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महाकाल का महा ​विस्तार

यह भारत के करोड़ों आस्थावान हिन्दुओं के लिए खुशी और गौरव की बात है।

यह भारत के करोड़ों आस्थावान हिन्दुओं के लिए खुशी और गौरव की बात है। अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण तीव्र गति से जारी है और नए वर्ष में श्रद्धालु श्रीराम लल्ला के दर्शन करने लगे हैं। काशी विश्व​नाथ मंदिर का भव्य गलियारा पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लोकार्पित किया जा चुका है। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज उज्जैन के महाकाल मंदिर में 856 करोड़ रुपए की महाकालेश्वर मंदिर के कॉ​रिडोर परियोजना के पहले चरण की शुरूआत करेंगे। देशभर के 12 ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अपना एक महत्व है। महाकाल मंदिर दक्षिणमुखी होने से भी इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है। महाकाल मंदिर विश्व का एक ऐसा शिव मंदिर  है जहां दक्षिणमुखी शिवलिंग प्रतिष्ठापित है। जिसे बहुत जागृत माना जाता है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भस्म आरती केवल पुरुष ही देखते हैं। लोग ​बिना सिले हुए वस्त्र पहनकर भस्म आरती से पहले भगवान शिव को जल चढ़ाकर और छूकर दर्शन कर सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो महाकाल का भक्त है, उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। महाकाल की महिमा का वर्णन इस प्रकार से भी किया गया है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है। महाकाल को कालों का काल भी कहा जाता है। करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था है कि जो भी वर भगवान महाकाल से मांगों वह हर इच्छा पूरी करते हैं। 
वर्तमान महाकालेश्वर के विश्व प्रसिद्ध मंदिर की इमारत राणाैजी ​सिधिया शासन की देन है। यह मंदिर तीन खंडों में विभक्त है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा सर्वोच्च खंड में नागचन्देश्वर के शिवलिंग स्थापित है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिह चौहान मंदिर के विकास के इच्छुक रहे और यह उनका ड्रीम प्रोजैक्ट भी है। देश में धर्म स्थलों का विकास, उनका खोया हुआ गौरव वापिस लाने का एक सार्थक प्रयास है। आस्थावान हिन्दू हमेशा धर्मस्थलों पर उचित व्यवस्था नहीं होने की शिकायत करते हैं। दर्शनों के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता है, इसलिए उचित प्रबंधन का होना बहुत जरूरी है जहां सुविधापूर्वक अपने देव के दर्शन कर सके। नववर्ष के अवसर पर महाकाल मंदिर में बहुत ज्यादा भीड़ होती है। कुंभ और अर्धकुंभ के मौके पर भी करोड़ों लोग महाकाल के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ते हैं। महाकाल परियोजना की शुरूआत 2017 से शुरू हुई थी। इस महत्वपूर्ण योजना का उद्देश्य प्राचीन मंदिर वास्तुकला के उपयोग के माध्यम से ऐतिहासिक शहर उज्जैन के प्राचीन गौरव पर जोर देना और इसे वापिस लाना है। भगवान शिव की जिन कथाओं का महाभारत, वेदों तथा स्कंदपुराण के अवंतीखंड में उल्लेख है वे सभी कथाएं अब उज्जैन में जीवंत हो गई हैं। मंदिर के समीप नवनिर्मित प्रांगण में इन कथाओं को दर्शाती भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है। यह इतिहास और वर्तमान का अद्भुत संगम है। इन्हें इतिहास से लिये गए धार्मिक प्रसंगों को कम्प्यूटर जनित आधुनिक ​डिजाइन के जबरदस्त मेल से तैयार किया गया है। एक ओर जहां संस्कृत के प्राचीन मंत्र उकेरे गये हैं, वहीं आधुनिकता का प्रयाय बारकोड भी बनाया गया है। भारतीय शिल्पकला हजारों वर्षों में ऐसी श्रेष्ठ मूर्तियां बनाती आई है जिन्हें देखकर पूरी दुनिया दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर है। महाकाल के नवनिर्मित प्रांगण में इसे श्रेष्ठता और गौरव को ध्यान में रखते हुए प्रतिमाएं तैयार की गई है। सनातन धर्म में 108 अंक का बहुत महत्व है। उपासना में फेरी जाने वाली माला के मनके भी 108 होते हैं। इस कारण नवनिर्मित महाकाल प्रांगण में 108 विशाल स्तम्भ बनाए गये हैं। इन स्तम्भों पर त्रिशूल शैली के डिजाइन और सजावटी वल्ब हैं। राजस्थान, गुजरात और ओडि़सा के कलाकारों एवं शिल्पकारों ने राजस्थान में बसी पहाड़पुर क्षेत्र से प्राप्त बलुआ पत्थरों को तराश कर स्तम्भों का निर्माण किया है। उज्जैन में बना 900 मीटर से अधिक लम्बा कॉरिडोर ‘महाकाल लोक’ भारत में अब तक निर्मित ऐसे सबसे बड़े गलियारों में से एक है। दो राजसी प्रवेश द्वार, नंदी द्वार और पिनाकी द्वार थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कॉ​रिडोर के शुरूआती बिन्दुओं के पास बनाए गये हैं जो प्राचीन मंदिर के प्रवेश द्वार तक जाते हैं और रास्ते भर सौंदर्य के दृश्य प्रस्तुत करते हैं। 856 करोड़ की इस परियोजना का पहला चरण पूरा होने पर 351 करोड़ रुपए खर्च आये हैं। जबकि दूसरा चरण 2023-24 में पूरा किया जाएगा। भारत की कालजयी संस्कृति का परिचायक महाकाल लोक पूरे क्षेत्र में न केवल भीड़भाड़ कम करेगा बल्कि श्रद्धालुओं को अनेक सुविधाएं प्रदान करेगा। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि, सोमनाथ मंदिर जैसे हजारों प्राचीन मंदिरों को मुगल आक्रांताओं और खिलजियों ने तोड़ा। उनके प्रकोप से महाकाल मंदिर भी अछूता नहीं रहा। इस्लामी आक्रांताओं ने स्वयंभू महाकाल मंदिर को भी कई बार तोड़ा। यहां के पुजारियों का कत्ल किया मगर मराठा योद्धाओं ने गजवा-ए-हिद के मंसूबों को कभी सफल नहीं होने दिया। इतिहास बोलता है कि ग्यारहवीं सदी के आठवें दशक में गजनी सेनापति ने महाकाल मंदिर को नष्ट किया था। जिसे राजा उदयादित्य और राजा नववर्मा ने फिर से बनवाया। जब भारत में मुगलों का शासन हो गया तब 1234-35 ईसवी में  इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर को तो ध्वस्त कर दिया लेकिन वह शिवलिंग को नहीं तोड़ पाया। औरंगजेब के शासन में उसने महाकाल मंदिर वाली जगह पर मस्जिद का निर्माण करा दिया जैसे काशी और मथुरा में उसने किया था। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए हिन्दुओं ने बहुत लम्बा संघर्ष किया और कानूनी लड़ाई के बाद ही हिन्दुओं का सपना साकार होने लगा है। 
न जाने कितने ही धर्मस्थल अभी भी मस्जिदों के नीचे दफन पड़े हैं। श्रीराम, कृष्ण और भगवान शिव की उपासना भारत में नहीं होगी तो फिर क्या ​किसी मुस्लिम देश में हो सकती है। मध्यप्रदेश सरकार और केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार जिस तरह से हिन्दू धर्मस्थलों का पुराना गौरव लौटा रही है, इसलिए जितनी सराहना की जाए उतनी कम है। आज समूचा राष्ट्र महाकाल लोक परियोजना के उद्घाटन की अनुपम घड़ी का साक्षी बनेगा। पूरे मंदिर परिसर का दृश्य ही बदल गया है। बाबा महाकाल की कृपा हम सभी पर सदैव बनी रहे। महाकाल मंदिर की आलौकिक और अद्भुत छटा हम पर हमेशा बनी रहे, यही कामना है, यही प्रार्थना है। 
जय बोलो महाकाल की
जय जय महाकाल की

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