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सामाजिक तंत्र की जड़ों में मंत्र

क्या भारत मर जाएगा? स्वामी विवेकानंद ने यह प्रश्न स्वयं से ही पूछा था, फिर उन्होंने बड़ी उग्रता से इसका उत्तर भी दिया था कि ऐसा कदापि नहीं हो सकता

क्या भारत मर जाएगा? स्वामी विवेकानंद ने यह प्रश्न स्वयं से ही पूछा था, फिर उन्होंने बड़ी उग्रता से इसका उत्तर भी दिया था कि ऐसा कदापि नहीं हो सकता-‘‘क्योंकि यदि भारत मर गया तो सारे विश्व में जो भी कुछ शुभ है, मंगल है वह नष्ट हो जाएगा और पूरे विश्व में लालच आैर वासना के देवी-देवता की उपासना होगी और पुजारी छली और कपटी होंगे। पाश्विक बल, भ्रष्टाचार और आतंक का वर्चस्व होगा।’’ यद्यपि आजकल यही कुछ देख रहे हैं। दिल्ली की घनी बस्ती बुराड़ी में एक ही परिवार के 11 सदस्यों की रहस्यमयी मौत ने सबको हैरान कर दिया है। महाराष्ट्र के धुले में बच्चे अगवा करने वाले गिरोह के सक्रिय होने की अफवाह के चलते 5 लोगों की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी।

हवस के ​दरिंदे स्कूली बच्चों से दुष्कर्म की हदें पार कर रहे हैं। कहीं डायन समझ कर महिलाओं को मार डाला जाता है। समाज कितना असहिष्णु हो चुका है, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं। क्या समाज की जड़ों में तंत्र-मंत्र घुस चुका है? समाज किस दिशा की आेर बढ़ रहा है और उसका भविष्य कैसा होगा? इस पर गहन मंथन का समय आ चुका है। यह सही है कि धर्म और आस्था अफीम के नशे की तरह है। लोग ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करते हैं। सारी मानवता को जीवन जीने की कला व विज्ञान का प्रशिक्षण देना ही भारत का जीवन ध्येय है। जीवन में तंत्र-मंत्र आैर प्रपंचों में डूबने के परिणाम बहुत भयावह होते हैं। बुराड़ी के दर्दनाक हादसे का रहस्य गहराता जा रहा है। घर से मिले एक रजिस्टर के पन्नों पर मिले नोट्स तंत्र-मंत्र की तरफ संकेत करते हैं। उसमें मोक्ष प्राप्ति के लिए मौत को गले लगाने और मौत को गले लगाने के तरीके भी लिखे गए हैं। यद्यपि इन मौतों को लेकर अभी कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। अगर उन्होंने मोक्ष प्राप्ति के लिए आत्महत्याएं की हैं तो यह बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है। पुलिस की थ्योरी पर यकीन करना हर किसी के लिए मुश्किल है। परिवार में एक युवती की शादी होने वाली थी। उसने भी जीवन खत्म करने का फैसला आसानी से कैसे कर लिया। परिवार में दूसरे परिवारों से आई बहुएं थीं। पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी की सोच एक जैसी कैसे हो सकती है। टी.वी. चैनलों पर मनोचिकित्सक दिनभर अपने-अपने तर्कों के साथ बातें करते रहे ले​िकन इस सनसनीखेज वारदात ने पूरे देश को सकते में डाल दिया है। इससे पहले इतने बड़े स्तर पर सामूहिक आत्महत्या का केस पहले शायद कभी देखा नहीं गया। ऐसा भी प्रतीत होता है कि पूरा परिवार किसी विशेष आध्यात्मिक, धार्मिक क्रिया विशेष या रीति का अभ्यास करता था लेकिन यह कैसा मोक्ष है? तंत्र साधना हमेशा से ही लोगों के बीच कौतूहल का विषय रहा है। भारतीय जनमानस में आज भी टोटकों का प्रयोग बेधड़क किया जा रहा है। समाज में अंधविश्वास अभी भी अपनी जड़ें कायम रखे हुए है।

तांत्रिकों के बहकावे में आकर बच्चों की बलि देने, भूत-प्रेत भगाने के चक्कर में हत्याएं किए जाने की खबरें ताे दैनंदिन मिलती रहती हैं। डायन करार दिए जाने की यातना से आज भी महिलाओं को मुक्ति नहीं मिली है। भारत के आंकड़े बहुत भयावह हैं। अंधविश्वास का भंवर इतना गहरा है कि पढ़े-लिखे लोग भी इसके जाल में फंस जाते हैं। फर्जी बाबाओं और तांत्रिकों का काला सच सामने आने पर भी लाखों की भीड़ उनकी अनुयायी बनी रहती है, क्यों?

आमतौर पर देखा जाता है कि आत्महत्या करने की वजह डिप्रेशन या पैसों की तंगी होती है। कर्ज में फंसे लोग, आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोग या फिर बीमारी से तंग आकर लोग आत्महत्या कर लेते हैं लेकिन बुराड़ी का भाटिया परिवार खुशहाल परिवार था, न तो उन्हें पैसे की कमी थी और न ही परिवार के लोग डिप्रेशन के शिकार थे। पुलिस को सभी एंगल से जांच करनी होगी ले​िकन अगर इस घटना का कारण तंत्र-मंत्र और अंधविश्वास ही है तो समाज को इस पर विचार करना होगा। क्या आज के आधुिनक दौर में किसी परिवार का अलौकिक शक्तियों के पीछे भागने का आैचित्य था? क्या किसी तांत्रिक के चक्कर में परिवार था या इसके पीछे कौन सी आध्यात्मिक संस्था थी जिसने परिवार को ऐसा करने के लिए उकसाया, सच सामने आना ही चाहिए। क्या हमारा समाज अवसाद का शिकार हो रहा है, क्या वह अपने और दूसरों के प्रति निष्ठुर हो रहा है? क्या तंत्र की निष्ठुरता और असंवेदनशीलता किसी सीधे-सादे व्यक्ति को ऐसे दुर्दांत हत्यारे में बदल सकती है जो अपने ही परिवार के सदस्यों को मौत के घाट उतार कर खुद आत्महत्या कर ले। आज सामाजिक रिश्ते-नाते क्यों कलंकित हो रहे हैं? समाजशास्त्री चिन्तन करें आैर समाज काे सही दिशा देने के लिए आगे आएं। अध्यात्मवादी बनना है तो हमारे यहां गीता है, वेद और उपनिषद् हैं। तत्व दर्शन की लोक अनुभूति भक्ति ही है, मृत्यु नहीं।

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