नववर्ष 2019 का आगाज होते ही भारत को एक बड़ी कूटनीतिक सफलता मिली लेकिन चुनावी वर्ष होने से सियासत के गर्माने के चलते देशवासियों का ध्यान इस समाचार की ओर कम ही गया होगा। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के साथ अपने मजबूत होते रिश्तों पर एक और मुहर लगा दी है। ट्रंप ने हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भारत के साथ बहुमुखी सम्बन्धों को मजबूत करने और क्षेत्र में अपनी धाक मजबूत करने के लिए एक विधेयक पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे चीन की गतिविधियों को नियम आधारित प्रणाली को कमजोर करने वाला बताया है।
अमेरिका के इस कदम से हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भारत को भी अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगी। अधिनियम 2005 के यूएस-इंडिया डिफेंस रिलेशनशिप, डिफेंस टैक्नोलोजी एंड ट्रेड इनिशिएटिव (2012) की नई रूपरेखा, हिन्द प्रशांत और हिन्द महासागर क्षेत्र के लिए 2015 के संयुक्त रणनीतिक दृष्टिकोण और साझेदारी के माध्यम से समृद्धि पर 2017 का संयुक्त वक्तव्य प्रतिबद्धता दोहराता है। ट्रंप के विधेयक पर मुहर चीन को मात देने की रणनीति माना जा रहा है। इस कानून को एशिया रिएश्योरेंस इनिशिएटिव एक्ट का नाम दिया गया। इसके तहत अगले 5 सालों के लिए 1.5 बिलियन डॉलर का बजट बनाया गया है।
हिन्द-प्रशांत के रणनीतिक महत्व और चीन की आक्रामक नीतियों को देखते हुए चार देशों-भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का समूह बनाया गया था। इस क्षेत्र में चीन को काउंटर करने के लिए भारत एक अहम भूमिका निभा रहा है। यह समूह चाहता है कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के विकास और शांति के लिए मुक्त, खुली, समावेशी और नियम आधारित व्यवस्था हो। इस समूह की सिंगापुर और अर्जेंटीना में जी-20 सम्मेलन के दौरान बैठकें भी हो चुकी हैं। भारत हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्व और विस्तार से चिन्तित रहा है। प्रशांत क्षेत्र में चीन का कई अन्य देशों से मतभेद और विवाद चल रहा है।
चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता रहा है। इसे लेकर वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई और ताईवान के बीच टकराव है क्योंकि इन देशों के आर्थिक हित इस सागर से जुड़े हैं। इसी तरह से पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ उसका विवाद है। दरअसल इस समुद्री रास्ते से सालाना लगभग तीन अरब डॉलर का व्यापार होता है। दक्षिण चीन सागर खनिज, तेल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से अत्यधिक उपयोगी है। भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के रणनीतिक इरादे नेक नहीं हैं। इस क्षेत्र में चीन की कुछ ऐसी गतिविधियां देखी गई हैं जिन्हें यह देश दक्षिण चीन सागर में अस्थिर और प्रतिकूल के रूप में देखते हैं।
चीन तो चाहता ही नहीं है कि हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर को हिन्द-प्रशांत इलाके के नाम से जाना जाए क्योंकि इससे भारत का नाम प्रमुखता से उठता है तो पूरे इलाके से भारत के जुड़े होने का सीधा अहसास मिलता है। जिस तरह प्रशांत महासागर के तहत चीन से लगा समुद्री इलाका दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर के तौर पर जाना जाता है। चीन नहीं चाहता कि भारत के नाम से जुड़ा इतना बड़ा इलाका जाना जाए। इस इलाके में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए अमेरिका अकेले चीन की चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकता इसलिए उसने अन्य देशों को साथ लेने की रणनीति पर काम किया।
हिन्द महासागर को भारत की चौखट समझा जाता है लेकिन ग्लोब्लाइजेशन के इस दौर में इस पर दबदबे की कोशिशें हो रही हैं। चीनी पनडुब्बियां भी महासागर में देखी गईं। चीन बंदरगाहों के विकास और सैन्य अड्डों की मौजूदगी के जरिये भुजाएं फड़का रहा है। इस क्षेत्र में चीन के इरादों को लेकर संदेह तब यकीन में बदल गया, जब उसने पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में अपनी पहली सैन्य चौकी बनाई। बदले में चीन ने वहां निवेश और सुरक्षा देने का वायदा किया। इसी तरह उसने श्रीलंका में हंबनटोटा पोर्ट, मालदीव में मकाओ पोर्ट, बंगलादेश के चटगांव पोर्ट और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर कंट्रोल किया।
चीन ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में निगरानी बढ़ा दी है। भारतीय नौसेना काे भी अपनी निगरानी बढ़ानी पड़ी है। चीन दक्षिण चीन सागर में पड़ोसी देशों के विरोध के बावजूद अवैध रूप से निर्माण कार्य कर रहा है और वहां अपनी सेना की तैनाती कर रहा है। अमेरिका द्वारा बनाए गए इस नए कानून में भारत को खास तवज्जो दी गई है। इससे पहले भारत और अमेरिका के बीच हुए समझौतों के साथ ही नया कानून दोनों देशों के बीच व्यापार, रक्षा खरीद और आर्थिक नीतियों को नई गति देगा। अब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान साथ मिलकर सुरक्षा की दिशा में काम करेंगे। नए कानून से भारत को फायदा यह है कि हम चीन की आक्रामक रणनीति का जवाब देने की स्थिति में होंगे।