मुंबई की लोकल ट्रेन, मुंबई के खाने की डिब्बेवाली सर्विस की तुलना मुंबई के वड़ापाव से की जा सकती है। लेकिन, मुंबई में रहने वाले बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस वड़ा पाव की शुरुआत कब और किसने की थी। इसकी कहानी के पीछे बड़ा ही दिलचस्प राज़ है। भले ही वडापाव का काम मज़बूरी से शुरू हुआ था लेकिन आज मुंबई इसके साथ अपनी पहचान बनाता है।
वड़ापाव की स्थापना वास्तव में 1978 में अशोक वैद्य नाम के एक व्यक्ति ने की थी। वह पहले दादर स्टेशन के सामने फूड स्टैंड चलाता था। उस वक्त जो लोग आलू भाजी और चपाती खा रहे थे, उनके सामने उन्होंने एक नई डिश पेश की। उन्होंने पहले आलू भाजी तैयार करी और उसको बेसन के घोल में अच्छे से लपेट कर इसका वड़ा तैयार किया और फिर चपाती की जगह लोगों के सामने पाव पेश किया।
कम लागत में पेट भर खाना
यह वड़ापाव स्वादिष्ट था और इससे लोगों को संतुष्टि महसूस हुई। यह किफायती, पेट भरने वाले भोजन के लिए एक शानदार विकल्प के रूप में विकसित हुआ है, जो इसे अद्वितीय बनाता है। फिर वड़ापाव को धीरे धीरे सब लोग जानने लगे। 1980 के दशक में वड़ापाव को व्यापक रूप से आय का स्रोत माना जाता था। क्योंकि उस समय बेरोजगारी बढ़ रही थी और बंबई की मिलें बंद हो रही थीं।
कब हुई वड़ा पाव की शुरुआत
अशोक वैद्य ने अपने नियमित जीवन में अनेक व्यक्तियों को भागते दौड़ते हुए देखा था। उस समय लोग समय और संसाधनों की कमी के कारण पर्याप्त भोजन खाने के लिए संघर्ष करते थे। बजट में पेट भरने वाला भोजन बनाने के प्रयास में अशोक ने वड़ापाव बनाया।
इंजीनियर ने की नई खोज
अशोक का कहना हैं कि उनके दो भाई विकलांग हैं। मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बॉम्बे आईटीआई में दाखिला लिया। घर में गरीबी थी ये भी उन्होनें बताया। उनके पिताजी एक मिल में काम करते थे। मिल बंद होने के कारण कोई काम नहीं था, इसलिए खाने के लिए भोजन नहीं होता था। मैंने बहुत सोच-विचार करने के बाद उस समय 1978 में वड़ापाव कंपनी शुरू की थी। वड़ापाव जो पहले ताड़ के तेल में बनता था, बाद में लोगों को पसंद आया तो इसे नारियल के तेल में भी बनाया जाने लगा। उस समय परिवार के विरोध के बावजूद, यह जारी रहा ताकि लोग पौष्टिक वड़ापाव का सेवन कर सकें।
मुंबई वाले इस वड़ा पाव को हमेशा रखेंगे याद
जैसा कि बताया गया है, आज इस वड़ापाव को बनाने के लिए तीन अलग-अलग चटनी का उपयोग किया जाता है। इस वड़ा पाव का स्वाद प्रेमियों के लिए 44 विभिन्न प्रकार के घाटी मसालों द्वारा बढ़ाया जाता है, जिसमें मीठी चटनी, हरी मसालेदार चटनी और बहुत कुछ शामिल हैं। इस वड़ा पाव की कीमत 1978 में 25 पैसे से बढ़कर आज 30 रुपये हो गई है। न केवल अभिनेता और अभिनेत्रियाँ, राजनेता, राजनीतिक कार्यकर्ता और एथलीट वड़ापाव के प्रशंसक हैं, बल्कि नियमित लोग भी हैं। युवा से लेकर बूढ़े, अमीर और गरीब तक हर कोई इस वड़ा पाव का आनंद लेता है। इसी वजह से अशोक वैद्य यह आशा करते हैं कि मुंबईवासी इस वड़ापाव को हमेशा याद रखें।