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गाजा युद्ध में फंसी मानवीयता

पश्चिम एशिया के फिलिस्तीन व इजराइल के बीच गाजा क्षेत्र में जो युद्ध चल रहा है वह अब मानवता के संकट के रूप में विकसित होता जा रहा है परन्तु इसे लेकर जिस प्रकार पश्चिमी देश ठंडी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं उससे इस क्षेत्र की समस्या के वीभत्स होने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। पिछले 18 दिनों से गाजा में सक्रिय हमास संगठन व इजराइली फौजों के बीच जंग हो रही है जिसमें गाजा क्षेत्र में ही पांच हजार नागरिक हताहत हो चुके हैं मगर सबसे दुखद यह है कि इनमें दो हजार से अधिक बच्चे हैं और 1100 से अधिक महिलाएं हैं। दूसरी तरफ इजराइल पर विगत 7 अक्तूबर को हमास के लड़ाकुओं ने जो हमला किया था उसमें 1400 नागरिक हलाक हुए थे। हमास ने दो सौ से अधिक नागरिकों को बन्धक भी बना लिया था। इन्हीं बन्धकों को छुड़ाने व अपने ऊपर हुए हमले का बदला लेने के लिए इजराइल जवाबी कार्रवाई कर रहा है और उसने घोषित रूप से पूरा युद्ध छेड़ दिया है।
बेशक हमास ने अचानक इजराइल पर हमला करके आतंकवादी कार्रवाई ही की और नागरिकों को बन्धक बना कर उसे सिद्ध भी कर दिया कि वह गाजा में रहने वाले फिलिस्तीनी नागरिकों की समस्या को आतंकवाद से हल करना चाहता है जिसे कोई भी स्वीकार नहीं कर सकता। लेकिन इसके साथ यह भी देखना होगा कि इजराइल गाजा में रहने वाले लोगों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करता रहा है। इस सत्य को भी कोई नकार नहीं सकता है कि 1948 में ही इजराइल की स्थापना अरब की फिलिस्तीनी धरती पर ही हुई जिसे उसी समय दुनिया के शक्तिशाली देशों ने अरब देशों की मुखालफत के बावजूद मान्यता प्रदान कर दी। परन्तु इसके समानान्तर संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के बावजूद अभी तक फिलिस्तीनी धरती पर ही स्वतन्त्र व संप्रभु फिलिस्तीन का गठन नहीं हो सका। समस्या की असली जड़ यही है जिसकी वजह से पिछले 76 सालों से पश्चिम एशिया की इस धरती पर रह-रह कर युद्ध होता रहता है।
भारत का इस मामले में रुख बहुत स्पष्ट है और वह यह है कि यह एक स्वतन्त्र व संप्रभु फिलिस्तीन के हक में है और इजराइल को भी मान्यता देता है। लेकिन भारत आतंकवादी रास्ते से किसी भी समस्या के हल के पक्ष में कभी नहीं रहा है और किसी भी विवाद का हल शान्तिपूर्ण तरीके से बातचीत किये जाने के पक्ष में ही रहा है। गाजा के साथ मिस्र की सीमाएं लगती हैं और इस देश के राष्ट्रपति श्री अल सिसि ने पिछले दिनों गाजा समस्या पर ही शान्ति सम्मेलन बुलाया था जिसमें पश्चिम के देशों ने रुची नहीं दिखाई और जिन्होंने दिखाई भी उन्होंने नामचारे की औपचारिकता ही निभाई। परन्तु सम्मेलन के बाद फिलिस्तीन के पड़ोसी देश जाॅर्डन के शाह अब्दुल्ला ने बेहिचक होकर कहा कि गाजा में इजराइल ‘युद्ध अपराध’ कर रहा है। जाॅर्डन के शाह से प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने फोन पर बात की और परिस्थितियों पर चिन्ता जताई। बेशक श्री मोदी ने आतंकवाद के विरुद्ध भारत के मत को स्पष्ट किया परन्तु मानवीय समस्या पर भी बराबर की चिन्ता जताई।
इजराइल ने पूरे गाजा क्षेत्र की पानी- बिजली, खाद्य व ईंधन सप्लाई काट रखी है और विदेशों से मिलने वाली सहायता का रास्ता भी आंशिक रूप से दो दिन पहले ही खोला है। इस बीच हमास ने दो बन्धक छोड़े और ताजा खबर के अनुसार वह दोहरी नागरिकता वाले 50 और बन्धकों को छोड़ने के लिए तैयार है बशर्ते इजराइल गाजा की ईंधन सप्लाई शुरू कर दे। इजराइल ने यह शर्त मानने से इन्कार कर दिया है। इससे स्थिति जस की तस हो गई है। मूल सवाल यह है कि क्या आतंकवादियों के कृत्य के लिए बेगुनाह नागरिकों को सजा दी सकती है? दुनिया का कोई भी सभ्य देश इसकी वजाहत नहीं कर सकता। जब भी किसी मुल्क में बेगुनाह नागरिकों को निशाना बनाया जाता है तो राष्ट्रसंघ के अभी तक के इतिहास में आधुनिक माने जाने वाले देशों द्वारा उसका विरोध किया गया है।
युद्धोन्माद से कभी भी दुनिया के किसी कोने में आज तक कोई हल नहीं निकला है। हल हमेशा बातचीत की मेज पर बैठ कर ही निकला है। इसलिए दुनिया के शक्तिशाली देशों को सर्वप्रथम अपने स्वार्थों को दरकिनार करते हुए गाजा में कराहती मानवता की चिन्ता करनी चाहिए और निरीह नागरिकों को इसकी भेंट चढ़ने से बचाना चाहिए। हमास के कब्जे में पड़े हुए इजराइली नागरिक भी बेगुनाह हैं जिन्हें हमास ने निशाना बना रखा है। उनकी जान की सुरक्षा की चिन्ता करते हुए हमास को करारा सबक सिखाये जाने की जरूरत है। इस घटनाक्रम के बीच फ्रांस के राष्ट्रपति श्री मैक्रों आज इजराइल की राजधानी तेल अवीव पहुंचे हैं। फ्रांस मानवीय अधिकारों का अलम्बरादर देश माना जाता है बल्कि हकीकत तो यह है कि पूरी दुनिया में मानव अधिकारों की गूंज 18वीं शताब्दी में फ्रांस की क्रान्ति के बाद ही हुई। खबरें बता रही हैं कि श्री मैक्रों इजराइल के आत्म सुरक्षा के अधिकार के साथ ही बन्धकों की रिहाई की तजवीजों पर बातचीत करने के साथ ही फिलिस्तीन राज्य की स्थापना के बारे में भी बातचीत करेंगे। फ्रांस के विभिन्न अरब देशों के साथ भी बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध उसी तरह से रहे हैं जिस तरह भारत के हैं। अतः युद्ध को विसर्जित करने के तरीकों के बारे में यदि अमेरिका कोई ठोस कदम उठाने से हिचक रहा है तो फ्रांस की पहल पर भारत में भी इसमें मददगार हो सकता है। फिलिस्तीनी समस्या का हल बन्द सोच से बाहर (आऊट आफ बाक्स) आता है तो दुनिया के लिए यह एक सौगात होगी।

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