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आइए मतदान करें

दिल्ली नगर निगम दुनिया के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है। दिल्ली नगर निगम के चुनावों के लिए राजधानी के प्रबुद्ध समझे जाने वाले मतदाता अपनी पसंद के अनुसार मतदान करेंगे।

दिल्ली नगर निगम दुनिया के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है। दिल्ली नगर निगम के चुनावों के लिए राजधानी के प्रबुद्ध समझे जाने वाले मतदाता अपनी पसंद के अनुसार मतदान करेंगे। भाजपा, आप और कांग्रेस पार्टी के लिए नाक की लड़ाई बन चुके इन चुनावों को भले ही कमतर आंका जाता है लेकिन इन चुनावों के महत्व को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। दिल्ली नगर निगम का संबंध जन्म से लेकर मृत्यु तक का है। निगम की ताकत झुग्गी-झोपड़ियों, गलियों से लेकर बड़ी-बड़ी इमारतों तक एक जैसी है। उसके पास अस्पताल, बाजार से संबंधित अधिकार, पार्क, पार्किंग स्थल, प्राइमरी स्कूलों का संचालन, ड्रेनेज सिस्टम का प्रबंधन, सम्पत्ति एवं अन्य कर कलैक्शन, शवदाह गृहों के संचालन से संबंधित अधिकार हैं। इसके अलावा बिल्डिंग विभाग, सड़क निर्माण, स्ट्रीट लाइटिंग से लेकर लोगों के परिवार रजिस्टर से संबंधित सारे अधिकार एमसीडी के पास  हैं। एमसीडी के पास सारी स्थानीय ताकत है। इन्हीं ताकतों की वजह से नगर निगम चुनाव खास हो जाता है, क्योंकि दिल्ली को हिन्दुस्तान का दिल ही नहीं बल्कि मिनी भारत भी कहा जाता है। इसलिए इस शहर के मतदाताओं का जो फैसला होगा उसका अक्स राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ता दिखाई देता है। बदलते समय की सियासत को देखते हुए दिल्ली के जनादेश को देश की सियासत का आइना कहा जाना उचित नहीं होगा। क्योंकि अब काफी कुछ बदल चुका है। दिल्ली की राजनीति में परम्परागत तौर पर भारत विभाजन के बाद आए पंजाबियों, बाहरी दिल्ली में जाटों और स्थानीय व्यापारी तबके का दबदबा रहा। लम्बे समय तक केदारनाथ साहनी, ओ.पी. कोहली, मदनलाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा और साहिब सिंह वर्मा जैसे नेताओं का सिक्का चलता था। जैसे-जैसे राजधानी की आबादी बढ़ती गई त्यों-त्यों सियासत का स्वरूप भी बदलता गया। इस बार के चुनाव काफी महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि आम आदमी पार्टी का पूरी तरह से उदय हो चुका है और वह दिल्ली की सत्ता पर आसीन है। भाजपा पिछले 15 वर्षों से दिल्ली नगर निगम पर कब्जा जमाए हुए बैठी है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस सिमट चुकी है और वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। 
दिल्ली नगर निगम 7 अप्रैल 1958 को अस्तित्व में आया था। भाजपा ने 2007 से ही नगर निगम पर अपनी पकड़ बना रखी है। इस दौरान केन्द्र से लेकर दिल्ली तक में कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा की लोकप्रियता के सहारे केन्द्र में 2009 में वापसी की, तो दिल्ली में गरीबों के लिए बेहतर काम करने वाली शीला दीक्षित अपनी लोकप्रियता के सहारे वापसी करने में कामयाब रहीं। लेकिन उनके दिल्ली में मुख्यमंत्री रहने के दौरान दिल्ली नगर निगम के दो बार (2007 और 2012) चुनाव हुए और दोनों ही बार भाजपा सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही। आरोप लगाया जाता है कि नगर निगम पर अपनी पकड़ बनाने में असफल रहीं शीला दीक्षित ने 2011 में दिल्ली नगर निगम को तीन टुकड़ों (पूर्वी, उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम) में बांट दिया था। उनका सोचना था कि इससे भाजपा की ताकत बंट जाएगी और कुछ जगहों पर कांग्रेस भी सत्ता में आने में कामयाब रहेगी। लेकिन शीला दीक्षित का यह राजनीतिक दांव बुरी तरह असफल रहा और भाजपा दोबारा 2012 में तीनों निगमों की सत्ता में काबिज होने में सफल हो गई। 
2017 में हुए निगम चुनावों में भाजपा ने एक बार फिर भारी मतों से जीत दर्ज की और भाजपा की सीटें 138 से बढ़कर 181 पर पहुंच गईं। तब तक आम आदमी पार्टी दिल्ली में लोकप्रियता हासिल कर चुकी थी और 49 सीटों पर जीत हासिल की और कांग्रेस केवल 31 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। दिल्ली नगर निगम को तीन निगमों में बांटने का प्रयोग सफल नहीं रहा। तीनों नगर निगम पैसे की कमी से जूझते रहे। कर्मचारियों को वेतन देना मुश्किल हो गया और अंततः यह महसूस किया गया कि दिल्ली नगर निगम को एक करना जरूरी है। क्योंकि नगर निगम के बंटवारे के बाद आय और व्यय को लेकर अंतर बहुत बड़ा हो गया था। तब गृह मंत्रालय ने नगर निगम को एक करने का फैसला कर लिया। इलाकों का नए सिरे से परिसीमन कर वार्डों की संख्या 250 कर दी गई। इन चुनावों में भ्रष्टाचार, प्रदूषण, कूड़े के ढेर आदि कई मुद्दे छाए रहे और भाजपा, आप और कांग्रेस ने लोक लुभावन वादे किए लेकिन दिल्ली का मतदाता काफी जागरूक है। 
दरअसल आज की राजनीति में समस्या यह हो गई है कि स्थानीय निकाय चुनाव भी राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। कुल मिलाकर चुनाव प्रचार हवा में ही उछलता रहा। जमीनी स्तर पर इसका क्या असर होगा यह जनादेश ही बताएगा? लोकतंत्र के इस स्थानीय महोत्सव में दिल्लीवासियों का दायित्व है कि वह अपने मताधिकार का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें और मतदान के औसत को अधिक से अधिक बनाएं। पहले मतदान करें, ​फिर जलपान करें। लोकतंत्र का सम्मान वोट डालने से ही होगा। जो भी जनादेश आएगा उसे स्वीकार करने से ही लोकतंत्र में मजबूती आएगी।

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