भारत और रूस के संबंध बड़े पुराने हैं। पचास के दशक में बिग शो मैन राजकपूर ने जब फिल्मी पर्दे पर यह गाना गाया-
मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिशस्तानी
सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दोस्तानी
तो मास्को वासियों में यह गाना इतना प्रख्यात हुआ कि राजकपूर को अंततः रूस जाना पड़ा और लाल टोपी पहन कर वह गलियों में झूमें तो एक समां बंध गया। रूस तब यूएसएसआर कहलाता था। कालांतर में दोनों देशों के संबंध इतने प्रगाढ़ हुए कि रूस भारत का सच्चा दोस्त बनकर सामने आया।
जब भारत ने कहा कि वह स्टील एलॉय बनायेगा तो अमेरिका ने हां करने के बावजूद भारत की मदद करने में कोई रुचि नहीं दिखाई तब रूस ने ही एक-एक करके भारत में स्टील कारखाने खड़े करने में भारत की मदद की, जो स्टील कारखाने आज भारत की औद्योगिक संरचना की बुनियाद बने हैं, उसका श्रेय रूस को ही जाता है।
जब भारत ने चाहा कि वह सेटेलाइट बनायेगा तो अमेरिका ने हमारा जमकर मजाक उड़ाया था और कहा था कि जरूरी है आप धान लगाओ क्योंकि हिन्दोस्तानी भूखे हैं। 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जब अमेरिका ने अरब सागर की तरफ अपने सबसे बड़े नौवें बेड़े इंडिपेंडेंट को रवाना कर दिया तो वह रूस ही था जो अमेरिका के जंगी बेड़े को रोकने के लिए मलक्का की खाड़ी की तरफ चल पड़ा था।
रूस ने अंतरिक्ष टैक्नोलोजी में भी न केवल भारत की मदद की बल्कि अकेले भारतीय राकेश शर्मा को अंतरिक्ष भ्रमण का मौका दिया था। सोवियत संघ के बिखरने के भारत-रूस के रिश्ते ठंडे पड़ गए। रिश्तों और जरूरतों के आयाम व्यापक हुए लेकिन इस सबके बावजूद भारत-रूस संबंधों में ज्यादा बदलाव नहीं आया।
कई वर्ष रिश्तों में बर्फानी ठंडक रही लेकिन दोनों देशों के रिश्ते भावनात्मक रूप से मजबूत रहे। रूस ने भारत की हर जरूरत को पूरा किया। हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने मास्को गए थे तो वहां सुरक्षा मुद्दे पर चर्चा की गई। भारत की भावनाओं को समझते हुए रूस ने आश्वासन दिया कि वह पाकिस्तान काे हथियार नहीं बेचेगा।
कोरोना महामारी से हर देश जंग लड़ रहा है। विश्व की नामी गिरामी कंपनियां वैक्सीन तैयार करने में लगी हैं। भारत में भी कोरोना वैक्सीन के तीसरे ट्रायल की तैयारी की जा रही है। रूस ने अपनी कोविड-19 वैक्सीन स्पूतनिक वी से जुड़ा व्यापक डेटा भारतीय अधिकारियों के साथ सांझा किया है।
ये डेटा इस बात से जुड़ा है कि ये वैक्सीन कितनी सुरक्षित है। पहले और दूसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल में इस वैक्सीन से मजबूत इम्यून मिलने की बात कही गई है। ये ट्रायल 76 लोगों पर किए गए थे। स्पूतनिक वी के प्रथम और द्वितीय चरण में क्लीनिकल ट्रायल डेटा के नतीजे लैंसेंट में भी छप चुके हैं।
वैक्सीन को लेकर भारत रूस से गंभीरता से जुड़ा हुआ है। भारत के लिए एक विकल्प यह हो सकता है कि यहां के रेगुलेटर की जरूरी मंजूरी मिलने के बाद भारत में ही एक अलग तीसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल किया जाए। रूस का यह भी कहना है कि भारत में भी इस दवा का उत्पादन हो सकता है क्योंकि भारत के पास उत्पादन की काफी क्षमता है। अगर रूसी वैक्सीन कारगर है तो भी मानव की रक्षा के लिए भारत रूस की मदद लेने को तैयार है।
मैडिकल क्षेत्र में तो भारत पहले ही हब बन चुका है। रूस का यह भी दावा है कि स्पूतनिक दवा इसी हफ्ते आम नागरिकों को उपलब्ध हो जाएगी। शुरुआती कुछ समय तक रूसी वैक्सीन फ्रंटलाईन वारियर्स के लिए ही उपलब्ध थी। भारत रूस के साथ वैक्सीन की सप्लाई, साथ मिलकर उत्पादन समेत अन्य मुद्दों पर चर्चा कर रहा है। अगर ऐसा होता है तो यह कोरोना महामारी से पीडि़त भारत के लिए काफी राहत भरा होगा।
भारत-चीन तनाव के बीच रूस ने लगातार भारत का साथ दिया है। चाहे एस-400 एंटी मिसाइल सिस्टम की जल्दी डिलीवरी हो या एके-47 बंदूकों का सौदा। अब कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में भी रूस ने भारत का साथ देने की पेशकश की है। कुछ भी हो रूस ने सबसे पहले कोरोना वैक्सीन लांच कर बाजी तो मार ही ली है।
वैक्सीन बनाने की गला काट प्रतिस्पर्धा के बीच राष्ट्रवाद, शार्टकट, जासूसी और अनैतिक रूप से जोखिम लेने और एक-दूसरे से जलन के आरोप भी लग रहे हैं। यह भी सही है कि किसी दवा के लिए पहले इतनी गंभीर राजनीतिक दावेदारी कभी नहीं देखी गई जिसकी वजह से कोरोना वैक्सीन राजनीतिक प्रतीकवाद बन गई।
सुपर पावर्स वैक्सीन के जरिए अपनी वैज्ञानिक ताकत दिखाना चाहते हैं। इस समय सबसे बड़ी जरूरत महामारी के वायरस को खत्म करना है ताकि मानव की रक्षा की जा सके। इसके लिए तरीका कुछ भी अपनाया जाए लेकिन यह जरूरी है कि वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी हो। भारत और रूस मिलकर वैक्सीन का उत्पादन करते हैं तो हम विजेता हो जाएंगे। रूस की दोस्ती का कोई और सानी हो ही नहीं सकता।