नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर 2016 की रात नोटबंदी का फैसला लिया गया था। अचानक पूरे देश से पांच सौ और एक हजार के नोट को वापस लेने का फैसला किया गया। जिसके पीछे भष्टाचार और कालेधर पर लगाम लगाए जाने की बात कही गई थी लेकिन इससे न तो भ्रष्टाचार कम हुआ और न ही कालेधन पर कोई लगाम लगी बल्कि नोटबंदी के फैसले से जिसको परेशना हुई वो थी आम जनता और जिसको फायदा हुआ वो थे राजनीतिक पार्टियों के नेता।
जिसका खुलासा हुआ है एक आरटीआई के तहत मिली जानकारी से जिसमे पता चला कि नोटबंदी के दौरान राजनीतिक पार्टी के नेताओं द्वारा चलाए जा रहे सहकारी बैंकों में बहुत अधिक मात्रा में पुराने नोट जमा किए गए हैं।
नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) के आरटीआई रिकॉर्ड के मुताबिक, देश में 370 सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) ने 10 नवंबर से 31 दिसंबर, 2016 तक 500 रुपये और 1000 रुपये के 22,270 करोड़ रुपये के पुराने नोटों का आदान-प्रदान किया, जिनमें 18.82 फीसदी यानी 4,191.39 करोड़ रुपये इन 10 बैंकों में बदले गए, जहां के शीर्ष पदों पर राजनीतिक दलों के नेता विराजमान हैं। रिकॉर्ड के मुताबिक, इन 10 बैंकों में गुजरात के चार बैंक, महाराष्ट्र के चार बैंक, हिमाचल प्रदेश का एक बैंक और कर्नाटक का एक बैंक शामिल है।