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झारखंड की पूर्ण क्षमता का नहीं हो सका उपयोग

राज्य की इस अलग समस्या को ध्यान में रखते हुए वित्त आयोग सहानुभूति पूर्वक अलग वित्तीय संसाधनों का प्रावधान करने पर विचार करेगा।

रांची : पंद्रहवें वित्त आयोग ने आज यहां कहा कि झारखंड राज्य जिस उद्देश्य से बना था वह पूरा नहीं हो सका और राज्य की पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सका। लेकिन वित्त आयोग मानता है कि यहां की मूलभूत समस्याओं के हल के लिए राज्य को सहानुभूतिपूर्ण सहयोग की आवश्यकता है। पंद्रहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन के सिंह ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि झारखंड के पिछले 18 वर्षों के विकास का अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस उद्देश्य से 18 वर्ष पूर्व इस राज्य का गठन किया गया था वह पूरा नहीं हो सका। यह उद्देश्य इसका तेजी से विकास करना था ताकि वह सभी तरह की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ सके लेकिन ऐसा हो न सका।’

उन्होंने कहा कि राज्य में गरीबी रेखा के नीचे बसर कर रहे लोगों की संख्या अब भी बहुत अधिक है और यह 27 से 28 प्रतिशत तक है जो अनेक जिलो में और अधिक हैं लेकिन इस हालात को बदलने की आवश्कता है। सिंह ने कहा कि वर्ष 2010-11 तक मोटे तौर पर यहां वित्तीय घाटा और अन्य आर्थिक मामलों में अनुशासन कायम रहा लेकिन पिछले तीन वर्षों में वित्तीय घाटा और कर्ज के मामले में राज्य की स्थिति ठीक नहीं रही है ।’ उन्होंने कहा कि फिर भी यह सराहनीय है कि मानव संसाधन विकास के अनेक कारकों में पिछले दो वर्षों में बड़े सुधार हुए हैं। शिशु मृत्यु दर, शिक्षा, गर्भवती महिला के स्वास्थ्य आदि में बड़े बदलाव दर्ज किये गये हैं।

झारखंड में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के अनुपात में रिण के बढ़ने एवं वित्तीय घाटे के बढ़ने के बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में वित्त आयोग के अध्यक्ष सिंह ने कहा कि इसका तात्कालिक कारण तो राज्य द्वारा केन्द्र की उदय योजना को अपनाना रहा है जिसके तहत राज्य विद्युत बोर्ड को कर्जे के बोझ से बाहर निकालने के लिए राज्य सरकार द्वारा उसे 5,553 करोड़ रुपये दिये गये और सरकार ने इसके लिए इस राशि का ऋण केंद्र की एजेंसियों से लिया। झारखंड सरकार ने वर्ष 2015-16 में यह कर्ज लिया था जिसके चलते उसका सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले ऋण का प्रतिशत उक्त वर्ष में 24 प्रतिशत रहा।

उदय योजना के लिए लिये गये इस ऋण का ही यह परिणाम रहा कि वर्ष 2016-17 में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में राज्य का ऋण 26 प्रतिशत तक पहुंच गया जो 14वें वित्त आयोग द्वारा तय 25.16 प्रतिशत की सीमा को लांघ गया।  सिंह ने कहा कि झारखंड की कुछ समस्याएं पारंपरिक हैं जबकि यहां की कुछ अन्य समस्याएं अलग तरह की है। राज्य में आदिवासियां की संख्या 27 प्रतिशत से अधिक है जो बहुत गरीब और अल्प विकसित हैं। राज्य की इस अलग समस्या को ध्यान में रखते हुए वित्त आयोग सहानुभूति पूर्वक अलग वित्तीय संसाधनों का प्रावधान करने पर विचार करेगा।

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