एक तरफ सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के उपाय ढूंढ रही है, दूसरी तरफ किसानों की स्थिति काफी दयनीय होती जा रही है। देशभर में किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। अब किसानों को धीमी मौत दी जा रही है। यह मौत उन्हें दे रहे हैं कीटनाशक। महाराष्ट्र के विदर्भ का यवतमाल जिला किसानों की आत्महत्या के लिए पहचाना गया। यह कितना दु:खद है कि विदर्भ में कीटनाशक रसायन के छिड़काव के कारण 24 किसानों की मौत हो गई, इनमें से 19 किसानों की मौत अकेले यवतमाल जिला में हुई है। अन्य सैकड़ों किसान अस्पतालों में उपचाराधीन हैं। यह कोई पहला वर्ष नहीं है कि कीटनाशकों की वजह से किसानों की मृत्यु हुई है। पिछले वर्ष 150 से अधिक ऐसे मामले दर्ज किए गए थे लेकिन फिर भी उससे कोई सीख नहीं ली गई। अब सवाल उठाया जा रहा है कि क्या इन मौतों को रोका जा सकता था?
महाराष्ट्र सरकार ने इन मौतों के कारणों को ढूंढने के लिए समिति भी गठित की और साथ ही कीटनाशकों के छिड़काव के वक्त इस्तेमाल होने वाले सुरक्षा साधन अनिवार्य कर दिए गए लेकिन यह सुरक्षा के प्रबन्ध पहले ही क्यों नहीं किए गए। अब खेती विषैली हो चुकी है। रासायनिक खेती ने खेती के आधुनिक तौर-तरीकों और इन्सानी जिन्दगी पर खतरों को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। मरने वालों में अधिकतर खेतिहर मजदूर हैं, उनके परिवारों की हालत अत्यन्त दयनीय है। परिवार सदमे में हैं। किसी के घर में वृद्ध मां-बाप, अविवाहित बेटियां तो किसी के घर में छोटे बच्चे हैं, अब उनकी कौन सुनेगा? देशभर में फसल बुवाई से लेकर कटाई तक फसलों पर औसतन तीन से चार बार कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे अनाज और सब्जियों में कीटनाशकों का अवशेष बड़ी मात्रा में पाया जा रहा है और यह लोगों को कैंसर जैसी बीमारियां दे रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अध्ययन में बताया गया है कि वर्ष 2020 तक देश में कैंसर मरीजों की संख्या में 17 लाख 20 हजार का इजाफा हो जाएगा जिसका कारण तम्बाकू सेवन के साथ ही कीटनाशकों का बढ़ता प्रयोग है। कैंसर के जो मरीज आ रहे हैं उसमें से कीटनाशकों के कारण लोगों में पेट, फेफड़े और प्रोस्टेट कैंसर हो रहा है।
कीटनाशकों का उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। 1950 में देश में जहां 2000 टन कीटनाशक की खपत थी, जो अब बढ़कर 90 हजार टन से भी ज्यादा हो रही है। 60 के दशक में जहां देश में 6.4 लाख हैक्टेयर में कीटनाशकों का छिड़काव होता था, अब डेढ़ करोड़ हैक्टेयर में कीटनाशकों का छिड़काव हो रहा है जिसके कारण भारत में पैदा होने वाले अनाज, फल, सब्जियां और दूसरे कृषि उत्पादों में कीटनाशकों की मात्रा तय सीमा से ज्यादा पाई जा रही है। कृषि राज्यमंत्री ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि पिछले तीन वर्षों में खेत में कीटनाशकों का छिड़काव करते समय 5114 किसानों की मौत हुई है। एक तरफ तो देश के लोग जहर खा रहे हैं तो दूसरी तरफ देश की धरती किसानों के लिए शमशान बनती जा रही है। कीटनाशकों से बचाव के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं। कीटनाशकों को लेकर लापरवाही का आलम यह है कि इनको बेचने के लिए जिन लोगों को लाइसेंस दिया गया है, उन्हें ही नहीं पता कि कौन-सा कीटनाशक कितना घातक है। किसानों को छिड़काव करते समय सुरक्षा उपाय करने चाहिएं लेकिन जागरूकता के अभाव में हर वर्ष किसान कीटनाशकों के प्रभाव से मर रहे हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद समय-समय पर किसानों को कीटनाशकों का छिड़काव करते समय अपनी सुरक्षा कैसे करें इसके लिए एक गाइडलाइन्स जारी करती है, जिसके मुताबिक कीटनाशक मनुष्य के शरीर में हवा और भोजन के जरिये प्रवेश करते हैं। ऐसे में इससे बचने के लिए किसानों को केवल उन रसायनों का ही इस्तेमाल करना चाहिए जिन्हें सरकार से मान्यता प्राप्त है। छिड़काव करने से पहले एप्रेन पहनें जिससे शरीर पूरी तरह ढका हो, आंखों की सुरक्षा के लिए चश्मा, ऊंचे जूते और दस्तानों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। खंड स्तर पर कृषि में सहायक अधिकारी भी नियुक्त होते हैं लेकिन वह भी इस बात का ध्यान नहीं रखते कि किसान और मजदूर कौन-सा कीटनाशक और कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं।
किसान और खेतिहर मजदूर इतने पढ़े-लिखे भी नहीं हैं कि जो पैकेटों पर लिखी सूचनाएं समझ सकें। यह तो सरकारी स्तर पर नाकामी है। सरकार केवल यह बताती है कि सुरक्षा पर ध्यान दें लेकिन वह किट उपलब्ध नहीं करवाती। खेतिहर मजदूरों के लिए रोटी का सवाल बहुत बड़ा है, इसलिए वे जान पर खेल जाते हैं। कम्पनियां अपने उत्पाद बेचती हैं, सुरक्षा के साधन उपलब्ध नहीं करातीं। जो भी हो रहा है दु:खद है। हम सपना तो देखते हैं खेती में नई प्रौद्योगिकी अपनाने का, लेकिन खेती तो जानलेवा बन चुकी है। कृषि और अन्नदाता को बचाने के लिए क्या किया जाना चाहिए, इसके लिए ठोस पग उठाने ही चाहिएं।