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उपचुनाव नतीजों का समीकरण

छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर हुए उप चुनाव के नतीजों से साफ लगता है इस वर्ष के दिसम्बर माह तक पांच राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना व मिजोरम) में होने वाले विधानसभा चुनावों में केन्द्र में सत्तारूढ़ गठबन्धन ‘एनडीए’ व विपक्षी गठबन्धन ‘इंडिया’ के बीच भीषण ‘वोट युद्ध’ होगा।

छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर हुए उप चुनाव के नतीजों से साफ लगता है इस वर्ष के दिसम्बर माह तक पांच राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना व मिजोरम) में होने वाले विधानसभा चुनावों में  केन्द्र में सत्तारूढ़ गठबन्धन ‘एनडीए’ व विपक्षी गठबन्धन ‘इंडिया’ के बीच भीषण ‘वोट युद्ध’ होगा। इन पांचों राज्यों में से केवल दो ही राज्यों (मध्य प्रदेश व मिजोरम) में जहां भाजपा व उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं वहीं तीन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारे हैं। इनमें छत्तीसगढ़ व राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की सरकारें है जबकि तेलंगाना में वहां की क्षेत्रीय पार्टी भारत तेलंगाना समिति की सरकार है। जहां तक चुनावी समीकरणों का फिलहाल सवाल है तो यह कहा जा सकता है कि विभिन्न 28 विपक्षी दलों के गठबन्धन इंडिया का गठन 2024 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए किया गया है। अतः इन पांचों राज्यों में कस कर सीधा मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच ही होगा। 
अभी जिन विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनाव हुए थे उनमें उत्तर प्रदेश की घोसी सीट के अलावा प. बंगाल की धूपगुड़ी, केरल की पुथुपल्ली, उत्तराखंड की बागेश्वर, झारखंड की डुमरी व त्रिपुरा की बोक्सानगर व धनपुर सीटें शामिल हैं। इनमें से तीन सीटें (बागेश्वर, धनपुर व बोक्सानगर ) भाजपा की झोली में गई हैं और शेष चार सीटें इंडिया के गठबन्धन दलों को मिली हैं। इन सभी में से उत्तर प्रदेश की घोसी सीट का महत्व सबसे ज्यादा है क्योंकि उत्तर प्रदेश में भाजपा के नेता योगी आदित्यनाथ की सरकार है। योगी जी की सरकार को बहुत मजबूत सरकार माना जाता है और समझा जाता है कि जिस तरह प्रशासनिक व सामाजिक स्तर पर योगी जी ने अपनी पकड़ राज्य के मतदाताओं पर बनाई हुई है उसमें ढीलापन आ गया है। घोसी सीट श्री अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने जीती है जिसे कांग्रेस व इंडिया के अन्य दलों का पूरा समर्थन प्राप्त था। यह चुनाव ‘इंडिया’ ने भाजपा के एनडीए के खिलाफ जीता है जिसकी वजह से विपक्षी दलों का मनोबल बढ़ा हुआ लगता है। मगर भाजपा ने भी त्रिपुरा राज्य की दो सीटें जीत कर साफ कर दिया है जहां उसी की सरकार है। इसी प्रकार इसने उत्तराखंड की सीट भी जीत ली। यहां भी भाजपा की ही सरकार है। 
प. बंगाल की धूपगुड़ी सीट पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद इसी को यह सीट मिली है जबकि पिछले वर्ष के चुनावों में यह सीट भाजपा को मिली थी। केरल में कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी ने उपचुनाव मार्क्सवादी पार्टी के प्रत्याशी को हरा कर जीता है। यदि इस प्रकार देखा जाये तो झारखंड की डुमरी सीट ‘झारखंड मुक्ति मार्चों’  के प्रत्याशी ने जीती है जहां उसकी टक्कर भाजपा के प्रत्याशी से हुई थी। केरल की सीट कांग्रेस पार्टी ने सत्तारूढ़ मार्क्सवादी पार्टी के राज्य स्तरीय वाम मोर्चे के उम्मीदवार को हरा कर जीती। उपचुनावों को हम बेशक कोई पैमाना नहीं मान सकते मगर इनसे केवल मतदाताओं के ‘मूड’ का अन्दाजा जरूर लग सकता है। उप चुनावों में प्रायः सत्तारूढ़ पार्टियों के प्रत्याशियों की विजय भी होती रहती है। इनमें घोसी (उत्तर प्रदेश) की सीट इसलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि देश के इस सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से होकर ही दिल्ली की गद्दी का रास्ता निकलता है। इस राज्य में लोकसभा की सर्वाधिक 80 सीटें हैं। घोसी पूर्वी उत्तर प्रदेश में है और यह एक जमाने में कम्युनिस्टों का गढ़ भी माना जाता है। 
1967 में जब राज्य में पहली बार स्व. चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व कांग्रेस विरोधी विपक्षी पार्टियों के विधायकों की संयुक्त विधायक दल (संविद) सरकार गठित हुई थी तो इसमें घोसी से ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन विधायक स्व. झारखंडे राय खाद्यमन्त्री बने थे। यह सीट समाजवादी पार्टी ने इंडिया गठबन्धन के सभी सदस्य दलों के समर्थन से जीती है। सबसे बड़ा सन्देश इस उपचुनाव का यह गया है कि मतदाताओं ने अब पुराने जातिगत समीकरणों से अपना पीछा छुड़ाने का फैसला कर लिया है। क्योंकि घोसी से सपा के उम्मीदवार श्री सुधाकर सिंह एक ठाकुर हैं जबकि भाजपा के प्रत्याशी दारा सिंह चौहान पिछड़ी जाति के माने जाते हैं। इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि मतदाता जातिगत दायरा तोड़कर वृहद दायरे में सोचने लगा है। 
उत्तर प्रदेश को भाजपा का गढ़ और योगी का किला कहा जाता है। यदि यहां इंडिया गठबन्धन के किसी दल के प्रत्याशी की जीत रिकार्ड मतों के अन्तर से होती है तो वह निश्चित ही राजनैतिक दलों के सावधान हो जाने का इशारा करती है। प. बंगाल में ममता दी की पार्टी ने पिछले चुनावों में भाजपा द्वारा जीती गई सीट पर कब्जा किया है मगर त्रिपुरा की दोनों सीटों पर भाजपा ने कब्जा कर लिया है जबकि इस राज्य में भाजपा की ही सरकार है। अतः उपचुनावों के आधार पर किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता मगर इतना जरूर कहा जा सकता कि इंडिया गठबन्धन व भाजपा के एनडीए गठबन्धन के बीच चार व तीन का समीकरण जरूर बैठा है। मगर लोकतन्त्र तो इसे ही कहते हैं जिसमें किसी भी राजनैतिक दल के समर्थक अदलते-बदलते रहते हैं। अतः भाजपा व कांग्रेस दोनों ही इसे अपने-अपने गठबन्धनों की जीत बता रहे हैं। मगर असली मुकाबला तो राज्य स्तर पर दोनों गठबन्धनों के बीच आगामी दिसम्बर माह तक होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में ही देखने को मिलेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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