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जूही की झूठी याचिका

जनहित याचिकाओं की शुरूआत का श्रेय भारत के ख्याति प्राप्त न्यायाधीश जस्टिस पी.एन. भगवती को जाता है, जिन्होंने साधारण पोस्टकार्ड पर लिखी गई बात को भी याचिका के तौर पर स्वीकार करने को कहा था।

जनहित याचिकाओं की शुरूआत का श्रेय भारत के ख्याति प्राप्त न्यायाधीश जस्टिस पी.एन. भगवती को जाता है, जिन्होंने साधारण पोस्टकार्ड पर लिखी गई बात को भी याचिका के तौर पर स्वीकार करने को कहा था। देश में 80 के दशक में जनहित याचिकाओं के जरिये समाज में दबे-कुचले वर्गों को न्याय दिलाने के अभियान ने जोर पकड़ा। इस दौर में विचाराधीन कैदियों, लावारिस बच्चों, वेश्याओं, बाल मजदूरों और पर्यावरण के मुद्दों पर तमाम लोगों ने जनहित याचिकाएं दायर कीं। अदालतों ने इन्हें प्रोत्साहित भी किया और इनके जरिये मसले सुलझाये भी गए। जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है, यह तो सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक व्यवस्था से जन्मी है। इन याचिकाओं का सबसे बड़ा योगदान यह रहा है कि इसने कई तरह के नवीन अधिकारों को जन्म दिया। उदाहरण के तौर पर इसने तेजी से मुकदमे की सुनवाई का अधिकार, यौन उत्पीड़न के विरुद्ध अधिकार, गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य सुरक्षा का अधिकार तथा ऐसे  ही कई अन्य अधिकारों को अस्तित्व प्रदान किया।
लेकिन ज​नहित की आड़ में आधारहीन याचिकाओं की बाढ़ आ गई। अदालतों पर बोझ बढ़ता ही चला गया। वर्षों से लम्बित विचाराधीन मुकद्दमों की संख्या भी बढ़ती ही चली गई, जिन्हें सुनना और फैसला करना न्यायपालिका के लिए चुनौती बन गया। स्वयंसेवी संगठन, प्रबुद्ध समाजसेवी, बड़े वकील, पत्रकार और अन्य क्रांति धर्मी, स्वप्न जीवी, आंदोलन जीवी अदालताें में याचिकाएं डालते गए। इन लोगों ने नाम भी कमाया और अन्तर्राष्ट्रीय फंड के साथ-साथ मान-सम्मान भी कमाया। सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार ​बेबुनियाद याचिकाओं पर सख्त टिप्पणी करते हुए भारी जुुर्माना भी लगाया। समय-समय पर ऐसी अनेक हास्यास्पद याचिकाएं दायर हुईं जैसे भारत का नाम बदल कर हिन्दुस्तान करने, अरब सागर का नाम बदलकर सिंधु सागर करने और राष्ट्रगान बदलने संबंधी याचिकाएं। कई बार तो याचिकाएं जन विरोधी सिद्ध हुईं।  जनहित के नाम पर लोकप्रियता हासिल करने और राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस व्यवस्था का दुरुपयोग किया जाने लगा। यह विडम्बना ही है कि हमारे देश में जो भी व्यवस्था कमजोर वर्ग के हित के लिए बनाई जाती है उसे सम्पन्न वर्ग हथिया लेता है और उसका इस्तेमाल अपने ​लिए कर सकता है।
ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने आ चुके हैं। 5जी तकनीक के खिलाफ अभिनेत्री जूही चावला की तरफ से दायर याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए साथ ही 20 लाख रुपए का हर्जाना भी लगाया। कोर्ट ने कहा है कि ऐसा लगता है कि यह याचिका महज पब्लिसिटी के लिए दायर की गई थी और इसी वजह से जूही चावला ने सुनवाई का लिंक भी सोशल मीडिया पर शेयर ​किया था। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को यह भी निर्देश दिया है कि कोर्ट की पिछली सुनवाई के दौरान तेज आवाज में जूही चावला की फिल्म का गाना गाने वाले शख्स के खिलाफ भी कानून के हिसाब से कड़ी कार्रवाई की जाए। जूही चावला ने याचिका दायर कर 5 जी तकनीक की टेस्टिंग को लेकर सवाल खड़े किये थे। याचिका में कहा गया था कि इस मामले पर स्टडी की जानी चाहिए कि कहीं इस तकनीक के चलते इंसान, जानवर और प्रकृति को नुक्सान तो नहीं हो रहा। इस पर जब काेर्ट ने जवाब मांगा कि उन्होंने यह संशय किस आधार पर व्यक्त किया, क्या इसको लेकर कोई जानकारी स्टडी या रिपोर्ट है तो जूही चावला का वकील कुछ नहीं बता पाया। कोर्ट ने इस याचिका को समय की बर्बादी वाला बताया।
इससे पहले 2018 में पीआईएल वीर के नाम से मशहूर वकील मनोहर लाल शर्मा पर सुप्रीम कोर्ट ने 50 हजार जुर्माना लगाया था। उन्होंने एक वित्त मंत्री पर आरोप लगाया था वह रिजर्व कैपिटल को हड़प कर इसके जरिये निश्चित कम्पनियों को लाभ पहुंचाना चाहते हैं। शर्मा को कई बार कोर्ट ने अमर्यादित और गैर जिम्मेदार आरोप लगाने को लेकर खरी-खोटी सुनाई थी। अदालतें कोई राजनीतिक मंच नहीं कि कोई भी किसी पर भी कहीं भी बकवास आरोप मढ़ दे। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था-‘‘ऐसी याचिकाओं को अगर सही ढंग से नियंत्रित नहीं किया गया और इसके दुरुपयोग को नहीं रोका गया तो यह अनैतिक हाथों द्वारा प्रचार, प्रतिशोध और रानीतिक स्वार्थ सिद्धि का हथियार बन जाएगी।’’
न्याय व्यवस्था में आम लोगों का विश्वास बढ़े इसके लिए जरूरी भी था कि उनकी बात सुनी जाए लेकिन मकसद से भटकी याचिकाओं ने न्याय के लक्ष्य को दूर कर दिया। ऐसी याचिकाओं में कभी लोगों का बहुत नुक्सान भी हुआ है। पर्यावरण प्रदूषण पर अनेक आदेश, हजारों फैक्टरियां बंद करने के फैसले, झुग्गी-झौपड़ियों को हटाने के फैसले से लाखों लोग बुरी तरह ​प्रभावित हुए। याचिकाएं हर समस्या का समाधान नहीं हैं। शोषितों के न आंसू कम हो रहे हैं और न ही राष्ट्रीय स्तर पर विषमता की खाई घटी है। कोरोना काल में स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्योग जगत को गति देने, आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने की चुनौतियां हम सबके सामने हैं। कोरोना काल में बेसिर-पैर की याचिकाएं न्याय की गति को अवरुद्ध कर रही हैं। अच्छी खासी व्यवस्था को मजाक बनाने से रोकना होगा। जो लोग इसके जरिये सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई लड़ना चाहते हैं उन्हें काफी सतर्कता से काम लेना होगा। इन सभी को जूही चावला की झूठी याचिका के हश्र से सबक सिखना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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