देश की लगातार बढ़ती जनसंख्या चिन्ता का विषय है। योग गुरु बाबा रामदेव ने कुुछ दिन पहले कहा था कि देश की आबादी को 150 करोड़ से अधिक नहीं होने दिया जाना चाहिए। उन्होंने सलाह दी थी कि यह तभी सम्भव है जब हम तीसरी सन्तान या इसके बाद होने वाली सन्तानों को मताधिकार से वंचित करने वाला कानून लागू करेंगे। ऐसे बच्चों को चुनाव लड़ने और अन्य सरकारी नौकरियों के अधिकार से भी वंचित किया जाना चाहिए। यद्यपि बाबा रामदेव के विचारों का कुछ नेताओं ने समर्थन किया लेकिन मुस्लिम नेताओं ने बाबा रामदेव के वक्तव्य को असंवैधानिक करार दिया।
बाबा रामदेव के बयान पर विवाद के बीच सवाल यह है कि क्या देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की जरूरत है? इसी बीच दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर हुई है। इस याचिका में केन्द्र सरकार से जनसंख्या नियंत्रण के लिए जरूरी कदम उठाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि देश में बढ़ते अपराध, बढ़ता प्रदूषण, नौकरियों की कमी का मुख्य कारण जनसंख्या विस्फोट ही है, लिहाजा इस पर रोक लगाना जरूरी है। याचिका में जनसंख्या नियंत्रण के लिए न्यायमूर्ति वेंकटचलैया के नेतृत्व में राष्ट्रीय संविधान समीक्षा आयोग की सिफारिशें लागू करने का अनुरोध किया गया है। यह बात भी सही है कि जनसंख्या को अगर इस समय नियंत्रित नहीं किया गया तो भारत को भयंकर दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे। आज हमारे पास खेती की जमीन कम और लोग ज्यादा हो रहे हैं।
देश में नई सरकार का गठन हो चुका है, उसके सामने बड़ी चुनौती देश की बढ़ती आबादी का पेट भरना है। भारत में लगभग 134 करोड़ की आबादी है। भारत पूरी दुनिया में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। दूसरे शब्दों में भारत की जनसंख्या अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान, बंगलादेश तथा जापान की कुल जनसंख्या के लगभग बराबर है। जिस पैमाने पर जनसंख्या बढ़ रही है, वह चौंकाने वाली है। जहां सन् 1947 में भारत की जनसंख्या 33 करोड़ के लगभग थी वहीं यह 2011 में बढ़कर 121 करोड़ हो गई। 2030 तक भारत जनसंख्या के मामले में चीन से आगे निकल जाएगा।
जनसंख्या वृद्धि का लोगों के जीवन पर सीधा असर पड़ता है। यही कारण है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कृषि एवं उद्योग के क्षेत्रों में हमारी अभूतपूर्व प्रगति के बावजूद हमारी प्रितव्यक्ति आय प्रशंसनीय रूप से नहीं बढ़ रही। लाखों लोग बेघर हैं, 9.70 करोड़ लोगों के पास सुरक्षित पेयजल सुविधा नहीं है। 27.20 करोड़ के लगभग लोग निरक्षर हैं। पांच वर्ष से कम आयु वाले 43 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। हमारे शहरों और महानगरों की हैरान कर देने वाली भीड़भाड़ ने परिवहन, बिजली तथा अन्य सेवाओं को वस्तुतः ध्वस्त कर दिया है।
वर्तमान में जितनी बुनियादी सुविधाओं का ढांचा स्थापित कर रहे हैं, आने वाले वर्षों में हमें इससे कहीं अधिक बुनियादी संरचनाओं की जरूरत पड़ेगी। कुछ वर्षों बाद हमारे देश में बेरोजगार, भूखे, निराश लोगों की एक फौज खड़ी हो जाएगी जो देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक प्रणालियों और संस्थाओं की जड़ों को हिलाकर रख देगी। इतनी बड़ी आबादी में सबके लिए रोजगार और आवास, स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सोचा जाना ही निरर्थक हो रहा है। खासतौर पर जब हर वर्ष इसमें 2 करोड़ लोग जुड़ते जाएंगे तो उन्हें समायोजित करना कितना मुश्किल काम होगा। इतनी बड़ी आबादी के लिए अस्पतालों और स्कूलों की कमी है। हमारे देश में ऐसी जनसंख्या नीति तैयार करने की जरूरत है जो व्यक्तियों की संख्या में अनियंत्रित वृद्धि पर अंकुश लगा सके।
परिवार नियोजन को उस दलदल से बाहर निकालने की जरूरत है जिसमें यह फंस चुका है। इसके लिए कार्यक्रम को अन्दर से देखना होगा तथा इसे स्वयं को अपने अधिकार के अंतर्गत विकास का एक निवेश मानना होगा। परिवार नियोजन को पुनः उसके पांव पर खड़ा किए जाने के उपायों को लागू करना होगा। इन्दिरा गांधी शासनकाल में ‘हम दो हमारे दो’ का अभियान छेड़ा गया। आपातकाल के दौरान जनसंख्या नियंत्रण के लिए जबरन पुरुषों की नसबंदी की गई, जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा था। देश के कुछ राज्यों में तीसरा बच्चा पैदा करने वालों पर पंच-सरपंच का चुनाव लड़ने पर रोक है। हम यह देख चुके हैं कि परिवार नियोजन में जोर-जबर्दस्ती से काम नहीं चलेगा। इसके लिए कुछ कानूनी उपाय जरूर सहायक हो सकते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि बढ़ती आबादी का मुद्दा कभी कोई राजनीतिक दल चुनावी मुद्दा नहीं बनाता।
भाजपा शासित असम में दो बच्चों का कानून बनाने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए कानून के मसौदे को राज्य विधानसभा में कुछ माह पहले पेश किया था तो मोदी सरकार- वन में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने देश में प्रजनन दर (टीआरएफ) को नियंत्रण में बताते हुए जनसंख्या कानून की आवश्यकता से इन्कार किया था अाैर कहा था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। देश में इस बात को लेकर अलग-अलग राय हैं। एक वर्ग कठोर कानून बनाने की बात करता है तो दूसरा इसका विरोधी है। कानून में वह ताकत नहीं जो जमाना बदल दे। जमाना तो बदला है क्रांतिकारी जुनून से। जरूरत है ऐसे लोगों की जो परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता पैदा करें। समाज में धर्माचार्य, उपदेशक, समाजसेवी, कार्यकर्ता घर-घर जाकर परिवार नियोजन की अलख जगाएं।
लड़कियों की विवाह की आयु को बढ़ाया जा सकता है। परिवार नियोजन कार्यक्रम केवल प्रचार के लिए नहीं चलाया जाए बल्कि समय-समय पर इसे प्रोत्साहित किया जाए। जरूरी है समाज को इस बात के लिए राजी किया जाए कि उस बच्चे को पैदा करने की जरूरत नहीं जिसे हम पाल नहीं सकते। जनसंख्या नियंत्रण का सीधा सम्बन्ध शिक्षा से है। समाज जितना शिक्षित होगा उतनी ही इसके प्रति जागरूकता बढ़ेगी।