी चीन ने कल्पना भी नहीं की होगी।

पिछले लगभग तीन वर्षों में चीन ने सारी हदें पार कर दी हैं। सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए नए-पुराने सभी समझौतों की धज्जियां उड़ाई हैं। डोकलाम और गलवान जैसे गम्भीर विवाद खड़े किए। भारत ने भी पहली बार इतना जबरदस्त प्रतिरोध दिखाया जिसकी चीन ने कल्पना भी नहीं की होगी। पूर्वी लद्दाख में अभी भी गतिरोध कायम है। चीन की आक्रामक नीतियां भारत के लिए गम्भीर खतरा हैं, साथ ही विश्व शांति एवं संतुलित विश्व व्यवस्था के लिए भी एक बड़ा खतरा है। दुनिया के अधिकांश देश चीन की इस मंशा से वाकिफ हैं। भारत-चीन तनाव की जड़ सीमा विवाद है ही, लेकिन उसका अहंकार, सत्ता की महत्वाकांक्षा, स्वार्थ एवं खुद को शक्तिशाली दिखाने की इच्छा भी है। चीन की ओर से भारत के खिलाफ पेश की जा रही लगातार चुनौतियों पर मोदी सरकार सतर्क एवं सावधान है। चीन की हर हरकत पर लगाम लगाना जरूरी है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इस समय दोनों देशों के संबंध बहुत कठिन दौर से गुजर रहे हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर कई बार यह कह चुके हैं कि सीमा की स्थिति दोनों देशों के संबंधों की स्थिति का निर्धारण करेगी। चीन किस तरह का शांतिप्रिय देश है, इसका अनुमान श्रीलंका, नेपाल, बंगलादेश और पाकिस्तान की स्थिति से लगाया जा सकता है। अब नया पंगा चीन के जासूसी जहाज को लेकर है। चीन का यह जहाज युआन वांग-5, 11 अगस्त को श्रीलंका के हबंनटोटा बंदरगाह पर आने वाला था।  6 दिन रुकने के बाद यह जासूसी जहाज श्रीलंका से किसी अज्ञात स्थान की ओर रवाना होने वाला था। भारत ने इस जहाज से अपनी सुरक्षा को खतरा माना। भारत सरकार ने श्रीलंका के सामने इस जहाज के आगमन को लेकर कड़ा विरोध जताया। 
पहले तो श्रीलंका ने भारत को अंधेरे में रखने की कोशिश की और हीलाहवाली करनी शुरू कर दी। श्रीलंका ने इस मसले पर सफाई देते हुए इसे नियमित गतिविधि बताया और कहा कि उसने पहले भी कई देशों को ऐसी इजाजत दी है। जब भारत ने कड़ा प्रोटेस्ट जताया तो श्रीलंका सरकार ने चीन से कहा है कि भारत को चिंता इस बात की है कि चीन इस बंदरगाह को सैन्य अड्डा बनाने की ताक में है। जहां तक चीनी जासूसी जहाज का सवाल है, इस जहाज की रेंज 750 किलोमीटर से अधिक है। इसका सीधा अर्थ यह है कि कलपक्कम, कूडनकुलम और भारतीय सीमा के भीतर परमाणु शोध केन्द्रों पर आसानी से निगरानी रखी जा सकती है। इसके अलावा वह भारत की सैन्य उड़ानों पर नजर रख सकता है। इससे चीन को महत्वपूर्ण डाटा मिल सकता है। युआन वांग-5 स्पेस और सैटेलाइट ट्रैकिंग के अलावा इंटरकॉन्टिनेंटल वैलिस्टिक मिसाइल के लांच का भी पता लगा सकता है। अरब सागर में जासूसी करने से भारत और अमेरिका की टेंशन बढ़ सकती है। वह अपने जासूसी जहाज का आगमन टाल दे। ​
फिलहाल तो भारत का दबाव काम करता नजर आ रहा है लेकिन भारत सरकार अभी भी श्रीलंका के रवैये से संतुष्ट नहीं है। भले ही श्रीलंका यह कहता आया है कि वो ​हबंनटोटा बंदरगाह का इस्तेमाल सैन्य गति​विधियों के लिए नहीं होने देगा। श्रीलंका के दक्षिण में स्थित हबंनटोटा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जगह पर स्थित है। श्रीलंका ने इसे चीन से कर्ज लेकर बनाया है। कर्ज न चुका पाने की स्थिति में उसने यह पोर्ट चीन को सौ साल के पट्टे पर दे दिया था। ये बंदरगाह एशिया से यूरोप के बीच मुख्य समुद्री व्यापार मार्ग पर स्थित है। 
हिन्द महासागर में ही अमेरिका का नौसैनिक अड्डा डियागो गार्सियो में मौजूद है। श्रीलंका की मजबूरी यह है कि इस समय वह घोर आर्थिक संकट में है। श्रीलंका पर कुल विदेशी कर्ज का काफी हिस्सा अकेले चीन का है। चीन का कर्ज श्रीलंका की आर्थिक दुर्दशा का अहम कारण भी है। आर्थिक संकट से जूझते श्रीलंका को भारत ने दवा, ईंधन से लेकर हर सम्भव मदद की है। सवाल यह भी है कि भारत से चार अरब डालर की मदद लेकर भी श्रीलंका ने चीनी जासूसी जहाज को आने की अनुमति क्यों दी। श्रीलंका पूरी तरह चीन के प्रपंच में फंसा हुआ है और वह एकदम से अपनी विदेश नीति नहीं बदल सकता। 
वर्ष 2014 में भी चीन की एक पनडुब्बी कोलम्बो के पास आ गई थी, तब भी भारत सरकार ने इस पर चिंता जताई थी। अब जबकि भारत संकट की घड़ी में श्रीलंका के साथ खड़ा है, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से उसे ऋण दिलवाने के लिए भी पैरोकार बना हुआ तो उसे भारत को भरोसे में लेना चाहिए। श्रीलंका की जनता को भी अब चीन नहीं मददगार भारत आ रहा है। श्रीलंका के पास भारत के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। बेतहर यही होगा कि श्रीलंका चीन के साथ दूरी बनाए, खुद को भी चीन के शिकंजे से मुक्त कराए और जहाज के आगमन को टालने की बजाय उसे साफ इंकार करे। उसे भारतीय हितों के अनुरूप कदम उठाने चाहिए। श्रीलंका इस समय राजनीतिक बदलाव के दौर में है, इसलिए उसे खुद को बचाने  के लिए सोच-समझ कर कदम उठाने चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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