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आपका स्नेह आशीर्वाद , बहुत याद आता है

हमारा वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब जो रोमेश चन्द्र ट्रस्ट के अन्तर्गत काम करता है और पिछले 17 सालों से वरिष्ठ नागरिकों की जिन्दगी बदलने का दावा भी करता है। चाहे वो उच्च वर्ग के या मध्यम वर्ग या जरूरतमंद।

हमारा वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब जो रोमेश चन्द्र ट्रस्ट के अन्तर्गत काम करता है और पिछले 17 सालों से वरिष्ठ नागरिकों की जिन्दगी बदलने का दावा भी करता है। चाहे वो उच्च वर्ग के या मध्यम वर्ग या जरूरतमंद।
सब हैरान होते हैं कि इतना बड़ा काम कैसे हो रहा है तो मैं आज आप सबको बता दूं जिस पुण्य व्यक्ति के नाम पर यह काम हो रहा या जिनके नाम का ट्रस्ट है वो हैं आदरणीय स्वर्गीय अमर शहीद रोमेश चन्द्र जी जिनका 24 दिसम्बर को जन्मदिन होता है और हम हर साल बुजुर्गों को उनके नाम पर इस दिन उनके मनपसंद का खाना खिलाकर खुशियां बांटते हैं। 
आदरणीय रोमेश चन्द्र जी जो मेरे पति अश्विनी जी के पिता और मेरे ससुर पिता जी थे। जिन्होंने पहले देश की आजादी की लड़ाई लड़ी, फिर देश की एकता और अखंडता के लिए शहीद हो गए। मुझे उनका स्नेह आशीर्वाद 6 साल ही मिला, परन्तु वो 6 साल मेरे 600 साल के बराबर हैं। इतना स्नेह, इतना ख्याल रखना, इतना मान सम्मान देना मुझे कभी नहीं भूलता।
जब मेरी शादी हुई तो मैं पढ़ रही थी तो उनको हमेशा ख्याल रहता था, मैं कालेज में कैसे जा रही हूं, कौन मुझे छोडऩे जा रहा है, कौन लेने जा रहा है। उनके हर जन्मदिन पर मैं उन्हें एक मिठाई का डिब्बा और कार्ड बनाकर देती थी, क्योंकि उन्हें मीठा खाना बहुत पसंद था। एक दिन वह और मम्मी जी मुझे और अश्विनी जी को शिमला लेकर गए तो उन्होंने हमें काफी दूर तक पैदल चलाया कि उनको वहां की मशहूर दूध-जलेबी हमें खिलानी थी। उनका स्नेह था उस समय मुझे बहुत अजीब लगा था कि इतनी दूर मुझे सिर्फ दूध-जलेबी खिलाने के लिए लेकर गए, परन्तु अब समझ लगती है वो एक पिता का प्यार था कि हमें अच्छी चीज जरूर खिलाई जाए जो उनके मनपसंद थीं।
यही नहीं वो मुझे और अश्विनी जी को अमरनाथ यात्रा पर लेकर गए। उस समय रास्ता बहुत कठिन था। एक तरफ पहाड़ी एक तरफ खाई, बहुत छोटा तंग रास्ता और उनका घोड़ा और मेरा घोड़ा साथ-साथ चलता था तो मैं डरती थी तो वो वहां कहते किरण तुम एक बहादुर इंसान की पत्नी और बहादुर इंसान की बहू और उससे भी बहादुर इंसान की पौत्र वधू हो (लाला जगत नारायण जी की) तो तुमने जिन्दगी के किसी मोड़ पर नहीं डरना, मुझे पल-पल बहादुर बनाते थे।
जब लाला जी की हत्या हुई वो शहीद हो गए तो उसके तुरन्त बाद आदित्य होने वाला था, तब पंजाब में आतंकवाद चरम सीमा पर था। मैं बहुत डर जाती थी और क्योंकि मैंने ऐसा माहौल नहीं देखा तो बड़े प्यार से समझाते थे कि जीवन, मरण, लाभ, हानि, यश, अपयश सब विधि हाथ, सो डरना नहीं।
यही नहीं जब आदित्य पैदा हुआ तो उनकी खुशियों का ठिकाना नहीं था। उसके बाद हम जब दिल्ली आ गए तो वो सुबह-सुबह कश्मीर मेल से आते थे और रात को वापिस जाते तो मैं उनका खाना बनाकर साथ देती थी। कई बार तो मैं और अश्विनी जी उनको स्टेशन छोडऩे जाते तो वह आदित्य को उठाकर अपने साथ ही ले जाते थे। वो आदित्य को इतना प्यार करते थे कि अगर वो कोई नुक्सान भी करता तो उसको डांटते नहीं थे और जब वो बहुत रोता था, सोता नहीं था तो उसे गोद में उठाकर घूमते-घूमते लोरी गाते थे। आज की नीन्दी मेरे बेटे को मेरा बेटा सोता है…और आदित्य बड़े आराम से सो जाता था।
आदित्य के साथ उनका बहुत लगाव था। आखिरी समय जब मैं 10 मई को उनको स्टेशन छोडऩे गई तो वह आदित्य को अपने साथ ले गए क्योंकि उसका बैग हमेशा मेरे साथ तैयार रहता था। उस दिन 12 मई को भी एक फंक्शन से पहले वह आदित्य और उसकी दादी को कार में चक्कर लगाकर लाए और उनको घर छोड़ कर उस फंक्शन में गए और वापिसी में उनकी हत्या कर दी गई और वह शहीद हो गए।
मैं यह सब आपको इसलिए बता रही हूं कि जिस ट्रस्ट के अन्दर वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब काम करता है वो महापुरुष बहुत बहादुर, स्नेहमयी, बेहद ही योग्यवान  व्यक्ति थे। उनके जाने के बाद अश्विनी जी उनके नाम पर मदन लाल खुराना जी के साथ मिलकर एक चौक का नाम उन्हीं के नाम पर रखा और उनका स्टैच्चु लगवाया। कहने का भाव है कि महान व्यक्ति कभी नहीं मरते, उनका शरीर जरूर चला जाता है, परन्तु उनके द्वारा किए कार्य और सबको दिए गए आशीर्वादों से वो हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहते हैं।
24 तारीख को उनके जन्मदिवस पर हम हमेशा की तरह उनको याद करेंगे। क्योंकि नया वेरियंट आ गया है तो आनलाइन प्रसिद्ध गायक अंकित बत्तरा से शाम को 3 से 4 बजे तक वरिष्ठ नागरिक के फेसबुक पेज पर उनको याद करते हुए भजन सुनेंगे। 

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