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जानलेवा ओमीक्राेन : तीसरा युद्ध

दो साल से महामारी से जूझती दुनिया को कोरोना वायरस के डेल्टा वैरियंट से राहत मिलती दिख रही थी लेकिन कोरोना के ओ​मीक्राेन वैैरियंट ने हालात को और जटिल बना दिया है।

दो साल से महामारी से जूझती दुनिया को कोरोना वायरस के डेल्टा वैरियंट से राहत मिलती दिख रही थी लेकिन कोरोना के ओ​मीक्राेन वैैरियंट ने हालात को और जटिल बना दिया है। अब दुनिया के 89 देशों में ओ​मीक्राेन के वैरियंट मिल चुके हैं और कम्युनिटी ट्रांसमिशन के चलते इसके केस 1.5 से तीन दिनों में दुगने हो चुके हैं। चिंता की बात यह भी है कि ओ​मीक्राेन उन देशों में ज्यादा फैल रहा है जहां आबादी में रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है। ओ​मीक्राेन से ब्रिटेन, अमेरिका, इस्राइल और कनाडा आदि देश प्रभावित हैं। ब्रिटेन के हालात तो बहुत ही ​बिगड़ चुके हैं। अब तक दुनिया में इससे 14 मौतें हो चुकी हैं। अब यह साफ हो चुका है कि यदि इस वैरियंट का प्रसार इसी गति से होता रहा तो ऐसे देशों में जल्द ही यह वायरस डेल्टा को भी पीछे छोड़ सकता है।  ऐसा माना जा रहा था कि इस वायरस का असर पहले की तुलना में कम होगा परन्तु ताजा शोधों से यही संकेत मिल रहे हैं कि यह वैरियंट बहुत खतरनाक हो सकता है। भारत में भी ओ​मीक्राेन वैरियंट के 228 मामले सामने आ चुके हैं।
केन्द्र सरकार ने ओ​मीक्राेन से बचने के लिए युद्ध स्तर पर पहल करने की चेतावनी दे दी है। केन्द्र ने राज्यों को लिखे पत्र में कहा गया है कि नए वैरियंंट से निपटने के​ लिए वार रूम एक्टिव करें, अगर रात्रि कर्फ्यू की जरूरत हो ताे इसे लागू करें। इसके अलावा भीड़ जुटने पर रोकें, आफिस और पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जुड़ी पाबंदियों, अस्पतालों में बैड, एम्बुुलैंस, आक्सीजन और दवाओं के लिए आपात फंड का इस्तेमाल करने का सुझाव भी दिया है। केन्द्र लगातार चेतावनी दे रहा है कि लेकिन लोग मानने को तैयार ही नहीं। लोग शायद कोरोना की दूसरी लहर का मंजर भूल गए। लोगों को याद नहीं कि किस तरह मरीजों के परिजन आक्सीन के लिए मारे-मारे फिर रहे थे। गंगा-यमुना ​का विस्तीनी मैदान, नदी के पास का विशाल रेतीला मैदान अविश्वसनीय रूप से एक बड़े कब्रिस्तान में तब्दील हो गया था। इनमें दफन होने वाले लोगों के लिए कोई शोक श्रद्धांजलि कभी नहीं हुई। उनके नसीब में तो कुछ बोझ लकड़ी का भी नसीब नहीं हुआ।
शहरों से लेकर महानगरों तक के लोग लाखों रुपए लेकर अस्पतालों में एक-एक बैड के लिए घूमते रहे लेकिन बैड नसीब नहीं हुए। तब यह सवाल उठा था कि क्या स्वास्थ्य का अधिकार, संविधान में एक मौलिक अधिकार है या नहीं। कोरोना के उपचार में आने वाली दवाइयां नदारद थीं और जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी हो रही थी। यद्यपि राज्य अपने कर्त्तव्यों और दायित्वों का ढिंढोरा पीट-पीट कर लोगों को सावधान करते रहे लेकिन एक कल्याणकारी राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए परिस्थितियों का निर्माण किया जाए। जीवन का अधिकार सबसे मूल्यवान मानव अधिकार है लेकिन समस्या लोगों की भी है जो अपने जीवन के अधिकार को गम्भीरता से नहीं ले रहे। बाजारों, मंडियों, शापिंग मॉल्स में लोग बिना मास्क के घूमते नजर आ रहे हैं। राजनीतिक रैलियों में कोरोना गाइड लाइन्स की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। दुनिया भर में क्रिसमस की तैयारियों पर ग्रहण लग चुका है। नववर्ष के जश्न पर पाबंदियां लगाया जाना तय है।​
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष टेड्रोस ने कहा है कि लोग शोक मनाने की बजाय जश्न रोकें। लोग ओ​मीक्राेन को हल्के में ले रहे हैं। भले ही ओ​मीक्राेन कम गम्भीर बीमारी का कारण बनता है लेकिन मामलों की भारी संख्या एक बार फिर से तैयार  स्वास्थ्य सिस्टम को प्रभावित कर सकती है। भारतीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ कह रहे हैं कि नया साल 2022 अपने साथ ओ​मीक्राेन की बड़ी लहर लेकर आएगा। सार्स कोव-2 वायरस की आरटी वैल्यू पर प्रभावी प्रजनन संख्या कुछ राज्यों में बढ़ रही है, जिसमें महाराष्ट्र भी शामिल है। जिन राज्यों में आरटी वैल्यू बढ़ रही है उनमें महाराष्ट्र के अलावा बिहार, उत्तराखंड, मणिपुर, त्रिपुरा, तमिलनाडु, असम, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, नगालैंड आदि शामिल हैं। आरटी वैन्यू में बढ़ौतरी इस बात का सूचक है कि अगले महीने कोविड ग्राफ में तेजी दिखाई देगी। अब सरकारी स्वास्थ्य मशीनरी को अपनी निगरानी तंत्र और कान्टै​क्ट ट्रेसिंग बढ़ानी होगी। हालात काे देख कर ऐसा लगता है कि भारत में केस बढ़ेंगे और अस्पतालों पर दबाव बढ़ेगा। अब तो डेल्टा और ओ​मीक्राेन के कम्बीनेशन यानी डेल्मीक्राेन वेब चल रही है। यह लहर इंसानों को प्रभावित करने वाली हो सकती है। बच्चों आैर बुजुर्गों को कहीं अधिक एहतियात बतरनी चाहिए। उड़ानों पर रोक तथा आंतरिक पाबंदियों के चलते देश की अर्थव्यवस्था फिर से प्रभावित हो सकती है। यदि ओ​मीक्राेन अधिक आक्रामक रूप लेता है तो लम्बे समय तक पाबंदियों को झेलना पड़ेगा, तब आर्थिकी के साथ-साथ हर क्षेत्र प्रभावित होगा। इसके लिए समझदारी और सतर्कता जरूरी है। एक ओर सरकारों को युद्ध स्तर पर तैयारी करनी होगी तो दूसरी तरफ लोगों को भी वायरस से निपटने के लिए युद्ध लड़ना होगा। इसके लिए सभी को मानसिक रूप से तैयार रहना होगा।

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