सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले के ट्रायल जज बी एच लोया की मौत मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज बहस पूरी नहीं हो सकी और सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। याचिकाकर्ता बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन (बीएलए) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अपनी दलीलें पेश की।
उन्होंने दलील दी कि अगर यह मान भी लिया जाये कि सीबीआई जज लोया की मौत प्राकृतिक थी, तब भी एक स्वतंत्र जांच कराने से राज्य सरकार को दिक्कत क्या है? खुद महाराष्ट्र सरकार की रिपोर्ट में तमाम विरोधाभास है, जिसकी जांच की जरूरत है। दवे ने पीठ से कहा कि सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बी एच लोया की मौत के वक्त कोई दूसरा जज साथ नहीं था। उनकी इन दलीलों पर राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने एतराज किया है।
जिरह के दौरान दवे ने शीर्ष अदालत के उस आदेश का हवाला दिया, जिसमें सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में कराने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की साफ-साफ मनाही के बावजूद इस मामले में जज का स्थानांतरण हुआ। उन्होंने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का जिक्र करते हुए कहा कि सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले से जुड़े 1000 से ज्यादा पृष्ठ थे, लेकिन नए जज ने इतनी जल्दबाजी दिखाई कि 30 दिसंबर 2014 को ही शाह को आरोप मुक्त कर दिया।
तीन साल गुजरने के बाद भी सीबीआई ने शाह को आरोप मुक्त किये जाने के इस फैसले को चुनौती नहीं दी है। इस पर रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील को इस मामले में अप्रासंगिक तथ्यों को उठाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। सुनवाई अधूरी रही और न्यायालय ने इस पर सोमवार को बहस जारी रखने का निर्देश दिया। गौरतलब है कि ट्रायल जज लोया की एक दिसंबर 2014 को नागपुर में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी, जब वह अपने सहकर्मी की बेटी की शादी में शामिल होने गये थे।
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