ऐसे कई देश हैं जहा आज भी सांड को भिड़वाया जाता हैं इतना ही नहीं बल्कि इस लड़ाई को तो यहां के लोग बुल फेस्टिवल के नाम से भी जानते हैं। जो हर साल आयोजित करवाया जाता हैं और दूर-दूर से लोग इसे देखने के लिए आते हैं। मैक्सिको, पेरू, कोलंबिया, वेनेजुएला और लेटिन अमेरिका जैसे कई देशो में इस फेस्टिवल को भारी मात्रा में आयोजित करवाया जाता हैं।
वहीं बीकानेर में करीब 30 से 35 साल सांडो की लड़ाई होती थी लेकिन अब यहां ये रिवाज़ भी बंद हो गया। ऐसे में फिर लोगो ने सांड पालना ही बंद कर दिया। लेकिन इन सब सोच से परे आज भी कई बुज़ुर्ग लोग सांड पालते हैं और उनकी देख-रेख तक करते हैं। लेकिन उन्हें अपने बाड़े में ही रखते है। पहले सांडो की लड़ाई देखने के लिए हजारों लोग आते थे। इसके अलावा पहले सांडो को जाति भी रखते देते थे। जिस मालिक की जाति होती थी, इस सांड को उस जाति के नाम से बुलाते थे, यही नहीं भाई और बेटे की याद में लोग सांड पालते थे।
सांड पालने वाले राधेश्याम अग्रवाल ने बताया कि पहले मेरे पिताजी शुरू से गाय रखते थे। उन्होंने एक सांड पाला हुआ था, उन्होंने अपने बेटे की याद में उसका नाम सूरज रख दिया था, पहले सांडो को खूब घी खिलाते थे। नाम रखने के पीछे कारण था कि वे उस सांड को उस नाम से आवाज देते थे तो वे अपने मालिक के पास आ जाते थे। वे बताते है उनका मन और सरकार की सलाह से कि कोई दूसरा सांड हो और हमारा सांड हो इसकी लड़ाई हो। इसके लिए खुला मैदान हो. जहां सांडो की लड़ाई हो सके। इस मैदान में हजारों लोग सांडो की लड़ाई देखने आ सकेंगे।
क्या बोले राधेश्याम?
जिसके बाद इसके मालिक राधेश्याम ने इस बात का खुलासा करते हुए खुद बताया कि, ”मैंने भी श्याम नाम का सांड पाला था. काले रंग का जबरदस्त था। पास में ही एक सांड रहता था। तीन साल का सांड हो गया तो शरीर अच्छा और ताकतवर हो जाता है. एक दिन दो सांडो के बीच लड़ाई हो गई. उस समय 500 के आस पास लोग इक्कठे हो गए. वो लड़ाई दो घंटे चली. इसमें श्याम नाम का सांड जीत गया. इसके बाद श्याम सांड के मालिक ने खुशियां मनाई. दूसरे सांड का कोई मालिक नहीं था. ऐसे में गली मोहल्ले के लोगों ने इस हारे हुए सांड को पालना शुरू किया और दोबारा इन सांडो की लड़ाई के लिए तैयारियां शुरू की. ऐसे में लोग को सांडो की लड़ाई का शौक हो गया. ऐसे में फिर हर माह सांडो की लड़ाई होनी शुरू हो जाती थी.”
पहले लोगों के पास काम धंधा भी कम रहता था, साथ ही जनसंख्या भी ज्यादा नहीं थी। लोगों का व्यापार भी 10 बजे के बाद शुरू होता था। शाम 5 बजे तक व्यापार खत्म हो जाता था। शहर के आसपास बगेची होती थी। जहां लोग शाम को बैठकर खानपान और बातचीत करते थे।