समुद्री डकैती केवल तस्करी का मुद्दा नहीं है। यह एक हिंसक और अन्तर्राष्ट्रीय अपराध है, क्योंकि समुद्र में किसी भी जहाज को जिसका वो झंडा लगाए हुए हैं उस राष्ट्र का संप्रभु क्षेत्र माना जाता है। समुद्री डकैतियां अन्तर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र में व्यापार के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। समुद्र के लुटेरों से एशियाई देश खासकर दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशिया सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। जिनमें भारत भी शामिल है। समुद्री डाकुओं पर कई फिल्में बन चुकी हैं। पॉयरेट्स ऑफ द कैरेबियन, ए हाईजैकिंग, कैप्टन ब्लड और कैप्टन फिलिप्स। इन फिल्मों को देखने वाले जानते हैं कि समुद्री लुटेरे कितने खूंखार होते हैं। आम आदमी नहीं जानता कि एक आंख पर पट्टी बांधे समुद्री लुटेरे कितनी सुनियोजित योजना बनाकर काम करते हैं। समुद्र में होने वाले अपराधों को रोकना काफी मुश्किल होता है क्योंकि समुद्र का क्षेत्रफल विशाल है और समुद्री डाकू अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को पार काम करते हैं यानि किसी एक देश की पुलिस या सेना उन्हें रोक नहीं पाती। मसलन पूर्वी अफ्रीका के सोमालिया देश के अड्डों से आने वाले समुद्री डाकुओं ने कई बार भारत के तट के पास से समुद्री जहाजों का अपहरण किया है। समुद्री लुटेरों की वजह से भारत को कई बार परेशानी झेलनी पड़ी और फिरौती देकर बंधक भारतीयों को मुक्त कराया गया। दुनियाभर के देशों को हर साल 10 से 15 अरब डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। इसमें उन्हें दी जाने वाली फिरौती, जहाजों का रास्ता बदलने के कारण हुआ खर्च, समुद्री लुटेरों से लड़ने के लिए कई देशों की तरफ से नौसेना की तैनाती और कई संगठनों के बजट इसमें शामिल हैं।
इंडोनेशिया का जल क्षेत्र समुद्री यात्रा और व्यापार के लिए दुनिया में सबसे खतरनाक है। अदन की खाड़ी से पूर्वी अफ्रीका तक और पश्चिमी अफ्रीका से गिनी की खाड़ी का इलाका भी सबसे ज्यादा बदनाम है। इन खाड़ियों में जहाजों को अगवा कर लूट लिया जाता है। साथ ही उनके चालक दल के सदस्यों और अन्य लोगों को बंधक बना लिया जाता है, फिर उनसे फिरौती की रकम वसूली जाती है। अब राज्यसभा ने मैरीटाइम एंटी पायरेसी बिल या समुद्री जलदस्युता रोधी बिल पारित कर दिया है। लोकसभा इस बिल को 2019 में पारित कर चुकी है। इस बिल पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही कानून बन जाएगा। भारत के पास एंटी मैरीटाइम पायरेसी के मामले में कार्रवाई के लिए कोई अपना कानून नहीं था। अब तक मुकदमा चलाने के लिए आईपीसी के डकैती संबंधी प्रावधानों का इस्तेमाल किया जाता था। भारत का यह कानून सिर्फ देश के प्रादेशिक जल सीमा नॉटिकल मील तक ही लागू होता था। इससे आगे की सीमा में किया गया कोई भी अपराध कानून की जद में नहीं आता था। 1982 में समुद्री लुटेरों को दंडित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ठोस पहल हुई थी और भारत संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि में शामिल हुआ था। भारत का अपना कानून बन जाने से अब भारत के कानून का डंडा खुले समुद्र में भी चलेगा।
समुद्री डकैती के अपराध में शामिल लोगों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। इसके लिए उम्रकैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है। अगर पायरेसी के कारण किसी की हत्या या मौत हो जाती है तो ऐसे मामलों में उम्रकैद या फांसी की सजा हो सकती है। पहले पायरेसी के कारण किसी की हत्या या मौत होने पर फांसी की सजा का ही प्रावधान था, लेकिन संसद की स्थायी समिति ने इसमें बदलाव करने की सिफारिश की। समिति का कहना था कि जिन देशों में मृत्युदंड नहीं हैं, वैसे देश ऐसे अपराधी को भारत प्रत्यार्पित करने में कम रुचि दिखाते हैं। इस सिफारिश को ध्यान में रखकर सरकार ने मृत्यु के साथ उम्रकैद को भी जोड़ दिया। पायरेसी की कोशिश करने या उसमें मदद पहुंचाने पर भी अधिकतम 10 साल या जुर्माने की सजा हो सकती है। ऐसे मामलों में कारावास और जुर्माना, दोनों प्रकार की सजा भी हो सकती है। संसद के शीतकालीन सत्र में जब सरकार और विपक्ष मेें तीखी नोकझोंक देखने को मिल रही है और सदन बार-बार स्थगित करना पड़ रहा है। ऐसे में एंटी मैरीटाइम पायरेसी बिल पारित करने के लिए भाजपा और कांग्रेस के सांसद एकजुट दिखाई दिए। संसद में अनूठा लम्हा सामने आया। जब इस बिल को राज्यसभा में ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। बिल पारित होने से यही संदेश गया है कि अब समुद्री लुटेरों की खैर नहीं है। इसके साथ ही भारत घरेलू कानून बनाकर समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन लागू करने वाला पहला देश बन गया है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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