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बठिंडा फायरिंग का सच

पंजाब के बठिंडा सैन्य स्टेशन पर हुई फायरिंग में चार जवानों की मौत का रहस्य खुल गया है।

पंजाब के बठिंडा सैन्य स्टेशन पर हुई फायरिंग में चार जवानों की मौत का रहस्य खुल गया है। इस मामले में पुलिस ने सेना के एक जवान देसाई मोहन को गिरफ्तार कर​ लिया है। हत्या के आरोपी जवान ने फायरिंग का चश्मदीद बनकर सेना और पुलिस की जांच को भटकाने का बहुत प्रयास किया लेकिन अंततः कड़ी पूछताछ में उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया। बठिंडा सैन्य स्टेशन एशिया का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है और सेना के मुख्यालय 10 कोर का घर है। यहां रहने वाले जवान पंजाब और राजस्थान में पाकिस्तान के साथ सटी भारत की सीमा की रक्षा करते हैं। इसलिए चार जवानों की मौत अपने आप में बड़ी घटना है। सैन्य बलों में इससे पहले भी आपसी झड़पों में जवानों की मौत की खबरें आती रही हैं। कभी कोई सैनिक अपने साथियों की हत्या कर खुद को गोली मार लेता है या फिर उनमें झड़पें होती रहती हैं। सेना के जवानों में नाराजगी भी समय-समय पर देखने को मिलती है। भारतीय सेना अपने अनुशासन के लिए जानी जाती है लेकिन फिर भी अपवाद स्वरूप ऐसी अप्रिय घटनाएं सामने आती रहती हैं। 
जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में सेना के एक शिविर में एक जवान के साथ कहासुनी के बाद एक जवान ने उसकी हत्या कर दी। चार दिन पहले हुई इस घटना की जांच की जा रही है। बठिंडा में हुई हत्याओं के पीछे जो कारण सामने आया है वह चौंकाने वाला है। आरोपी गनर देसाई मोहन का कहना है कि उसका यौन उत्पीड़न किया गया था और मारे गए जवानों ने उसका अप्राकृतिक यौनाचार किया था इसलिए बदला लेने के लिए उसने ऐसा किया। अब सवाल यह है कि क्या ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता था। आखिर आपसी फायरिंग की नौबत आई ही क्यों? जिस तरह से समाज में समय-समय पर विकृतियां सामने आती हैं उसी तरह सम्भव है कि सेना के जवानों में भी कुछ जवान विकृत मानसिकता के ​िशकार हो। देश के अर्द्धसैनिक बलों के जवानों में तनाव की खबरें अक्सर मिलती रहती हैं। 
हाल ही में संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के अर्द्ध सैनिक बलों के कम से कम 50,155 जवानों ने पिछले पांच सालों में नौकरी छोड़ी है। इसके अलावा आत्महत्या करने वाले जवानों की संख्या में भी बढ़ौतरी हुई है। संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस तरह के संघर्षण का स्तर बलों में काम करने की स्थिति  को प्रभावित कर सकता है। रिपोर्ट के अनुसार गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों से पता चलता है कि असम राइफल्स और केन्द्रीय औद्यो​िगक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में नौकरी छोड़ने वाले कर्मियों की संख्या सबसे ज्यादा है। करीब ऐसा ही हाल सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) कर्मियों का भी है। वहीं केन्द्रीय रिवर्ज पुलिस बल (सीआरपीएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और  सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में 2022 के दौरान नौकरी छोड़ने वालों की संख्या में कमी भी आई है। अर्द्धसैनिक बल छोड़ने वाले 50,155 कर्मियों में 2018 और 2023 के बीच सबसे अधिक बीएसएफ (23,553) के थे, इसके बाद सीअरपीएफ (13,640) और सीआईएसएफ (5,876) के थे।
संसदीय समिति ने सरकार से अर्द्धसैनिक बलों के जवानों के काम करने की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार करने और कर्मियों को बल में रहने के लिए प्रेरित करने के तत्काल उपायों की मांग की है। समिति का कहना है कि जवानों की चिंताओं को दूर करने के लिए कारकों का आंकलन किया जाना चाहिए और उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए तेजी से कदम उठाने चाहिए ताकि बलाें में कमी को रोका जा सके। अर्द्धसैनिक बलों में समय पर पदोन्नति नहीं​ मिलना, लम्बे समय तक कठोर तैनाती, स्वास्थ्य संबंधी वजह या पारिवारिक कारणों से जवानों का मोह भंग हो रहा है लेकिन अर्द्धसैनिक बलों के मुकाबले सेना में काम की परिस्थितियां काफी अच्छी हैं। सेना के जवानों के लिए तनाव की स्थितियां तब पैदा होती हैं जब उन्हें उपद्रव या हिंसा से लगातार जूझना पड़ता है। यह सही है कि देश की सीमाओं पर काफी शांति है और युद्ध जैसी कोई स्थिति नहीं है लेकिन सेना के जवानों की दिनचर्या काफी सख्त रहती है। भोर की किरण फूटने से लेकर शाम तक कब अभ्यास करना है, कब क्या काम करना है, कब भोजन करना है सब कुछ तय होता है। यह मानना पूरी तरह गलत है कि युद्ध न होने की​ स्थिति में सेना के जवान आराम से समय गुजारते हैं लेकिन युद्ध के​ लिए हमेशा तैयार रहने के लिए उनकी मानसिकता और मनोबल बढ़ाने के लिए  उन्हें निरंतर अभ्यास कराया जाता है जो एक तरह से जरूरी भी है लेकिन सेना के जवानों में हर स्वभाव के लोग होते हैं। हो सकता है कि उनकी कुछ पारिवारिक परिस्थितियां उनमें तनाव पैदा करती हों।
यौन विकृतियां पैदा होने के भी कई कारण हो सकते हैं। सेना के जवानों ने कई बार अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा भी लिया लेकिन इक्का-दुक्का घटनाओं को देखकर यह मान लेना गलत होगा कि हमारी सेना में अनुशासन नहीं है। सैन्य प्रबंधन को सेना के जवानों में विकृतियों पर नियंत्रण पाने के लिए पैनी निगरानी रखनी होगी और समय-समय पर जवानों की काउंसलिंग करनी होगी। सैन्य प्रबंधन ने कई तरह की शिकायतों को बेहतर ढंग से सुलझाया भी है। बेहतर होता कि आरोपी जवान सैन्य अधिकारियों के सामने अपनी शिकायत रखता। सैन्य प्रबंधन को सैनिकों के लिए काम करने की परिस्थितियों काे सहज बनाने के प्रयास भी करने होंगे। हमारी सेना दुनिया में नम्बर वन है। बठिंडा जैसे हादसे दुबारा न हों इसके लिए लगातार सुधार जरूरी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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