युवा शक्ति ही राष्ट्र की असली शक्ति है। युवाओं को अपने भीतर नेतृत्व के गुण पैदा करने चाहिएं ताकि वे आगे बढ़कर समाज और राष्ट्र के उत्थान में अपनी भूमिका निभा सकें। वैसे तो स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आपातकाल और आपातकाल के दौरान और भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन आंदोलनों में युवा शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अक्सर लोगों को कहते हुए सुना जाता है कि युवा भविष्य के नेता हैं और युवाओं को नेतृत्व का मौका मिलना चाहिए। आज युवा शक्ति ऐसे संस्थानों और संगठनों का नेतृत्व कर रहे हैं जहां दिन-प्रतिदिन का प्रबंधन करने, फैसले लेने और नागरिक समाज का प्रभावी संचालन सुनिश्चित करने वाली गतिविधियां होती हैं। आज के दौर में युवाओं को मौके देने बहुत जरूरी हैं। छात्र राजनीति और छात्र आंदोलनों का लम्बा इतिहास रहा है। 1970 से 90 के दशक के दौर में छात्र नेता भारतीय राजनीति के शीर्ष पर रहे। छात्र राजनीति को पंगु बनाने के पीछे का उद्देश्य नया नेतृत्व न खड़े होने देने की मानसिकता भी जिम्मेदार रही है। अब जबकि राजनीति पी-4 यानि पद, पावर, पैसा, प्रतिष्ठा तक सिमट कर रह गई है।
इस समय युवाओं का राजनीति में प्रवेश बहुत मुश्किल हो गया है। फिर भी साहसी युवक और युवतियां नेतृत्व करने के लिए आगे आ रहे हैं। युवा देश समाज से जुड़े मुद्दों को लेकर काफी सजग है और उसकी सोच नई है। कर्नाटक के बल्लारी के महापौर चुनाव के इतिहास में सबसे कम उम्र की त्रिवेणी डी महापौर चुनी गई हैं। पैरामेडिकल स्नातक त्रिवेणी निगम की सबसे कम उम्र की निर्वािचत सदस्य भी हैं। कांग्रेस पार्टी की नेता त्रिवेणी के सामने भाजपा ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था। इसलिए उनका निर्वाचन निर्विरोध हुआ। त्रिवेणी की मां भी पूर्व मेयर रही हैं। हालांकि राजनीति में पदार्पण की प्रेरणा उसे परिवार से ही मिली है। लेकिन उसके सामने चुनौतियां बड़ी हैं। सबसे बड़ी चुनौती अपनी पार्टी और विपक्ष को साथ लेकर चलने की है और बल्लारी को एक आदर्श शहर के रूप में विकसित करने की भी है। बल्लारी शहर की कई समस्याएं भी हैं।
2022 में झुग्गी बस्ती में रहने वाली 21 वर्षीय दमयन्ती ओडिशा के कटक नगर निगम की सबसे कम उम्र की डिप्टी मेयर बनी थीं। इससे पहले केरल की आर्या राजेन्द्रन को देश की सबसे युवा मेयर बनने का गौरव हासिल हो चुका है। दिसम्बर 2020 में जब उसने तिरुवनंतपुरम सिटी कारपोरेशन के महापौर का पद सम्भाला था तब वह महज 21 साल की थीं और बीएससी मैथेमेटिक की द्वितीय वर्ष की छात्रा थीं। माकपा के स्टूडैंट विंग एसएफआई से छात्र जीवन में ही जुड़ गई थीं। महापौर पद सम्भालने के साथ-साथ उसने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और तिरुवनंतपुरम के लिए प्राथमिकताओं के हिसाब से योजनाएं भी तैयार कीं। सवाल यह नहीं है कि महापौर पद पर आसीन हुई युवतियां किस राजनीतिक दल से संबंध रखती हैं। अहम बात यह है कि छोटी उम्र में जिम्मेदारी वाला बड़ा पद सम्भालना है। आर्या राजेन्द्रन के पिता इलैक्ट्रिशियन हैं और उनकी मां साधारण जीवन बीमा निगम की कर्मचारी हैं। युवाओं को नेतृत्व के लिए तैयार करना परिवारों और राजनीतिक दलों का दायित्व है। युवाओं को स्वयं के सामाजिक दायित्वों का बोध होना बहुत जरूरी है। समस्या तब आती है जब परिवार और समाज युवा पीढ़ी को सामाजिक दायित्वों का बोध नहीं कराते। आज हर कोई धन और बल के जरिये सत्ता शीर्ष पर पहुंचना चाहता है। इतने महंगे चुनाव हो गए हैं उसमें कोई भी गरीब या मध्यमवर्गीय परिवारों के युवा चुनाव लड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकते।
भारतीय राजनीति में परिवारवाद के जरिये नेतृत्व तैयार करने के प्रयास किए जा रहे हैं। देश की नब्ज कह रही है कि युवा आगे आएं और नेतृत्व सम्भालंे। समस्या यह है कि युवा नेतृत्व तब ही उभरेगा जब उसे पनपने के पर्याप्त अवसर दिए जाएंगे। इसलिए सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वह समाज के हर वर्ग के युवाओं को प्रतिनिधित्व दें और उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास करने के लिए उन्हें प्रशिक्षण दें तभी युवा पीढ़ी भविष्य में नेतृत्व करने के लिए तैयार होगी। छात्र राजनीति को राजनीति की पहली पाठशाला माना जाता है। हालांकि राजनीतिक दलों का अपना-अपना अलग दृष्टिकोण है। कुछ का मानना है कि छात्रों को राजनीति से दूर रहना चाहिए। लेकिन अधिकांश का मानना है कि प्रत्यक्ष प्रणाली से छात्र संघ चुनाव कराए जाने चाहिएं। ताकि युवाओं में नेतृत्व की क्षमता पैदा हो सके। बल्लारी की कम उम्र की महापौर त्रिवेणी से जनता को काफी उम्मीदें हैं। जन आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना त्रिवेणी के लिए अग्निपरीक्षा के समान है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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