चालू वर्ष 2023 को सही मायने में हम चुनावी वर्ष कह सकते हैं क्योंकि इस वर्ष के अन्त तक पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना व मिजोरम के विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण मध्य प्रदेश है क्योंकि 2018 के पिछले चुनावों में यहां की 230 सदस्यीय विधानसभा में सर्वाधिक 114 सीटें जीत कर कांग्रेस पार्टी ने श्री कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। इन चुनावों में जनता ने भाजपा सरकार को सत्ता से हटा दिया था और इसे 109 सीटें ही दी थीं परन्तु सवा साल बाद ही राज्य की राजनीति में बड़ा ‘खेला’ हो गया 2020 में उस समय कमलनाथ सरकार धराशायी कर दी गई जब पूरे देश में कोरोना महामारी ने हाहाकार मचा दिया था। उस समय कांग्रेस के 20 विधायकों ने अपनी सदन की सदस्यता से इस्तीफा देकर कमलनाथ सरकार को अल्पमत में खड़ा कर दिया था और भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। बाद में ये पूर्व विधायक बने उपचुनाव लड़े और इनमें से अधिसंख्य भाजपा के टिकट पर जीत कर पुनः विधायक बन गये। इसे भारतीय राजनीति की इस्तीफा संस्कृति कहा गया जिसके जरिये दल-बदल कानून से बचने का रास्ता खोजा गया। मगर 2018 के चुनावों की एक विशेष बात यह थी कि भाजपा को सीटें बेशक कांग्रेस से कम मिली थीं मगर वोट एक प्रतिशत अधिक मिले थे।
2020 में कमलनाथ सरकार को विधानसभा में हुए शक्ति परीक्षण में श्री कमलनाथ को हराकर पुनः श्री शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमन्त्री बनाया था और श्री चौहान तभी से राज्य की सरकार को सफलतापूर्वक चला रहे हैं। चौहान एक धार्मिक व्यक्ति भी माने जाते हैं। उनकी सरकार ने हिन्दू धर्म से बावस्ता कई मान्यताओं का सम्मान करते हुए कई योजनाएं भी लागू की। मगर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी इस मामले में नहला पर दहला साबित होने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र छिन्दवाड़ा में हनुमान जी की देश की सबसे ऊंची मूर्ति ही नहीं लगवाई बल्कि वह खुद भी चौहान की भांति कम पूजा- पाठी नहीं हैं। वैसे मध्य प्रदेश के हर पार्टी के प्रमुख नेता (केवल कम्युनिस्टों को छोड़ कर) काफी धार्मिक हैं। मसलन कांग्रेस के नेता श्री दिग्विजय सिंह हर एकादशी को व्रत रखते हैं और चाय तक स्टील के गिलास में ही पीते हैं। कमलनाथ भी धार्मिक स्थलों पर जाते रहते हैं मगर वह इसका न तो प्रचार करते हैं और न प्रदर्शन करते हैं। इसकी असली वजह यह है कि मध्य प्रदेश की जनता बहुत धर्म प्राण है। इसी वजह से राजनीति में धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग करके यहां जनसंघ के जमाने से ही भाजपा ने अपनी पैठ बढ़ाई और यह इस राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तक बनी।
1967 में पहली बार जनसंघ राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी बनी थी और 90 के दशक के आते-आते यह प्रमुख पार्टी बन गई। इसके पीछे हिन्दुत्व व राष्ट्रवाद भी प्रमुख कारण रहे परन्तु राजनीति में धार्मिक प्रतीकों का करीने से प्रयोग भी एक वजह रहा। कांग्रेस आगामी चुनावों में भाजपा को इस मोर्चे पर भी मुकाबला देने की रणनीति इस तरह बना रही है कि इस पर राजनीति में धर्म का प्रयोग करने का आरोप भी कोई न लगा सके और वह जनता को सन्देश भी दे दें कि हिन्दू धर्म व उसकी मान्यताओं में उसकी आस्था में किसी प्रकार की कमी नहीं है। इसके लिए कमलनाथ ने कथा वाचक सन्त स्वरूपा ऋचा गोस्वामी का चयन किया है। वह चुनाव की पूर्व वेला में पूरे मध्य प्रदेश में घूम कर केवल श्री कृष्ण रास लीला व भागवत कथा का पाठन-गायन करेंगी और किसी से भी कांग्रेस को वोट देने के लिए नहीं कहेंगी मगर कांग्रेस पार्टी के धार्मिक व उत्सव प्रकोष्ठ की मुखिया के तौर पर जनता को कथा सुनायेंगी। श्री कमलनाथ की सरकार जब 2020 में इस्तीफा संस्कृति की मार से गिर गई थी तो उन्होंने इसके बाद ही इस प्रकोष्ठ की स्थापना कांग्रेस में कर दी थी। वह तब भी कांग्रेस पार्टी के प्रादेशिक अध्यक्ष थे। धार्मिक प्रकोष्ठ के प्रमुख के तौर पर ऋचा गोस्वामी मध्य प्रदेश की जनता को यही सन्देश देंगी कि उनकी पार्टी हिन्दू धर्म की मान्यताओं व परंपराओं का आदर व सम्मान करती है मगर वोट मांगने के लिए इसका प्रयोग नहीं करती। मगर भाजपा में भी ऐसे राजनीतिज्ञों की कमी नहीं रही है जो धार्मिक उपदेश न देते रहे हों या कथा अथवा भजन कीर्तन न करते रहे हों।
राज्य की मुख्यमन्त्री तक रहीं साध्वी उमा भारती अपनी किशोरावस्था में ही यह भूमिका निभाती रही थीं। वह केन्द्र तक में मन्त्री रहीं। मगर सफेद वस्त्र धारण करने वाली सन्त स्वरूपा ऋचा गोस्वामी कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ाने में कितनी मदद कर सकती हैं यह तो चुनावों में ही पता चलेगा लेकिन इतना स्वाभाविक है कि इस राज्य में हिन्दू धर्म का पालन करने न कांग्रेस पीछे दिखाई देगी और न भाजपा। चित्रकूट इसी राज्य में उत्तर प्रदेश की सीमा से लगते हुए पड़ता है और शिवराज सिंह चौहान व कमलनाथ दोनों ही ‘राम वन पथ गमन’ का विकास करके जनता को भरमाते रहे हैं। वैसे भी रहीम बहुत पहले लिख गये थे कि-
‘‘चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेस
जा पर विपदा परत है सो आवत इहि देस।’’
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com