भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत रविवार को हरियाणा के चरखी दादरी में होने जा रही महापंचायत में शामिल होंगे। इससे पहले जींद में हुई महापंचायत में उनके समर्थन में भारी भीड़ जुटी थी। दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे संगठनों का समूह संयुक्त किसान मोर्चा ने 1 दिन पहले शनिवार को 3 घंटे का चक्का जाम किया था।
बता दें कि दिल्ली की सीमाओं पर केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे लगभग तीन दर्जन किसान संगठनों में से राकेश टिकैत एक संगठन का चेहरा थे, लेकिन 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुईं घटनाओं के बाद उन्हें एक नयी पहचान मिली और आज वह इस किसान आंदोलन का सबसे प्रमुख चेहरा बन गए हैं।
गणतंत्र दिवस के दिन जब दिल्ली में हिंसा की घटनाएं हुईं और कुछ प्रदर्शनकारियों ने लालकिले के गुंबदों तथा राष्ट्रीय ध्वज के स्तंभ पर जब धार्मिक झंडा लगा दिया तो देश में भड़की भावनाओं के चलते ऐसा लगा कि किसान आंदोलन अब खत्म हो चुका है, लेकिन इस विकट प्रतिकूल परिस्थिति में राकेश टिकैत अपनी भावुक अपील से आंदोलन को फिर से खड़ा करने में सफल रहे और दिल्ली की सीमाओं से लौटे किसान फिर से प्रदर्शन स्थलों पर पहुंच गए।
भारतीय किसान यूनियन के कद्दावर नेता महेन्द्र सिंह टिकैत के निधन के बाद बालियान खाप की परंपरा के अनुसार उनके सबसे बड़े पुत्र नरेश टिकैत को पगड़ी पहनाकर उनकी विरासत सौंपी गई थी, लेकिन उनके भाई राकेश टिकैत ने पिछले ढाई महीने से चल रहे किसान आंदोलन में हर दिन बदलते घटनाक्रम के साथ एक मजबूत किसान नेता के तौर पर अपने पिता की विरासत संभाली है।
सितंबर के अंतिम सप्ताह में कृषि संबंधी तीन विधेयकों को लागू किया गया था और कुछ ही समय में इन विधेयकों को लेकर विरोध के स्वर उभरने लगे। नवंबर का अंत आते-आते किसान संगठन दिल्ली की सीमा पर पहुंचने लगे और देश का अन्नदाता देश की सरकार से टकराने की जिद ठान बैठा। सरकार से कई दौर की बातचीत भी हुई और कई अन्य किसान नेताओं के साथ राकेश टिकैत भी किसानों के प्रतिनिधि के तौर पर इस बातचीत में शामिल हुए।