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नफरत की बातें छोड़ो

हरियाणा के नूंह में हुई साम्प्रदायिक झड़पों के बाद एक विशेष समुदाय के आर्थिक बहिष्कार के आह्वान की खबरें लगातार आ रही हैं।

हरियाणा के नूंह में हुई साम्प्रदायिक झड़पों के बाद एक विशेष समुदाय के आर्थिक बहिष्कार के आह्वान की खबरें लगातार आ रही हैं। एक ही समुदाय के लोगों को दुकानों पर काम पर न रखने या उनकी दुकानों से खरीदारी नहीं करने और ग्रामीण क्षेत्रों में उनका बहिष्कार करने की अपीलें सामने आई हैं। ऐसी अपीलें समाज के लिए एक अभिशाप की तरह हैं। कई जगह पोस्टर लगाए गए हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें कहा गया है कि जो इन लोगों से वास्ता रखेगा उन्हें गद्दार कहा जाएगा। इन वीडियो में कुछ लोग पुलिस अधिकारियों की मौजूदग​ी में चेतावनी देते नजर आ रहे हैं। नूंह हिंसा के बाद सामाजिक एकता की बहुत जरूरत है, लेकिन बहिष्कार का आह्वान कर समाज में जहर ही घोल रहे हैं। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। पिछले हफ्ते ही देश की सर्वोच्च अदालत ने हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आयोजित रैलियों के दौरान कोई नफरत भरा भाषण न दिया जाए और न ही कोई हिंसा हो। 
हरियाणा सरकार ने एक ही समुदाय के आर्थिक बहिष्कार संबंधी जारी ​िकए गए फरमानों को गम्भीरता से लिया है। हरियाणा के मंत्री ओमप्रकाश यादव ने भी कहा है कि सभी धर्म, जाति के लोगों के लिए यह अपना देश है और इसमें किसी को भी एक-दूसरे के प्रति नफरत फैलाने की छूट नहीं है। यदि किसी ने ऐसा किया है तो निश्चित रूप से कार्रवाई की जाएगी। प्रशासन भी इस मुद्दे पर काफी सतर्क है और उसने पंचायतों को तलब भी किया है। पंचायतों को नो​िटस जारी कर स्थि​ित स्पष्ट करने को कहा गया है, तो कई पंचायतों ने अपना फरमान वापिस लेते हुए कहा है कि वे किसी भी सूरत में आपसी सौहार्द बिगड़ने नहीं देंगे। भारत की गंगा-जमुनी तहजीब गवाह है कि भारत विविधता में एकता का परिचायक है। देश के ग्रामीण इलाकों में सभी धर्मों के लोग साम्प्रदायिक सद्भाव से रहते आए हैं। लेकिन नूंह हिंसा के परिणामस्वरूप समाज में विभाजन और गहरा हो गया है।
भारत में किसी समुदाय के सामाजिक बहिष्कार की धारणा काफी पुरानी है, जो अब काफी हद तक खत्म हो चुकी है। लेकिन सामाजिक जीवन में इसकी कसक बाकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं-कहीं मजारें भी हैं लेकिन साथ ही निकटवर्ती पेड़ों पर हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरें भी नजर आती हैं। यह गांव में सहअस्तित्व और साम्प्रदायिक सद्भाव का संकेत देती हैं। जब ऐसे गांव से फरमान जारी होते हैं तो इससे समाज में बने वर्षों से रिश्तों में दरारें आना स्वाभा​िवक है। अब धीरे-धीरे ऐसे फरमान वापिस लिए जा रहे हैं। सं​िवधान के अनुरूप हर भारतवासी को बराबर के अधिकार हैं और हरेक व्यक्ति को देश के किसी भी कोने में नौकरी या कारोबार करने का अधिकार है। कभी-कभी  कुछ मुद्दों पर समाज में असहमति नजर आती है। लेकिन किसी भी समुदाय का सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार समाज को सामूहिक रूप से नुक्सान पहुंचाने के लिए एक खतरनाक प्रेरणा बन सकता है। हरियाणा में ही मुस्लिम समुदाय के बहिष्कार की अपीलें नहीं की गईं बल्कि वोट बैंक की ​िसयासत के चलते उत्तर प्रदेश के गांवों से भी ऐसी आवाजें उठने लगी हैं। इस विवादित प्रक्रिया ने एक सशक्त और समरसत्तापूर्ण समाज के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। सामाजिक बहिष्कार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्तियों को विभिन्न अधिकारों, अवसरों और संसाधनों से वंचित करती है। 
देश में कभी जाति वर्चस्व के नाम पर दलितों का बहिष्कार किया गया। आज भी निम्न जाति से संबंध रखने वाले दूल्हों को घोड़ी पर चढ़कर उच्च जाति के इलाकों से बारात निकालने की अनुमति नहीं दी जाती। कुछ धार्मिक रुढ़िवादी परम्पराएं भी सामाजिक बहिष्कार के लिए जिम्मेदार रही हैं। समाज में महिलाओं तक को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा है। सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार प्रगतिशील सामाजिक विघटन की बहुआयामी प्रक्रिया है, जो समूहों और व्यक्तियों को सामाजिक संबंधों आैर संस्थानों से अलग करती है और उन्हें उस समाज  को सामान्य ​िनर्धारित गतिविधियों में पूर्ण भागीदारी से रोकती हंै। नूंह की हिंसा के बाद अब स्थितियां सामान्य हो रही हैं और अब हमें समाज में एकता स्थापित करने की जरूरत है। अगर हमने ऐसा नहीं ​िकया तो समाज का सारा ताना-बाना ही ध्वस्त होकर रह जाएगा। हमें समाज में समरसत्ता,  प्रेम और भाईचारे के महत्व को समझने की जरूरत है, ताकि सभी समुदाय मिलकर एक मजबूत और विकसित समाज की नींव रख सकें। इस तरह के बहिष्कार की अपीलें करने वालों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई के ​िलए पहले ही काफी प्रावधान हैं। दोषियों कोे जेल भेजा जा सकता है। हरियाणा और अन्य राज्य सरकारों को चाहिए कि वे बहिष्कार की अपीलें करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें और ग्रामीण इलाकों में शांति एवं सद्भाव की बहाली के ​िलए हर सम्भव उपाय करें। संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में देखता है और उसकी छवि बनी रहनी चाहिए। सभी को नफरत की बातें छोड़कर सद्भावना के साथ रहना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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