बाढ़ : प्रबन्धन कहीं नहीं - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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बाढ़ : प्रबन्धन कहीं नहीं

देश में हर साल बाढ़ से तबाही होती है। देश में कम से कम 10 ऐसे क्षेत्र हैं जहां बाढ़ का आना तय माना जाता है। इस वर्ष मानसून कुछ ज्यादा ही मेहरबान है।

देश में हर साल बाढ़ से तबाही होती है। देश में कम से कम 10 ऐसे क्षेत्र हैं जहां बाढ़ का आना तय माना जाता है। इस वर्ष मानसून कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। बाढ़ के कारण सारे देश में हाहाकार मचा हुआ है। मूसलाधार बारिश के बीच बादल फटने और पहाड़ों के दरकने की घटनाओं का हम लगातार सामना कर रहे हैं। नदियां गुस्साई प्रतीत हो रही हैं। 6 राज्यों में आई बाढ़ और वर्षाजनित घटनाओं में अब तक 537 लोगों की मौत की खबर है। महाराष्ट्र के 26, पश्चिम बंगाल के 22, असम के 21, केरल के 14 और गुजरात के 10 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। उत्तर प्रदेश का बड़ा हिस्सा बाढ़ और बारिश से प्रभावित है। हिमाचल में भी वर्षा ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। बिहार हर साल बाढ़ से प्रभावित होता है। जिनके घरों में मौतें हुईं, जिनके आशियाने ढह गए, सामान तबाह हो गया उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता। सरकारी मुआवजे से तो मामूली राहत ही मिल पाएगी। दो-तीन दिन की बारिश के चलते देश में खासतौर पर शहरी इलाकों में जनजीवन प्रभावित हुआ है। जलभराव के कारण दिनचर्या ठप्प होकर रह जाती है। बारिश के पानी से सड़कें लबालब हैं और लोगों के घरों आैर दुकानों में पानी घुस चुका है। अवैध तरीके से बनी इमारतें गिर रही हैं आैर पुरानी जर्जर इमारतों के गिरने का खतरा पैदा हो गया है।

भीषण गर्मी से त्रस्त लोग बा​िरश का इंतजार कर रहे थे लेकिन ब​ारिश आई तो भारी आफत लेकर आई। मुम्बई का हाल तो बहुत बुरा है, बेेंगलुरु भी परेशान है। दिल्ली और एनसीआर के इलाके भी प्रभावित हैं। यह देखकर सबको हैरानी हुई कि एनएच-24 पर 3-3 फुट पनी भर गया और काराें के डूबने तक की नौबत आ गई थी। दुनियाभर में बाढ़ से होने वाली कुल मौतों का पांचवां हिस्सा भारत में है। विश्व बैंक के एक अध्ययन में यह जानकारी मिलती है कि जलवायु परिवर्तन 2050 तक भारत की आबादी के आधे हिस्से का लि​िवंग स्टैंडर्ड कम करके रख देगा। सरकारी इकाई राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के मुताबिक भारत बाढ़ से सबसे असुरक्षित देश है। हर साल 1600 से अधिक लोगों की मौत बाढ़ के कारण होती है जबकि 3.2 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं। हर साल 92 हजार पशु अपनी जान गंवा देते हैं और 70 लाख हैक्टेयर जमीन प्रभावित होती है। साथ ही 5600 करोड़ से ज्यादा का नुक्सान होता है। हम कुछ नहीं कर पाते। प्राकृतिक आपदा को नियति मानकर सहन कर लेते हैं। अक्सर महानगरों आैर बड़े शहरों के हादसे मीडिया में जगह पा लेते हैं लेकिन छोटे शहरों के हादसे खबरें नहीं बन पाते।
बाढ़ किसी राष्ट्रीय संकट से कम नहीं है। जो देश दो या तीन दिन की बारिश से निपट नहीं सकता, वह भयंकर आपदा का सामना कैसे करेगा? शहरों में अंग्रेजों के जमाने का सीवर सिस्टम है, आबादी का बोझ काफी बढ़ चुका है। अनियोजित विकास ने जल निकासी के सारे मार्ग अवरुद्ध कर दिए हैं। फ्लाईओवर, अंडरपास और ऐलिवेटिड रोड तो काफी बन गए लेकिन जल निकासी का कोई समाधान नहीं किया गया। अगर स्थानीय निकाय, महानगर पालिकाएं, नगर नियोजक, इंजीनियर और वास्तुविद् आदि वर्षा के पानी की निकासी की व्यवस्था नहीं कर सकते तो फिर यह किस काम के हैं। यह साफ है कि सारे के सारे अवैध निर्माण कराने में जुटे हैं। नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद और अन्य शहरों में एक के बाद एक धंसती सड़कें, गिरती इमारतें इसका उदाहरण हैं। आजादी के बाद भारत ने हर क्षेत्र में धाक छोड़ी है। चाहे वह अं​तरिक्ष हो या जमीन लेकिन हम दो जगहों पर अभी तक पूरी तरह विफल रहे हैं, वे हैं सूखा और बाढ़। हम स्मार्ट सिटी की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन जलभराव की समस्या से निपटने के लिए हमारे पास कोई योजनाएं नहीं। न तो राज्य सरकारें कोई कदम उठा रही हैं आैर न ही स्थानीय निकाय।
हम गलत शहरी विकास के दुष्परिणाम झेल रहे हैं। गांव में रहने वाले हमारे पूर्वजों के जमाने में जल भंडारण और संग्रहण का अंतर्निहित तंत्र हुआ करता था लेकिन धीरे-धीरे शहरी विकास की पागलपन की दौड़ में हम वर्षा जल भंडारण की तकनीक को भुला बैठे हैं। वर्षा का जल व्यर्थ ही बह जाएगा। उसका धरती में प्रवेश होगा ही नहीं। कुएं, तालाब आैर पोखर अब बचे ही कहां हैं। अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए नदी जोड़ो परियोजना की बात कही थी लेकिन यह परियोजना काफी महंगी और मुश्किल है। हालांकि मध्य प्रदेश में ही नर्मदा नदी को शिप्रा नदी से जोड़ा गया लेकिन यह काम हर जगह नहीं हो सकता। हम नदियों का प्रबन्धन तो नए सिरे से कर सकते हैं जिससे वर्षा आैर बाढ़ के पानी का हम संचय कर सकें और उसका इस्तेमाल हम खेतों में सिंचाई के लिए कर सकें। बाढ़ और सूखे से निपटने का एकमात्र समाधान नदियों का प्रबन्धन ही है। स्मार्ट सिटी की कल्पना को साकार करने से पहले जल निकासी और नदी जल प्रबन्धन की व्यवस्था करनी ही होगी।

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