भोपाल (मनीष शर्मा) पूर्व केंद्रीय मंत्री, कद्दावर नेता राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया जब से भारतीय जनता पार्टी में आए हैं उनका राजनीति करने का अंदाज बिल्कुल बदल गया है। आरएसएस हो या भाजपा का छोटे से बड़ा कार्यकर्ता या नेता सिंधिया सभी से मिल रहे हैं बल्कि उनके घोर विरोधियों के घर पहुंच कर सबको चौका रहे है। राजनीति में सिंधिया के सबसे घोर विरोधी पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया के घर पहुंच कर एक नई मिसाल कायम की है।
सिंधिया और पवैया की मुलाकात से प्रदेश में राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। किसी जमाने में एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे नेताओं की ये मुलाकात आगामी राजनीतिक समीकरणों के लिए बेहद अहम मानी जा रही है। बता दें की जयभान सिंह पवैया ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पिता स्व. माधवराव सिंधिया के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़े थे। जिनमे दोनों को ही कड़ी टक्कर दी थी। संभवत यह पहला मौका है जब पवैया और सिंधिया की इस प्रकार से मुलाकात हुई है।
सर्वविदित है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा के हर निर्णय में अपनी भागीदारी रखता है और ऐसे में संघ प्रमुख से लेकर निचले स्तर तक के आरएसएस के नेताओं से सिंधिया की मुलाकातें प्रदेश में राजनीति के नए समीकरण बना रही है। देश की राजनीति हो या मध्य प्रदेश की राजनीति भाजपा में किसे क्या पद मिलेगा यह संघ तय करता है और सिंधिया संघ और भाजपा को साधने में सफल साबित हुए हैं। आरएसएस सिंधिया में प्रदेश की राजनीति में भविष्य का चेहरा देख रहा है।
सिंधिया के करीबियों का कहना है कि कांग्रेस में अपने आपको वह जिस तरह बंधा हुआ महसूस करते थे भाजपा में आकर खुलकर काम कर रहे हैं। कोरोना काल में सिंधिया ने आरएसएस के कई प्रचारकों को मदद की तथा संघ द्वारा बताए गए कई लोगों को माधवराव सिंधिया स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की। जयभान सिंह पवैया हिंदुत्व का एक बड़ा चेहरा है और आरएसएस में उनकी अच्छी खासी पकड़ है सिंधिया का उनसे यू मिलना भविष्य की राजनीति कैसी होगी इस बात को इंगित करता है।
▪️सिंधिया परिवार के खिलाफ मुखर रहे हैं पवैया
बता दें, जयभान सिंह पवैया और सिंधिया परिवार के बीच सियासी अदावत पिछले 23 साल से चली आ रही है। सन 1998 में जय भान सिंह पवैया ने कांग्रेस नेता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के खिलाफ ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में सिंधिया और पवैया के बीच कड़ा मुकाबला हुआ। माधवराव सिंधिया 28 हज़ार वोट से इस चुनाव को जीते थे माधवराव सिंधिया ने इस बेहद मामूली जीत के बाद नाराज़ होकर आगे ग्वालियर से चुनाव नहीं लड़ा। उसके बाद माधवराव सिंधिया गुना चले गए।
▪️ज्योतिरादित्य को दी थी कड़ी टक्कर-
माधवराव के बाद पवैया और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच भी यह सियासी अदावत जारी रही। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में गुना लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ जयभान सिंह पवैया ने भाजपा से चुनाव लड़ा। यहां भी कांटे का मुकाबला हुआ। चार लाख से जीतने वाले सिंधिया की जीत एक लाख बीस हज़ार पर सिमट गई थी।
राजमाता के करीब रहे पवैया
जयभान सिंह पवैया की माधवराव से अदावत रही। लेकिन, पवैया राजमाता विजयाराजे सिंधिया के करीब रहे हैं। पवैया स्वर्गीय राजमाता से जनसंघ से लेकर भाजपा तक सम्पर्क में रहे। बजरंगदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के दौरान बाबरी आंदोलन में अगुआ रहे। हालांकि, यशोधरा राजे सिंधिया और पवैया दोनों के बीच भी सियासी रिश्ते सामान्य रहे हैं।