हर बार दिसंबर और जनवरी के महीने में कड़ाके की ठंड पड़ती है हम अपने वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की भी छुट्टियां कर देते ताकि बुजुर्गों को सर्दी न लगे। प्रकृति के इस नियम का स्वागत किया जाना चाहिए। हमारे जीवन में ठंड और गर्मी या सुख और दु:ख का सुंदर संतुलन होना ही चाहिए लेकिन व्यवस्थाएं बनाने का काम हमने खुद करना है और इसे मानवता के आधार पर किया जाना चाहिए। देश की राजधानी दिल्ली में महज डेढ़ महीने में सिर्फ कड़कड़ाती सर्दी से अगर 341 लोगों की मौत हो जाए तो आप इसे क्या कहेंगे? ये वो लोग हैं जो बेचारे गुरुद्वारों, मंदिरों और अन्य स्थानों पर लोगों के दान और रहमो-करम पर जीते हुए जिंदगी की गाड़ी खींचते हैं। बेघरों के लिए काम करने वाली एक संस्था सेंटर फॉर होलिस्टिक डवलेपमेंट की रिपोर्ट ने खुलासा किया कि 30 नवंबर से 14 जनवरी तक 341 लोगों की मौत केवल ठंड से हुई और 1 से 14 जनवरी तक 96 लोग पिछले 15 दिन में ठंड की वजह से मारे गए।
पुलिस को इन सबकी लाशें फुटपाथों पर, गुरुद्वारों के बाहर, रेलवे लाइनों के पास, बड़े मंदिरों के आसपास मिली हैं। सवाल इंसानियत का है, सवाल कर्त्तव्यपरायणता का है, यह सब कुछ हमारी दिल्ली में हो रहा है। ऐसे में वो लोग याद आते हैं, जो भूखों और वस्त्रहीनों के लिए रोटी और कंबलों की व्यवस्था करते हैं। 3 और 4 डिग्री टेंपरेचर वाली सर्दी में एक कंबल काफी नहीं है लेकिन व्यवस्था के नाम पर हमारे यहां अब जो भी हो रहा है वह इंसानियत के दामन पर एक काला दाग है। विदेशों में खास कर कनाडा और फ्रांस के अनेक हिस्सों में छह-छह महीने बर्फबारी होती है तो वहां युद्ध स्तर पर बर्फ हटाने का काम शुरू हो जाता है। मकसद यही कि लोगों को दिक्कत न हो। हमारे यहां कश्मीर घाटी में बर्फ पड़ती है तो दस-दस दिन हाईवे बंद रहता है, हमें विदेशों से सीख लेनी चाहिए।
सरकारी तौर पर यह कहा जा सकता है कि रैन बसेरों में उन लोगों के रात काटने की व्यवस्था है, जो बेघर हैं। यहां जितने भी रैन बसेरे हैं लोग दिनभर रेलवे स्टेशनों, मैट्रो स्टेशन, सिविल लाइन, मंदिर मार्ग, बड़े-बड़े मंदिरों और गुरुद्वारों के पास लंगर और भंडारों में रोटी खा लेते हैं और दानी हाथों से मिली चादरें, शॉलों और कंबलों के दम पर सर्दी से बचने की कोशिश करते हैं। इन लोगों में ज्यादातर लोग भिखारी, अधेड़ उम्र की महिलाएं, बुजुर्गों के अलावा बच्चे भी शामिल हैं। यह लेख लिखते हुए हमारा मकसद सिर्फ इतना है कि इंसान तो इंसान के काम आ ही रहा है, क्योंकि मैंने कई संस्थाएं देखी हैं जो आधी रात में मंदिरों और गुरुद्वारों के पास ही बेघरों को कंबल बांटते हैं। इंसानियत के इस धर्म को सलाम किया जाना चाहिए लेकिन सरकारों को रैन बसेरों की दुनिया से आगे बढ़कर इन निर्धन लोगों के लिए कंबलों और रजाइयों की व्यवस्था भी सुनिश्चित करनी होगी।
रोटी का काम तो हमने देखा है कि चांदनी चौक हो या मंदिर और गुरुद्वारे अनेक संगठन डटे हुए हैं और सब कुछ ठीकठाक चल रहा है, लेकिन सर्दियों में जब शीत लहर हमें अपने घरों में कंपकंपाने में मजबूर कर देती है तो आइए हमें उन लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए जो सड़कों पर बिना कंबलों और रजाइयों के ठिठुर रहे हैं। हालांकि हमारा खुद का वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब चुने हुए बुजुर्गों को कंबल, रजाइयां, गर्म जुराबे, गर्म स्वैटर, गर्म जैकेट प्रदान करता है, परंतु ये वो लोग हैं जिन्हें संपन्न लोगों ने ठुकरा रखा है। हम समाज में उन कमजोर वर्ग की बात कर रहे हैं, जो बेचारे सड़कों पर मारे-मारे फिर रहे हैं और फटेहाल हैं।
मानवता के आधार पर अगर कोई भी सरकार आगे बढ़कर इन लोगों के लिए कुछ करती है तो यह एक बड़ी इंसानियत और पुण्य का काम होगा। जो बेचारे सर्दी से कांप-कांपकर मारे गए हम उनके प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं और सभी लोगों से अपील करते हैं कि अपने घर में से अगर कोई कंबल या रजाई फालतू है तो कृपया उन लोगों को दान दें, जो बेचारे सड़कों पर, फुटपाथों पर, किसी मंदिर या गुरुद्वारों के बाहर या फिर रेलवे या मैट्रो स्टेशन के बाहर खुले आसमान के नीचे ठिठुर रहे हैं। इंसानियत की परीक्षा आपके सामने है। आप उस परमपिता परमात्मा के बनाए हुए नेक बंदे हैं। आइए उनकी मदद करें जो ठंड से कांप रहे हैं और यही गीत गाकर अपना कर्म करें…
इंसान का इंसान से हो भाईचारा
यही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा।