पृथ्वी और अंतरिक्ष में न जाने कितने रहस्य हैं, जिसे मानव आज तक तलाश नहीं कर पाया। फिर भी मानव प्रवृत्ति बड़ी जिज्ञासु होती है। पृथ्वी पर तो जीवन है लेकिन मानव इस बात की खोज कर रहा है कि क्या कोई ऐसा ग्रह है जहां मानव जीवन है या मानव जीवन सम्भव हो सकता है। भारतीय वैज्ञानिक चांद पर पानी की खोज पहले ही कर चुके हैं। अब अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी नासा ने दावा किया है कि उसे भारतीय चन्द्रयान-I के जरिये जानकारी मिली है कि चांद के ध्रुवीय इलाकों में बर्फ मौजूद है। भारतीय चन्द्रयान-I में नासा का एक उपकरण मून मिनरालॉजी मैयर भी लगा था जिससे उसे बर्फ वाली जानकारी प्राप्त हुई है।
नासा के मुताबिक चन्द्रमा की सतह पर कुछ किलोमीटर तक बर्फ मिलने से सम्भावना बनती है कि उस बर्फ का इस्तेमाल भविष्य की चन्द्र यात्राओं में संसाधन के रूप में किया जा सकता है। चांद के दक्षिणी ध्रुव में जो गड्ढे मौजूद हैं, उनमें बर्फ है। इसके अलावा उत्तरी ध्रुव पर भी चौड़ी बर्फ की जानकारी मिली है। इसका अर्थ यह हुआ कि चांद पर बर्फ की मौजूदगी पर्याप्त मात्रा में है। चन्द्रयान-I भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का चन्द्र अन्वेषण कार्यक्रम के तहत चांद की ओर कूच करने वाला पहला अंतरिक्ष यान था। इस अभियान के तहत मानवरहित यान को 22 अक्तूबर 2008 को चन्द्रमा पर भेजा गया और यह 30 अगस्त 2009 तक सक्रिय रहा। इसका सम्पर्क टूट गया था, बाद में नासा ने इसे ढूंढ निकाला था।
पृथ्वी से परे इन्सान को शिखर सफलता तब मिली जब 20 जुलाई 1967 अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रमा के धरातल पर कदम रखा लेकिन इस महान सफलता के बाद कुछ ही वर्षों में इन्सान चन्द्र अभियानों से ऊब गया। 1972 के बाद चन्द्र अभियान लगभग बन्द हो गए। पिछले 46 वर्षों में कोई योजना नहीं बनी। शायद इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि अपोलो-17 के चालक दल ने जब 13 दिसम्बर 1972 में चांद को अलविदा कहा तो अमेरिका ने महसूस किया कि चन्द्र अभियान आर्थिक दृष्टि से एक फालतू की कवायद है। उसे लगा कि अंतरिक्ष में कुछ खास हासिल नहीं किया जा सकता सिवाय कुछ मिट्टी और पत्थर के। अपोलो-17 अभियान का चालक दल चांद से कुछ मिट्टी अपने साथ लाया था।
वर्षों बाद इस मिट्टी को अलग-अलग देशों की अलग-अलग प्रयोगशालाओं में जांच के लिए भेजा गया, शोध हुए तो उनमें एक महत्वपूर्ण शोध यूनिवर्सिटी आॅफ विस्कोसिन ने पाया कि इस मिट्टी में हीलियम आइसोटोप भरे पड़े हैं। भारत के मिसाइलमैन का गौरव प्राप्त करने वाले एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति पद पर रहते हुए राजस्थान के उदयपुर में आयोजित विश्व अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के दो दिवसीय सम्मेलन में इस बात पर बल दिया था कि अब इन्सान को चांद की तरफ देखना चाहिए। उन्होंने कहा था कि चांद पर हीलियम-3 के रूप में ऊर्जा के विशाल भंडार मौजूद हैं। यह हीलियम जमीन से संपूर्ण खनिज इंधन से मिलने वाली ऊर्जा की 10 गुना है। चांद पर मौजूद यह हीलियम धरती की ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है, क्योंकि एक स्पेस शटल से कम से कम 25 टन हीलियम लाई जा सकती है। भारत के चन्द्रयान अभियान-I को चांद पर मौजूद खनिज संसाधनों और उनके मानवीय उपयोग के महत्व की पृष्ठभूमि में देखा गया।
अमेरिकियों में फिर चांद के प्रति दिलचस्पी पैदा हुई। 2004 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने चांद पर मानव बस्तियां बसाने की संभावनाएं खोजने की बात कही थी। नील आर्मस्ट्रांग ने जब चांद पर कदम रखा तो उनके कदमों के निशान छप गए जो निशान आज तक बने हुए हैं। चांद पर 12 लोग ही कदम रख पाए हैं। चांद पर पानी की खोज का श्रेय भारत को जाता है। 18 नवम्बर 2008 को चन्द्रयान-I ने तस्वीरें जारी की थीं कि चन्द्रमा की सतह से ऊपर पतली परत है और वहां पानी की मौजूदगी है। नासा ने बाद में इस दावे की पुष्टि की। भारत ने अब चांद की पुनर्खोज के अभियान की शुरूआत करने की घोषणा कर दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए घोषणा की थी कि भारत वर्ष 2022 तक मानव को अंतरिक्ष यान के जरिये चांद पर उतारेगा। इसरो ने इस दिशा में कोशिश शुरू कर दी है। मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हार्किंग कहा करते थे कि अगर मानव जाति को सम्पूर्ण विनाश से बचाना है आैर अपना अस्तित्व बचाए रखना है तो अंतरिक्ष में धरती से बाहर कहीं रहने का ठिकाना खोजना होगा। क्या चन्द्रमा पर इन्सान जाकर रह सकते हैं? इस बात पर अनुसंधान वैश्विक शक्तियां कर रही हैं।
इसरो दूसरे संस्थानों के साथ मिलकर चांद की बसावट के सम्बन्ध में प्रयोग कर रहा है। क्या चन्द्रमा की सतह पर इग्लू जैसी बसावटों का निर्माण हो सकता है? अंटार्कटिका में इग्लू बसावटों का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इग्लू का इस्तेमाल सर्द जगहों पर लोगों को गर्म रखने के लिए किया जाता है। वैज्ञानिकों ने तो चांद पर घर बनाने के लिए 5 तरह के डिजाइन भी तैयार किए हैं। चांद की पुनर्खोज अभियान भारत के लिए एक बड़ा क्षेत्र होगा। उम्मीद है कि भारत कुछ नई उपलब्धियां हासिल करेगा जो मानव के लिए कल्याणकारी साबित होंगी, इससे भारत की हैसियत बढ़ेगी।