क्या आपने इस आधुनिक युग में नरबलि के बारे में सोचा है। नरबलि के इतिहास के बारे में तो आपने पढ़ा होगा। इतिहास में विभिन्न संस्कृतियों में मानव बलि की प्रथा रही है और इसके शिकार व्यक्ति को रीति-रिवाजों के अनुसार ऐसे मारा जाता था जिससे देवता प्रसन्न हों या संतुष्ट हों। किसी धािर्मक अनुष्ठान के भाग के रूप में किसी मानव की हत्या को मानव बलि कहते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में पशुबलि की प्रथा रही है। पशुबलि का उल्लेख हमें प्राचीन पुस्तकों में जरूर मिलता है। लगभग सभी धर्म बलि प्रथा को हत्या ही मानते हैं। 2000 के दशक में सहारा के निकट अफ्रीकी इलाकों की रिपोर्टों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुष्ठान के प्रायोजन से सामूहिक हत्याएं भी की गईं। भारत में भी सती प्रथा जिसमें विधवा को बलपूर्वक पति की चिता में डाल िदया जाता है का प्रचलन 19वीं सदी तक रहा। काली मां के समक्ष पशुबलि की परम्परा रही है। द्रवडियिन संस्कृति की पूजा पद्धति में भी भक्त अपने इष्ट देव को प्रसन्न करने के लिए नरबलि का सहारा लेता रहा है। आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में अजीबोगरीब परम्पराओं का उल्लेख मिलता रहा है। लेकिन जो कुछ केरल में सामने आया है वह एक घोर पाप के समान है। केरल में मानव बलि मामले में जो खुलासे हुए हैं वह रूह को कंपा देने वाले हैं। आरोपी दम्पति ने दो महिलाओं की न केवल गला रेत कर हत्या की बल्कि उनके शरीर के टुकड़े का मांस पकाकर खाया भी।
काले जादू के चक्कर में तीन आरोिपयों ने मृतक के खून को दीवारों आैर फर्श पर छिड़क दिया। आरोपियों ने हैवानियत की सभी हदें पार कीं और मृतक महिलाओं के साथ जो बर्बरता हुई उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। यह सब कुछ आरोपियों ने जवान होने के चक्कर में किया। ऐसा भी माना जाता है कि यह हत्याएं आिर्थक तंगी दूर करने और पैसे की चाहत में की गईं। मुख्य आरोपी की पहचान रशीद उर्फ मोहम्मद शफी के रूप में हुई है और उसे एक विकृत प्रवृत्ति वाला शख्स बताया गया है। उस पर पहले ही आठ मामले दर्ज हैं। आरोपी ने फेसबुक पर श्रीदेवी नाम से एक पेज बनाया था जिस पर वह आर्थिक संकट से जूझ रहे लोगों को खोजता और फिर उन्हें अपने जाल में फंसाता। अगर केरल राज्य की बात करें।
– केरल देश का पूर्ण साक्षर राज्य है।
-केरल में अनेक बुद्धिजीवी और साहित्यकार भी हैं।
-केरल के लोगों को वैज्ञानिक सोच वाला माना जाता है आैर यह वैज्ञानिक चेतना वाला राज्य है।
-केरल आध्यात्म का केन्द्र भी है।
-केरल के लाेगों ने हमेशा प्रगतिशील मूल्यों को अपनाया है।
ऐसे राज्य में मानव बलि की घटना एक ऐसी दुखद घटना है कि किस तरह आज भी लोग अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र में जीते हैं। ऐसी क्रूरतम घटनाओं के लिए सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है, फिर भी राजधानी दिल्ली समेत देश के कई शहरों में कभी-कभार ऐसी घटनाएं सामने आती रही हैं, जिससे मानव बलि की पुष्टि होती है। आप बस अड्डों पर चले जाएं, रेलवे स्टेशनों पर चले जाइये। पार्कों और अन्य स्थानों पर आप को ऐसे तांत्रिकों, बाबाओं के पोस्टर मिल जाएंगे, जिन पर लिखा होगा, मनचाही संतान के लिए, पति को वश में करने के लिए, पत्नी को वश में करने के लिए या जीवन की समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए बंगाली बाबा या छद्म नाम से तंत्रमंत्र को करने वाले बाबा से सम्पर्क करें। आश्चर्य तब होता है जब शिक्षित लोग भी इनके चक्कर में फंस जाते हैं। राजनीति के इतिहास में भी हमारे देश के अनेक राजनीतिज्ञ भी विरोधियों को पस्त करने और अपनी विजय के लिए तांत्रिकों का सहारा लेते रहे हैं और गोपनीय ढंग से अनुष्ठान कराते रहे हैं। पुराने जमाने में शिक्षा की कमी होने के कारण लोग वर्षा, रोग, महामारी, आंधी-तूफान, भूकम्प आदि विपत्ति को देव भूत-प्रेत और पिशाचों का प्रकोप मानते थे। ज्यों-ज्यों सभ्यता का विकास होता गया वैसे-वैसे इन्हें अंधविश्वास माना गया।
हैरानी की बात तो यह है कि विज्ञान के युग में भी अंधविश्वास के विचार पूरी तरह से विलीन नहीं हुए। अनेक अंधविश्वासों ने रूढ़ियों का रूप धारण कर लिया। जादू-टोना, शकुन, मुहूर्त, मनि, ताबिज आदि अंधविश्वास की ही संताने हैं। इन सबके मूल में कुछ धार्मिक भाव हैं परन्तु इन भावों का सही-सही विश्लेषण नहीं हो सका। इसलिए इनमें तर्क शून्य विश्वास बढ़ता ही चला गया।
समाज का एक दूसरा पहलू भी है। बहुत सारे लोग अंधविश्वास का शिकार होकर आज भी ढोंगी बाबाओं के चक्कर में फंसे हुए हैं। लोग स्वयं धार्मिक शास्त्रों को पढ़ना ही नहीं चाहते थे, बल्कि ढोंगी बाबा जो इन्हें बताते हैं उसे ही आंख मूंद कर स्वीकार कर लेते हैं। इस राष्ट्र में ढोंगी बाबाओं की यौन हिंसा और हिंसा की कई बड़ी वारदातें देखी हैं। अगर हम समाज को अंधविश्वासों से नहीं बचा सकते तो फिर हमारा भविष्य ही अंधकार में है। यह सवाल सबके सामने है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने भविष्य को देखते हुए सारे शास्त्र लिखे हैं लेकिन हमारे पास इन्हें पढ़ने का समय ही नहीं है। मानव बलि पर कानूनन रोक है। सबसे पहले गवर्नर लार्ड फोर्डिंग के काल में भारत में नरबलि प्रथा का अंत हुआ और इस पर कानूनी रोक लगाई गई। नरबलि कानूनन दृष्टि से जघन्य अपराध है और आरोपियों के खिलाफ कानून के मुताबिक कार्रवाई होगी।
सवाल यह भी है कि केवल िवज्ञान पढ़ने से या पढ़ाने से अंधविश्वास या तंत्रमंत्र में आस्था खत्म नहीं होगी, बल्कि समाज में चेतना पैदा करने के लिए सरकारों, समाजशास्ित्रयों, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों को एक बड़ा अभियान चलाना होगा। मानवता की रक्षा के लिए समाज में भावना विकसित करनी होगी। अन्य हादसों की तरह केरल में भी इस नरबलि पर सियासत शुरू हो गई। विपक्ष सत्तारूढ़ वामपंथी दल को जिम्मेदार ठहरा रहा है। इतना तय है िक स्थानीय स्तर का पुलिस प्रशासन अंधविश्वास फैलाने वाले तांित्रकों या बाबाओं को खुली छूट दे रहा है और उन पर अंकुश लगाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती। जगह-जगह पसरे ऐसे बाबा ही क्रूरतम अंधविश्वास को लोगों के दिमाग में बैठाने का साधन बनते हैं। अगर समय रहते ही इन पर शिकंजा कसा जाए तो ऐसी वारदातें रुक सकती हैं। यह प्रश्न अभी भी सबके सामने है कि भारत में वैज्ञानिक चेतना का विस्तार कब होगा।