दक्षिण भारत के सुपर स्टार रजनीकांत ने इसी माह 12 दिसम्बर को अपनी राजनीतिक पार्टी की शुरूआत करने का ऐलान किया था, लेकिन 29 दिसम्बर को उनहोंने राजनीतिक दल बनाने का इरादा त्याग दिया। अन्ना द्रमुक नेता अम्मा जयललिता और द्रमुक नेता करुणानिधि के निधन के बाद तमिलनाडु की सियासत में करिश्माई नेता की कमी खटक रही है।
रजनीकांत के प्रशंसक और समर्थक 90 के दशक से उनके राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा का इंतजार कर रहे थे, उन्हें अभिनेता के फैसले से काफी निराशा हुई है। दूसरी तरफ राज्य की परम्परागत पार्टियां अन्ना द्रमुक और द्रमुक ने राहत की सांस ली है।
रजनीकांत ने अपने ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किए गए एक बयान में कहा है कि आगामी फिल्म अन्नाये की शूटिंग के दौरान जो कुछ भी हुआ और इसके बाद बीते दिनों उनकी तबीयत में जो गिरावट आई, वो इसे भगवान का संदेश मानते हैं। रजनीकांत ने यह भी कहा है कि वह लोगों के बीच पार्टी से जुड़ने की वजह पैदा नहीं कर पाएंगे और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल नहीं कर पाएंगे और राजनीतिक अनुभव वाला कोई भी व्यक्ति इस वास्तविकता से इंकार नहीं करेगा। रजनीकांत ने वादा किया है कि वे चुनावी राजनीति में उतरे बिना जनता की सेवा करने के लिए जो कुछ भी बन सकेगा, वह करते रहेंगे। स्पष्ट है कि रजनीकांत ने यह फैसला
अपनी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए लिया है। वे बहुत ही परिपक्व और संवेदनशील इंसान हैं, वे जानते हैं कि सक्रिय राजनीति के लिए लोगों के बीच रहना बहुत जरूरी है। जमीनी राजनीति लोगों से जुड़ कर ही की जा सकती है।
‘‘वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।’’
रजनीकांत को लगा कि वह अपने इरादों में कामयाब नहीं हो पाएंगे इसलिए उन्होंने राजनीतिक पार्टी नहीं बनाने का सही फैसला किया। तमिलनाडु की राजनीति में फिल्मी सितारों के लिए एक विशिष्ठ आकर्षण का पुट भी रहा है। उन्होंने बिना जाित, वर्ग या धर्म के आध्यात्मिक धर्मनिरपेक्ष राजनीति का वादा किया था जो एक चमत्कार साबित हो सकता था। सुमरैन, सुपर पुलिस कर्मी, सुपर रोमिओ जैसी फैंटेसी भूमिकाओं ने रजनीकांत की छवि बुराई के दुश्मन और खलनायकों पर जीत हासिल करने वाले महानायक के रूप में बनी हुई है। रजनीकांत के प्रशंसक मानते हैं कि थलाईबा यानी मुखिया के लिए कुछ भी असम्भव नहीं। दूसरी ओर वास्तविकता यह भी है कि रजनीकांत फिल्मी पर्दे पर करिश्माई व्यक्तित्व जरूर हैं लेकिन उनके पास तमिलों के साथ कोई विचारात्मक, सांस्कृतिक या सामाजिक जुड़ाव नहीं है, जो द्रविड़ विरासत पर गर्व करते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में उनका साथ लेने की पहल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उनके घर जा कर की थी। अब भी कहा जाने लगा था कि रजनीकांत की पार्टी भाजपा की बी टीम के तौर पर काम करेगी। उनका झुकाव भाजपा की तरफ हो सकता है। फिल्मी संवाद बोलना आसान है लेकिन उसे करके दिखाना बहुत कठिन है। उन्होंने एक जुमला उछाला था-‘हम सब कुछ बदल देंगे’। इससे पहले वे कुछ कर पाते वे खुद बदल गए। राजनीति बड़ी निष्ठुर होती है और यह भावनाओं की परवाह नहीं करती। उनकी बेटी भी उनके राजनीतिक दल बनाने के पक्ष में नहीं थी। उसका एक मात्र कारण उनके स्वास्थ्य की चिंता ही थी।
ऐसा भी नहीं है कि तमिलनाडु की सियासत में मिथक नहीं टूटे हैं। पहला मिथक बना था 1996 में। तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में उन्होंने करुणानिधि की द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) का समर्थन किया था। यह पहला मौका था जब उन्होंने किसी राजनीतिक दल का खुलकर समर्थन किया था। इन चुनावों में जयललिता की अन्नाद्रमुक का सफाया हो गया। द्रमुक जीत गई। तब यह मिथक बन गया कि रजनीकांत तमिलनाडु की राजनीति में जहां खड़े हो जाएंगे लाइन वहीं से शुरू होगी। रजनीकांत ने भी शायद इस मिथक को वास्तविक मान लिया। उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनाव में जयललिता और अन्ना द्रमुक और भाजपा गठबंधन को वोट देने की अपील की। उस समय जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थीं और अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री। तब भाजपा और अन्ना द्रमुक गठबंधन को तमिलनाडु में एक सीट भी नहीं मिली थी। रजनीकांत इस बार जहां खड़े हुए लाइन वहीं से नहीं लगी। मिथक टूट गया लेकिन भ्रम बना रहा। मिथक सृजित करने वाले यह भूल जाते हैं कि एमजीआर की राजनितिक पहचान केवल उनके लोकप्रिय फिल्म कलाकार होने से नहीं बनी। इसी तरह करुणानिधि फिल्मों के पटकथा लेखक थे लेकिन वे राजनीति में अत्यंत सफल रहे। दोनों की ज्यादा बड़ी भूमिका द्रविड़ आंदोलन से उनका जुड़ाव और प्रतिबद्धता थी। जयललिता को एमजीआर के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा गया। रजनीकांत के साथ ऐसा कुछ नहीं है। तमिलनाडु में अनेक फिल्मी कलाकारों ने सियासत में हाथ आजमाया लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। इनमें कमल हासन, विजय कांत, सरथ कुमार, राजेन्द्र, भाग्यराज का नाम शामिल है। राजनीति में अंक गणित के साथ ज्यादा कैमिस्ट्री काम करती है। यहां दो और दो चार बहुत कम होते हैं। उनके तीन आर पांच होने की सम्भावना ज्यादा रहती है। अन्ना द्रमुक दो फाड़ हो चुकी है। द्रमुक भी पहले जितनी ताकतवर नहीं रही। देखना होगा सियासत की कैमिस्ट्री क्या कहती है।