यह स्वयं में बहुत महत्वपूर्ण है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति श्री वोलोदिमिर जेलेंस्की ने अमेरिका की यात्रा के बाद भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी को फोन करके उनसे रूस व यूक्रेन के बीच मध्यस्थता करने को कहा। जेलेंस्की ने अमेरिका में वहां की संसद को सम्बोधित किया था और अपेक्षा की थी कि उनके देश को रूस के विरुद्ध उसका समर्थन मिलता रहेगा। मगर इसके तुरन्त बाद उन्होंने भारत के प्रधानमन्त्री को फोन करना उचित समझा और उनसे रूस के साथ सुलह कराने का प्रस्ताव किया। ऐसा प्रस्ताव जेलेंस्की ने किसी यूरोपीय देश से भी नहीं किया जबकि लगभग सभी पश्चिमी यूरोपीय देश यूक्रेन के समर्थन में हैं। इसका एकमात्र कारण यह लगता है कि रूस व यूक्रेन के मामले में भारत की विश्वसनीयता निर्विवाद रूप से बहुत ऊंची है और जेलेंस्की को अनुमान है कि भारत के प्रधानमन्त्री अपने देश की शान्तिप्रिय विरासत के साये में रूस के साथ उनके देश के झगड़े का निपटारा दोनों देशों को सहमत बिन्दुओं पर लाकर कर सकते हैं। साथ ही रूस व यूक्रेन के मामले में भारत ने शुरू से ही ऐसा मानवीय तटस्थ रुख अपनाया है जिससे दोनों देशों के बीच तनाव व सैनिक विवाद बढ़ने के बजाये घटे। भारत का यह सन्तुलनकारी रुख विश्व की राजनीति में उभय पक्षीय न रहकर मानवीयता के पक्ष में रहा और युद्ध के विरुद्ध रहा। अपना यह मत प्रकट करने में भारत ने जरा भी संकोच नहीं किया और राष्ट्रसंघ तक में उसने रूस व यूक्रेन के मुद्दे पर प्रत्येक संजीदा मौके पर प्रदर्शन भी किया। जहां भारत को लगा कि पश्चिमी देश रूस को अनावश्यक रूप से सैनिक दबाव में लाना चाहते हैं वहां उसने इसका प्रतिरोध किया और जहां यह लगा कि रूस की तरफ से यूक्रेन के मामले में अन्तर्राष्ट्रीय नियमों व निर्दिष्ट सर्वमान्य सिद्धान्तों का उल्लंघन हुआ है वहां उसने मतदान में भाग नहीं लिया या अपना मत मानवीयता को आधार मानकर दिया। प्रधानमन्त्री मोदी को जब यह लगा कि रूस व यूक्रेन युद्ध के विध्वंस की विभीषिका में धंसते चले जा रहे हैं तो उन्होंने रूसी राष्ट्रपति श्री पुतिन को अपनी यह बेबाक राय दी कि वर्तमान दौर युद्ध का नहीं बल्कि वार्ता से विवादों को हल करने का है। जबकि रूस भी यह भलीभांति जानता है कि भारत के साथ उसके ऐतिहासिक प्रगाढ़ दोस्ताना व रणनीतिक सम्बन्ध हैं। भारत भी इस हकीकत को हर वक्त अपने एहसास में रखता है कि रूस पूरी दुनिया में उसका सबसे सच्चा और संकट काल में परखा हुआ परम मित्र है। इसके बावजूद श्री मोदी ने श्री पुतिन को वही सलाह दी जो एक दोस्त दूसरे दोस्त को देता है और उसके हित में देता है। परन्तु भारत के यूक्रेन के साथ भी मित्रवत कूटनीतिक सम्बन्ध हैं और दोनों देशों के बीच वाणिज्य के स्तर पर आवश्यक वस्तुओं का अच्छा कारोबार भी होता है। भारत की कोशिश शुरू से यही रही कि रूस व यूक्रेन के बीच उन सम्बन्धों की गरमाहट हमेशा बनी रहे जो 1990 से पहले सोवियत संघ के हिस्से के रूप में रूस व यूक्रेन में थी। लेकिन अब दोनों देशों के बीच छिड़े युद्ध को लगभग आठ महीने हो रहे हैं और रूस के राष्ट्रपति श्री पुतिन को यह मानना पड़ रहा है कि दोनों देशों को वार्ता की मेज पर बैठना चाहिए क्योंकि हर विवाद का अन्तिम हल वार्ता से ही निकलता है। जेलेंस्की जब अमेरिका गये थे तो उन्होंने रूस के साथ विवादों के हल के लिए एक दस सूत्री फार्मूला रखा था। इसके तहत रूसी सैनिकों की यूक्रेन से वापसी, युद्धबन्दियों की दोनों पक्षों द्वारा रिहाई, यूक्रेन की भौगोलिक सीमाओं की मान्यता तथा परमाणु सुरक्षा व खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा। निश्चित रूप से यह फार्मूला यूक्रेन के राष्ट्रीय हितों को देखते हुए बनाया गया है। पश्चिमी यूरोपीय देश व अमेरिका इसके पक्ष में हैं परन्तु जेलेंस्की भी जानते हैं कि इस फार्मूले को जस का तस स्वीकार करना रूस के राष्ट्रीय हितों के अनुकूल नहीं हो सकता इसी वजह से उन्होंने अपने फार्मूले पर श्री मोदी का समर्थन मांगते हुए उनसे मध्यस्थता करने की गुजारिश करते हुए उन्हें जी-20 सम्मेलन देशों की अध्यक्षता मिलने पर बधाई दी है। रूस व यूक्रेन के बीच भौगोलिक सीमा रेखाओं का विवाद सबसे पेचीदा है क्योंकि यूक्रेन के रूसी भाषी इलाकों पर अपना हक मानता है और इस सन्दर्भ में उसने दो इलाकों में जनमत संग्रह कराकर अपना दावा ठोक रखा है। अतः यह मामला ऐसा है जिसे दोनों देशों के उच्च प्रतिनिधिमंडल ही आपसी विचार-विमर्श से सुलझा सकते हैं। परन्तु इस स्थिति तक पहुंचने के लिए सबसे पहले दोनों देशों के बीच सैनिक कार्रवाइयों का रुकना जरूरी है। इस मामले में भारत दोनों देशों के हितों की भूमिका निभा सकता है क्योंकि रूस को लेकर जिस तरह अमेरिका व पश्चिमी यूरोपीय देश आक्रामक हैं उससे युद्ध की कार्रवाइयों के ठंडा होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। अमेरिका व यूरोपीय देशों ने जिस प्रकार रूस पर इकतरफा आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये हैं उससे स्थिति और खराब ही हुई है। मगर आर्थिक मोर्चे पर रूस को अलग- थलग करने की पश्चिमी रणनीति कारगर नहीं कही जा सकती क्योंकि वैश्विक मंच पर विभिन्न देशों ने द्विपक्षीय आर्थिक व वाणिज्यिक समझौते करके इसका तोड़ निकाल लिया है। दूसरी वजह यह भी है कि वैश्विक मोर्चे पर रूस की सामूहिक उपेक्षा नहीं की जा सकती। अतः श्री जेलेंस्की का श्री मोदी से मध्यस्थता करने की अपील करना यह बताता है कि वर्तमान उलझी हुई अन्तर्राष्ट्रीय समीकरणों में भारत की विश्वसनीयता बहुत ऊंचे पायदान पर है।